अजोला: बकरियों के लिए वरदान! कम लागत में पाएं 15-20% ज़्यादा दूध और 30-35% आहार बचत | Boost Milk Production & Profit with Azolla

अजोला एक ऐसा फर्न है जिसे किसी भी स्थान पर और किसी भी समय आसानी से तैयार किया जा सकता है। 1 किलोग्राम अजोला के उत्पादन पर लगभग ₹2.00 की लागत आती है। एक दुधारू बकरी को मात्र 500 ग्राम अजोला खिलाकर 15 से 20 प्रतिशत अधिक दूध प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही 30 से 35 प्रतिशत आहार की बचत कर सकते हैं। अजोला खिलाने से लगभग ₹10 से ₹12 प्रति बकरी प्रति दिन की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है, जो अन्य हरे चारे से संभव नहीं है। अजोला पानी में उगने वाला एक फर्न है, इसीलिए इसे जलीय फर्न भी कहा जाता है। अजोला जलीय फर्न की 7 प्रजातियों का एक वंश है, जिसे अजोलीयेसी (Azollaceae) कहा जाता है। दीर्घकाल से पानी में रहने के कारण यह फर्न जलीय जीवन के लिए पूरी तरह से अनुकूलित हो गया है। इसीलिए यह आम फर्न के बजाय पूरी तरह से शैवाल की तरह दिखाई देता है। अजोला का आकार छोटा होने के कारण इसकी छोटी-छोटी शल्कों जैसी पत्तियां, परस्पर एक दूसरे के साथ मिल जाती हैं, जिससे यह पानी पर आसानी से तैरता रहता है। इसकी बालों जैसी महीन और छोटी जड़ें पानी के अंदर लटकती रहती हैं, जो अपने पालन-पोषण के लिए आवश्यक पोषण तत्व पानी से सोखती रहती हैं।


अजोला बकरियों के लिए वरदान! कम लागत में पाएं 15-20% ज़्यादा दूध और 30-35% आहार बचत  Boost Milk Production & Profit with Azolla


भारत कृषि के साथ-साथ एक पशु प्रधान देश भी है। देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या पशु और कृषि पर निर्भर है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहकर अपने जीवनयापन और आर्थिक विकास के लिए कृषि एवं पशुधन पर निर्भर है। सदियों से पशुपालन कृषि किसानों और गरीब परिवारों की खाद्य सुरक्षा और आमदनी का स्रोत रहा है। अतः ग्रामीण परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधारने में कृषि एवं पशुधन का बहुमूल्य योगदान है। गांवों में ऐसे किसानों के परिवार भी हैं, जो भूमिहीन, श्रमिक, लघु एवं सीमांत हैं, जो गाय या भैंस नहीं पाल सकते, ऐसे परिवारों के आर्थिक विकास के लिए बकरी पालन एक महत्वपूर्ण साधन है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में साधन विहीन भूमिहीन, बेरोजगार, कृषि श्रमिक, सीमांत और छोटे किसानों एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की जीवन शैली के साथ बकरी पालन सदियों से जुड़ा हुआ है। आज भी बकरी आमदनी का साधन होने के साथ-साथ दूध एवं इससे बने उत्पाद आदि की भी पूर्ति करती है।

भारत में बकरियों की लगभग 39 अधिकृत नस्लें दूध, मांस, बाल, खाद आदि के लिए पाली जाती हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग बकरियों की नस्लें पाली जाती हैं। कुछ बकरियां दूध उत्पादन के लिए पाली जाती हैं तो कुछ बकरियां मांस के लिए पाली जाती हैं और कुछ मेमनों के उत्पादन के लिए पाली जाती हैं।

पशु जनगणना 2019 के अनुसार, देश में लगभग 535.78 मिलियन पशु पाले जाते हैं। इसमें लगभग 192.49 मिलियन गाय, 109.85 मिलियन भैंस और 148.88 मिलियन बकरियां पाली जाती हैं, जो देश की कुल पशुसंख्या का 35.93, 20.50 और 27.79 प्रतिशत हैं।

पशुसंख्या की दृष्टि से देश में बकरी का दूसरा स्थान है। देश में बकरियों से लगभग 3.30 प्रतिशत दूध और 14.00 प्रतिशत मांस की प्राप्ति होती है। बकरी पालन में आहार एक महत्वपूर्ण समस्या है। आजकल चरागाह भी कम हो रहे हैं जो बकरी पालन में समस्या का कारण है। ऐसी स्थिति में हरे चारे के लिए किसानों को वैकल्पिक स्रोत पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

हरे चारे के वैकल्पिक स्रोत के रूप में अजोला एक अच्छा हरे चारे का नियमित उत्पादन स्रोत हो सकता है। अजोला एक ऐसा हरा चारा है, जो प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरपूर है। यदि किसान अपने पशुओं के आहार में अजोला का उपयोग करते हैं, तो यह पशुओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि कर सकता है।

अजोला उत्पादन के लिए उस जमीन का उपयोग किया जा सकता है, जो कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है। कोई भी पशुपालक अजोला की खेती आसानी से एवं अपने घर के आस-पास खाली पड़ी भूमि पर छोटी-छोटी क्यारी बनाकर कर सकता है। क्यारियां कच्ची या पक्की दोनों तरह से तैयार की जा सकती हैं। कच्ची क्यारी में प्लास्टिक की शीट या सिल्पालीन शीट का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसका जीवनकाल कम होता है।


उत्पादन: अजोला का उत्पादन हर तरह की जलवायु में किसी भी जगह आसानी से किया जा सकता है। अजोला के उत्पादन के लिए कोई उपजाऊ जमीन की आवश्यकता नहीं होती है। अजोला उथले गड्ढों में उत्पादित किया जाता है। गड्ढे ऐसी जगह बनाने चाहिए, जहां पर नियमित साफ पानी उपलब्ध हो।

अजोला उत्पादन विधि बहुत ही सरल है और किसान आसानी से इसे कर सकते हैं। गड्ढे की लंबाई आवश्यकतानुसार कम या अधिक की जा सकती है। चौड़ाई 3 फीट से कम नहीं होनी चाहिए। दीवार की चौड़ाई 9 इंच उपयुक्त होती है। गड्ढों की संख्या आवश्यकतानुसार बनाई जा सकती है। जगह का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जमीन समतल हो, ऊंचाई पर हो और आस-पास पानी न ठहरता हो। 


अजोला उत्पादन विधि इस प्रकार है:
  • सर्वप्रथम गड्ढों का निर्माण करना चाहिए। गड्ढों की लंबाई 10-15 फीट, चौड़ाई 3-5 फीट और गहराई 1 फीट होनी चाहिए।
  • एक पॉलीथीन शीट या सिल्पालीन शीट गड्ढे में बिछा दें। शीट इतनी बड़ी होनी चाहिए कि वह गड्ढे के ऊपर तक भली-भांति आ जाए और किनारों को आसानी से ढक ले। शीट बिछाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि शीट में कोई फोल्ड नहीं होना चाहिए।
  • पॉलीथीन शीट को चारों तरफ से ईंटों से दबा देना चाहिए, जिससे शीट अपनी जगह पर ही स्थिर हो जाए।
  • शीट के ऊपर एक से दो इंच भुरभुरी मिट्टी और गोबर की खाद या केंचुआ खाद के 10 से 15 किलोग्राम मिश्रण को समानांतर बिछा देना चाहिए।
  • इसके बाद 1.5 से 2.0 किलोग्राम गोबर का घोल बनाएं और गड्ढे में 6-8 इंच की ऊंचाई तक पानी से भर दें।
  • 250 से 500 ग्राम अजोला कल्चर पानी के ऊपर समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिए। अजोला मिश्रण का छिड़काव सुबह के समय करना होता है।
  • 10-15 दिनों के बाद एक गड्ढे से 1.5-2.5 किलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्राप्त किया जा सकता है।
  • प्रत्येक 15 दिनों के बाद गोबर का घोल बनाकर एवं 30 से 40 ग्राम रॉक-फॉस्फेट प्रत्येक गड्ढे में डाल देना चाहिए, ताकि अजोला को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिलता रहे।
  • रोग से बचाव के लिए 0.5 से 1.0 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग प्रत्येक 2 से 3 सप्ताह के अंतराल में किया जा सकता है। 
  • जैसे ही पानी का स्तर 10 सेंटीमीटर से नीचे पहुंचे तुरंत साफ पानी से गड्ढे को भर देना चाहिए।


बकरियों को कैसे खिलाएं: बकरी एक चरने वाला पशु है और अपनी स्वेच्छा से घास का चयन करती है। अजोला उत्पादन में गोबर का उपयोग होता है अतः अजोला में गोबर की महक आना स्वाभाविक है, इसीलिए बकरी अजोला को अन्य चारे की तरह नहीं खाती।

इसको खिलाने के लिए अति आवश्यक है कि इसे गड्ढे से निकालने के बाद 5-6 बार स्वच्छ पानी से धोना चाहिए, जिससे गोबर की महक समाप्त हो जाए। धोने के बाद 15-20 मिनट के लिए छन्नी में रखना चाहिए, जिससे पानी पूर्णरूप से छन जाए। अंत में आवश्यकतानुसार दाने में मिलाकर खिलाया जा सकता है।

बकरियों को अजोला सुखाकर, ताजा अथवा खली बनाकर खिलाया जा सकता है। सूखा अजोला बकरियां बड़े चाव से खाती हैं अतः सूखा अजोला कभी भी खिलाया जा सकता है। ताजा अजोला शुरू के दिनों में कम खाती हैं, लेकिन बाद में अच्छी तरह से खाने लगती हैं। एक बकरी के लिए 500 ग्राम ताजा अजोला प्रतिदिन खिलाया जा सकता है।


लागत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) में किए गए शोध से पता चलता है कि एक किलोग्राम अजोला उत्पादन पर लगभग ₹2.00 से ₹2.50 खर्च आता है। ईंट और सीमेंट से बनाए गए गड्ढों में खर्च और कम हो जाता है, क्योंकि इनका जीवनकाल अधिक होता है। जबकि सिल्पालीन का जीवनकाल 3 से 4 वर्ष होता है।


सिफारिशें
  • गड्ढे के आस-पास का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
  • गर्मी, तेज धूप अथवा ठंड से बचाव के लिए हरित गृह वाले जाल का प्रयोग किया जा सकता है।
  • गड्ढे के पानी का पी-एच मान 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए।
  • पशुओं को खिलाने से पहले अजोला को साफ पानी में अच्छी तरह से 5-6 बार धोना चाहिए, जिससे गोबर की गंध समाप्त हो जाए।
  • जब पशुओं को पहली बार अजोला खिलाना हो, तो इसके साथ थोड़ी दाने की मात्रा मिला लेनी चाहिए। ऐसा करने से धीरे-धीरे खाने की आदत बन जाएगी। जब खाने की आदत बन जाए तब धीरे-धीरे दाने की मात्रा कम कर देनी चाहिए।
  • अजोला को मुर्गियों, बकरियों, खरगोश, भेड़, शूकर, मछली एवं बत्तख को भी पौष्टिक आहार के रूप में खिलाया जा सकता है। अधिक प्रोटीन होने के कारण वृद्धि एवं दुग्ध उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।


बकरियों के लिए जरूरी: बकरी ऐसा पशु है, जो चरना पसंद करती है। देश में चरागाह पर्याप्त नहीं हैं। बकरी पालन ऐसे किसानों के हाथ में है, जिनके पास खिलाने के लिए पर्याप्त चारा नहीं है, जिससे बकरियों की पोषण आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती। इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता कम हो जाती है। अतः अजोला एक ऐसा आहार है, जिसमें सभी पोषक तत्व उपलब्ध हैं। इससे इन बकरियों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है। यह प्रोटीन, आवश्यक अमीनो अम्ल, विटामिन 'ए' और 'बी', बीटा कैरोटीन, वृद्धि प्रवर्तक और खनिज जैसे-कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लोहा, तांबा, मैग्नीशियम आदि से भरपूर है। अजोला में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व प्रोटीन है, जो पशुओं का मुख्य आहार है। इसके अलावा अजोला कैल्शियम का अच्छा स्रोत है जो दुग्ध उत्पादन के लिए आवश्यक है।


उत्पादन से लाभ
  • अजोला सस्ता और अच्छी गुणवत्ता वाला हरा चारा है।
  • गुणवत्ता पर नियंत्रण संभव।
  • दुग्ध उत्पादन में (15-20 प्रतिशत) वृद्धि एवं प्रति किलोग्राम दुग्ध उत्पादन लागत में कमी।
  • अजोला खिलाने से पशुओं में परिपक्वता जल्दी आती है।
  • वर्षभर हरे चारे की आपूर्ति।
  • कम लागत की आवश्यकता।
  • शत-प्रतिशत कार्बनिक हरा चारा।
  • उर्वरक एवं कीटनाशक मुक्त हरा चारा।
  • अनुपजाऊ भूमि का सदुपयोग।

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