कम लागत, ज्यादा मुनाफा: किसानों के लिए सौर ऊर्जा की नई पहल | PM KUSUM Scheme: How Farmers are Benefiting from Solar Energy?

सौर ऊर्जा का उपयोग कृषि में सिंचाई, फसल सुखाने, ग्रीनहाउस हीटिंग, प्रकाश व्यवस्था, खेती के उपकरणों को चलाने, जल शुद्धिकरण, स्वचालन, पशुपालन प्रबंधन, मृदा में नमी की निगरानी और ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए किया जा सकता है। विभिन्न अनुसंधानों ने सौर प्रौद्योगिकियों की आर्थिक व्यवहार्यता को साबित किया है, जो किसानों और ग्रामीण समुदायों के लिए लाभकारी हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास के लिए एवं सामाजिक मूलभूत ढांचे की सेवाओं को और अधिक मजबूत करने के लिए सौर ग्राम योजना और अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। सौर ऊर्जा ग्रामीण किसानों के परिवारों को बहुत ही कम लागत में सस्ती और भरोसेमंद बिजली आपूर्ति में मदद करती है। इसके साथ-साथ विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की बिजली खरीद लागत को घटाने में भी सहायक है। ग्रामीण भारत ऊर्जा परिवर्तन के लिए इस दिशा में प्रयासरत है। कुछ राज्यों ने अपने गांवों को सौर ऊर्जा से सुसज्जित करने का संकल्प लिया है, जिनमें बिहार, ओडिशा एवं गुजरात मुख्य हैं।


कम लागत, ज्यादा मुनाफा किसानों के लिए सौर ऊर्जा की नई पहल  PM KUSUM Scheme How Farmers are Benefiting from Solar Energy


सौर ऊर्जा द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब किसानों के परिवारों, वहां के स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों एवं अन्य ग्रामीण सहकारी संस्थाओं को भी निर्बाध बिजली पहुंचा कर सभी समुदायों की मदद की जा सकती है। 
सौर ऊर्जा दूरदराज के इलाकों में बेहतर गुणवत्ता के साथ बिजली आपूर्ति करती है। यहां पर अपने विकेन्द्रीकृत और मॉड्यूलर डिजाइन के साथ विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा तकनीक जीवन और आजीविका के विभिन्न पहलुओं को बेहतर बनाने एवं सक्षम बनाने में मदद करती है। समुदायों की मुख्य भूमिका के साथ स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को न्यायसंगत और समावेशी बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण प्रगति है।

विश्व में पिछले कुछ दशकों से वैश्विक जलवायु परिवर्तन, कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता और सीमित जीवाश्म ईंधनों की मात्रा के चलते सौर, पवन एवं बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। यह माना जा रहा है कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत सामाजिक और आर्थिक विकास, सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति तथा पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

भारत में सौर ऊर्जा को ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा प्रणाली और ऑफ-ग्रिड सौर प्रणालियों जैसे छत पर सौर प्रणाली, सौर प्रकाश व्यवस्था, सौर फोटोवोल्टाइक (एसपीवी) सिंचाई पंप के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है। हाल ही में, सौर फोटोवोल्टाइक प्रणाली लंबी कार्य क्षमता और तेजी से घटती लागत के कारण सिंचाई जल के प्रयोग के लिए आकर्षक और सस्ती होकर किसानों के लिए महत्वपूर्ण बन गई है।

वर्तमान समय में सौर ऊर्जा चालित सिंचाई प्रणाली सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है, जिसमें महंगे रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती। यह प्रणाली प्रदूषण रहित होती है एवं डीजल या प्रोपेन आधारित जल पम्पिंग प्रणालियों की तुलना में ग्रीनहाउस गैसें नहीं छोड़ती। जहां अन्य बिजली स्रोत उपलब्ध नहीं हैं, वहां दूरस्थ क्षेत्रों में सिंचाई और पीने के पानी के लिए पीवीआर जल पम्पिंग इकाइयां सबसे व्यवहार्य और आर्थिक रूप से लाभकारी पाई गई हैं।


सौर ऊर्जा चालित सिंचाई प्रणाली के लिए योजनाएं: वर्ष 2030 में 500 गीगावाट से अधिक महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए कृषि में सौर ऊर्जा का उपयोग महत्वपूर्ण है। यह कृषि से जुड़े किसानों को आजीविका प्रदान करता है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्य नोडल एजेंसियों के माध्यम से कृषि मंत्रालय के साथ समन्वय में वर्ष 2014-15 के दौरान सिंचाई के लिए सौर फोटोवोल्टाइक कार्यक्रम शुरू किया।

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय राज्यों को सौर पंपों की स्थापना के लिए 30 प्रतिशत पूंजीगत सब्सिडी प्रदान करता है जबकि राज्यवार सब्सिडी अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, राजस्थान, सौर फोटोवोल्टाइक पंपों की स्थापना में अग्रणी है। यह राज्य उन किसानों को 56 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान करता है, जिनके पास कम से कम 0.5 हेक्टेयर भूमि है और वे ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं।

अन्य राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि में 45-60 प्रतिशत पूंजी लागत को सब्सिडी के माध्यम से कवर किया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत अब तक लगभग 2.37 लाख सौर पंप स्थापित किए गए हैं। राजस्थान, चंडीगढ़ और आंध्र प्रदेश सौर फोटोवोल्टाइक पंप की स्थापना में शीर्ष तीन प्रदर्शनकर्ता हैं। अन्य प्रमुख कृषि राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक भी सौर फोटोवोल्टाइक स्थापना में महत्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं।

वर्ष 2020 के बजट में, सरकार ने 20 लाख किसानों को स्टैंड-अलोन सौर पंप स्थापित करने में मदद करने के लिए कुसुम योजना के विस्तार की घोषणा की, एवं मौजूदा जल पंप सेटों का सौरकरण 15 लाख किसानों तक बढ़ाया गया है। इसके अलावा, वे किसान जिनके पास अनुपयोगी या बंजर भूमि है, वहां वे सौर ऊर्जा उत्पादन इकाइयां स्थापित कर सकते हैं और अतिरिक्त ऊर्जा को सौर ग्रिड को भी बेच सकते हैं।

यह किसानों के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि वे अतिरिक्त ऊर्जा की बिक्री से आय प्राप्त करेंगे। यह राज्य सरकार के लिए भी लाभकारी होगा क्योंकि इससे उनके न्यूनतम नवीकरणीय खरीद दायित्व में योगदान होगा। 

कुसुम योजना का भारत में ऊर्जा मांग को पूरा करने और ग्रामीण गरीबी को कम करने में बहुत बड़ा संभावित योगदान है। पीएम कुसुम योजना के कार्यान्वयन में कई कमियां भी महसूस की गई हैं जैसे कि उच्च स्थापना लागत और डिस्कॉम द्वारा सौर ऊर्जा के लिए कम दर। ये कारक इस योजना को अपनाने की दर को प्रभावित कर रहे हैं। सरकार को इन मुद्दों का निवारण करने की आवश्यकता है, ताकि लक्षित उद्देश्य प्राप्त किया जा सके।

छत पर सौर ऊर्जा और स्टैंड-अलोन सौर पंप को ग्रिड से जोड़ना सराहनीय पहल है। इसे ग्रामीण ऊर्जा मांग को पूरा करने और 2030 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।


राज्यवार सफलता: बिहार, ओडिशा और गुजरात के कुछ गांवों में सौर ऊर्जा लगाने के सरकारी प्रयास सफल रहे हैं। ये अपनी जलवायु कार्य योजनाओं पर काम कर रहे हैं। गुजरात के मोढेरा सौर ऊर्जा गांव परियोजना में सफलता मिली है और ओडिशा एवं बिहार को अपेक्षित परिणाम का इंतजार है।

बिहार में कुछ वर्ष पहले धुरनाई गांव में 100 किलोवाट का सोलर मिनी ग्रिड लगाया गया था। इससे करीब 400 घरों, दो स्कूलों, एक स्वास्थ्य केंद्र, 50 वाणिज्यिक संस्थानों एवं एक किसान प्रशिक्षण केंद्र को बिजली मिलती है। कुछ समस्याओं का निदान करने के उपरांत सरकार के प्रयास सफल रहे हैं।

भारत सरकार ने ऊर्जा दक्षता, विद्युत गतिशीलता, भवन निर्माण दक्षता, ग्रिड से जुड़े ऊर्जा भंडारण और हरित बांड के लिए कई घोषणाएं की जो नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन देने में अहम भूमिका निभाएंगी। भारत सरकार ने वर्ष 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन तथा वर्ष 2030 तक भारत की नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता 500 गीगावाट तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा है।

उपरोक्त लक्ष्य को प्राप्त करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे- राष्ट्रीय बायोगैस और खाद्य प्रबंधन कार्यक्रम, सूर्यमित्र कार्यक्रम, सौर ऋण कार्यक्रम, पी-एम- कुसुम योजना, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, सौर पार्क योजना, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम योजना, हाइड्रोजन मिशन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन तथा ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा में आत्मनिर्भरता भारत की आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी अहम है।


सरकारी प्रयास: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा 2018 में, राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत प्रमुख सौर कार्यक्रमों की योजनाबद्ध श्रृंखला में नई योजना किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (कुसुम योजना) की शुरुआत की गई, जिसमें तीन प्रावधान हैं:
  1. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 10,000 मेगावाट विकेन्द्रीकृत ग्राउंड माउंटेड ग्रिड से जुड़ी नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करना। इसमें किसान, सहकारी समितियां, पंचायतें या एफपीओ अपनी भूमि में 500 किलोवाट से 2 मेगावाट क्षमता के ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर सकते हैं।
  2. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा ग्रामीण कृषि क्षेत्रों में 17.50 लाख स्टैंड अलोन सौर ऊर्जा संचालित कृषि पंपों की स्थापना, जिनकी व्यक्तिगत पंप क्षमता 7.5 हॉर्स पावर तक होगी।
  3. मंत्रालय द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सौरकरण, जिससे किसान डिस्कॉम को अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिए उत्पन्न अतिरिक्त सौर ऊर्जा बेच सकें।


भविष्य की ऊर्जा मांग की पूरक: विश्व में पिछले कुछ वर्षों से कई देशों में सौर ऊर्जा उद्योग, खासकर चीन, यूरोप और अमेरिका में तेजी से बढ़ रहा है। भारत में 4-7 किलोवाट प्रति वर्ग मीटर दैनिक औसत सौर विकिरण और लगभग 1500-2000 धूप घंटे प्रति वर्ष की प्रचुर मात्रा में सौर विकिरण के साथ, सौर ऊर्जा की मांग को पूरा करने की क्षमता रखती है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 में शुरू किए गए राष्ट्रीय सौर मिशन ने सौर ऊर्जा के कृषि क्षेत्रों में उपयोग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार ने वर्ष 2022 में इस मिशन के माध्यम से 100 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त किया। भारत में कुल स्थापित 310 गीगावाट क्षमता में से नवीकरणीय ऊर्जा ने 14.8 प्रतिशत हिस्सा हासिल किया है, जबकि थर्मल ऊर्जा का हिस्सा 69.4 प्रतिशत है। देश में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की कुल क्षमता 1096 गीगावाट अनुमानित है। इसमें सौर ऊर्जा का हिस्सा सबसे अधिक (68.33 प्रतिशत) है, उसके बाद पवन ऊर्जा (27.58 प्रतिशत), लघु जल-विद्युत ऊर्जा (1.80 प्रतिशत) और बायोमास ऊर्जा (1.60 प्रतिशत) है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत की कुल स्थापित क्षमता (वर्ष 2018 तक) 73 गीगावाट है, जिसमें सौर का 33.15 प्रतिशत हिस्सा है, जो पवन ऊर्जा (47.70 प्रतिशत) के बाद आता है। इसका मतलब है कि नवीकरणीय स्रोत, विशेष रूप से सौर, वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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