गायों को अनिवार्य रूप से 45-60 दिनों के ड्राई पीरियड (शुष्क अवधि) की आवश्यकता होती है। इस समय दूध निकालना बंद कर दिया जाता है। इसके साथ ही यदि गाय 7-8 महीने की गर्भवती है, तो स्थिति और भी अच्छी हो जाती है। गर्भाधान की अवधि पूरी होने तक पुनः गाय दूध देने की अवस्था में वापस आ जाती है। शुष्क अवधि में पशुओं का उचित प्रबंधन तथा देखभाल आवश्यक है।
गाय का दूध देना शुष्क अवधि के समय शुरू होता है, न कि उसके ब्याने के समय। गाय में दुग्ध उत्पादन के दौरान स्तन ग्रंथि कोशिका टूटती है। शरीर की स्थिति खराब हो जाती है। इस स्थिति में स्तन प्रणाली का फिर से पुनरुज्जीवन और शारीरिक सुधार, आने वाले स्तनपान/दूध उत्पादन के लिए पाचन तंत्र को तैयार करने हेतु शुष्क अवधि (दूध का उत्पादन बंद कर दिया जाता है) की आवश्यकता होती है। इस समय कैल्शियम और फॉस्फोरस के विशेष अनुपूरण की आवश्यकता होती है। इसे शुष्क अवधि के पहले दो सप्ताह तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। यदि गायों में शुष्क अवधि की अनुमति नहीं दी जाती है, तो आगामी दुग्ध उत्पादन का स्तर 25 प्रतिशत तक कम हो जाता है।
आदर्श शुष्क अवधि 60 दिनों की है, हालांकि सामान्य स्थिति में यह 120-150 दिनों तक हो सकती है। लंबी और छोटी शुष्क अवधि दोनों में क्रमशः वर्तमान या आगामी उत्पादन में दूध उत्पादन कम हो जाता है। गाय की तुलना में पहली बछिया को अधिक ड्राई पीरियड/शुष्क अवधि की आवश्यकता होती है।
शुष्क अवधि के पहले दो हफ्तों के दौरान, उसके बाद ब्याने से दो हफ्ते पहले और ब्याने के दो हफ्ते बाद गायों को स्तनशोथ/थनैला रोग के संक्रमण की आशंका सबसे अधिक होती है।
शुष्क अवधि गायों और भैंसों के लिए निम्न निमित्त हेतु आवश्यक है:
- बीसीएस (बॉडी कंडीशन स्कोर) में सुधार
- प्रसव के समय जटिलताएं कम करना
- प्रोडक्शन पीक पर जल्दी पहुंचना
- थन के स्वास्थ्य में सुधार के लिए
- समग्र प्रजनन क्षमता में सुधार करना
शुष्क गाय प्रबंधन में मुख्य रूप से तीन महत्वपूर्ण व्यावहारिकता शामिल हैं जैसे:
- शुष्क गाय एंटीबायोटिक चिकित्सा
- टीट सीलेंट अनुप्रयोग
- विटामिन 'ई' अनुपूरण
60 दिनों की शुष्क अवधि में यदि पशु का वजन 20 किलोग्राम बढ़ जाता है, तो बाद के दूध उत्पादन में 30-50 किलोग्राम की वृद्धि होती है।
शुष्क काल (30-46 दिन): इसे तीन उप-चरणों में विभाजित किया गया है। शुष्क अवधि 60 दिनों से अधिक बढ़ने पर स्थिर चरण की अवधि बढ़ जाती है। इसके अलावा शुष्क अवधि को भी दो भागों– फॉर ऑफ ड्राई पीरियड (शुष्क अवधि के पहले 4-6 सप्ताह) और क्लोजअप ड्राई पीरियड (संभावित ब्याने से पहले के अंतिम 3 सप्ताह) में विभाजित किया गया है। गाय में शुष्क अवधि के निम्न तीन चरण होते हैं:
- एक्टिव इवोल्यूशन स्टेज
- स्टीडी स्टेज/फेज
- न्यू टिश्यू ग्रोथ/मेमरी ग्रोथ स्टेज
शुष्क प्रबंधन की प्रक्रिया
- अचानक दूध दुहना बंद कर देना: 5-8 किलोग्राम (कम उत्पादक) उत्पादन स्तर वाली गायों के लिए।
- रुक-रुक कर दूध दुहना: दूध उत्पादन 8-10 किलोग्राम स्तर वाली गायों के लिए।
- अधूरा दूध दुहना/निकलना: यह गायों को सुखाने का सबसे अच्छा तरीका है। यह विधि विशेष रूप से अधिक उत्पादन अर्थात् 10 किलोग्राम से अधिक दूध देने वाली गायों के लिए उपयुक्त है।
दूध देना जल्दी बंद करने के लिए आहार और पानी का सेवन कम करने के साथ शुष्क करने की उपरोक्त विधियों का पालन किया जाना चाहिए।
- ब्याने से 1-2 सप्ताह पहले तथा शुष्क अवधि के 1-2 सप्ताह के दौरान गायों की स्तन ग्रंथि में संक्रमण की दर अधिक होती है।
- शुष्क गाय को दूध देने वाली गाय से अलग करना चाहिए। शुष्क गाय की तुलना में दूध देने वाली गाय की आहार आवश्यकता अधिक होती है।
कैल्शियम रिलीजिंग मैकेनिज्म: विशेष रूप से ब्याने से 2-3 सप्ताह पहले कम कैल्शियम युक्त आहार प्रदान करने से आनुवंशिकी से रक्त में कैल्शियम का संचार बढ़ता है। यह अंततः गाय में दूध बुखार (मिल्क फीवर) के संक्रमण को कम करता है। दूसरे शब्दों में 'कम कैल्शियम और उच्च मैग्नीशियम सिद्धांत' से मिल्क फीवर से बचा जा सकता है। मैग्नीशियम से भरपूर हरी सब्जियों में पालक, शलजम, केल और सरसों शामिल हैं। मैग्नीशियम की कमी से ग्रास टेटनी/लेक्टेशन टेटनी/ग्रास टेटनी/विंटर टेटनी और व्हीट पाश्चर पॉइजनिंग की आशंका रहती है।
गायों में डाउनर्स सिंड्रोम (सेकेंडरी रिकम्बेन्सी): गाय के लंबे समय तक लेटे रहने के दौरान दबाव के कारण मांसपेशियों और तंत्रिकाओं में चोट लगने से पैथो-फिजियोलॉजिकल लीजन विकसित होती है। यह जांघ की मांसपेशियों के दबाव से उत्पन्न इस्केमिक नेक्रोसिस है, जो अक्सर दोनों पिछले पैरों को प्रभावित करता है। इसमें हाइपोकैल्सीमिया या मिल्क फीवर, हाइपोमैग्नेसीमिया या ग्रास टेटनी, एसिडोसिस, कीटोसिस आदि रोग शामिल हैं।
क्लोजअप गायों को विटामिन 'डी' खिलाना: प्रसव के अंतिम सप्ताह में गाय को विटामिन 'डी' की पूर्ति की जा सकती है। विटामिन 'डी' हड्डियों से कैल्शियम निकालने में मदद करता है। कैल्शियम और फॉस्फोरस का अनुपात 2:1 बनाए रखना चाहिए।
गायों को ऐनियोनिक साल्ट खिलाना: ऐनियोनिक साल्ट खिलाने से गाय का रक्त थोड़ा अम्लीय हो जाता है (रक्त में पी-एच मान कम हो जाता है)। इस प्रभाव का तुरंत मुकाबला करने के लिए तथा रक्त को बफर करने के लिए हड्डियों से कैल्शियम छोड़ा जाता है। कैटायन (Na, K, Ca आदि) में धनात्मक आवेश होते हैं। आहार अधिक क्षारीय (उच्च रक्त पी-एच) स्थिति को बढ़ावा देता है, जो दूध बुखार जैसे रोग की वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है।
नेगेटिव डायट्री कैटायन ऐनायन डिफरेंस (डीसीएडी)/एसिडिक डाइट: नेगेटिव डीसीएडी आहार खिलाने से हाइपोकैल्सीमिया, मेट्राइटिस, मैस्टाइटिस और कीटोसिस जैसे संक्रमण रोगों को कम किया जा सकता है। प्रसव से पहले गाय को ऋणात्मक खिलाना चाहिए और प्रसव के बाद गाय को धनायन खिलाना चाहिए।
दूध बुखार से बचाव: ब्याने के समय पशुओं के बीसीएस को ठीक किया जाना चाहिए (5 पॉइंट स्कोरिंग प्रणाली में 3.0-3.25 बीसीएस)। ब्याने से पहले कैल्शियम का सेवन कम करना चाहिए और किसी भी अतिरिक्त कैल्शियम से बचना चाहिए। शरद ऋतु में ब्याने के लिए हरे-भरे चरागाह से बचना चाहिए। इन घासों में मैग्नीशियम की मात्रा कम होती है। एडवांस प्रेग्नेंट गायों को बरसीम और लूजर्न घास खिलाने से बचना चाहिए। इस दौरान गाय को मैग्नीशियम से भरपूर खनिज देना चाहिए, लेकिन अतिरिक्त कैल्शियम नहीं।
गाय में बायां विस्थापित पेट: एबोमेसम आमतौर पर पेट के तल पर स्थित होता है। गैस से भर जाता है और पेट के बाएं शीर्ष तक बढ़ सकता है। एबोमेसम के दाहिनी ओर से बाईं ओर (एलडीए) विस्थापित होने की अधिक आशंका होती है। अधिक अनाज खिलाने और कटे हुए चारे से स्थिति और भी खराब हो जाती है।
चैलेंज फीडिंग: गर्भाधान के अंतिम दो सप्ताह के दौरान, प्रसव के करीब आने वाली गायों को सामान्य आहार से अधिक, कंसंट्रेट खिलाने के लिए जाना जाता है।
मैस्टाइटिस का नियंत्रण: गायों में ड्राइंग के बाद पहले सप्ताह के दौरान और ब्याने से ठीक पहले सप्ताह के दौरान गायों के स्तन नए संक्रमण के प्रति संवेदनशील होते हैं। 40 प्रतिशत नए संक्रमण शुष्क अवधि के दौरान उत्पन्न होते हैं। इसके लिए पोविडोन आयोडीन (आयोडोफोर) की एक टीट डिप की सिफारिश की जाती है। गाय का उपचार सबक्लिनिकल मैस्टाइटिस को ठीक करने का सबसे अच्छा अवसर प्रदान करता है। इसके लिए आहार में अधिक फाइबर सामग्री को शामिल किया जाता है। प्रोटीन का अधिक सेवन करवाने से बचना चाहिए। खनिज/मिनरल्स और विटामिन की आवश्यकताएं पूरी करनी चाहिए:
- अनुसंधान ने गायों में शुष्क अवधि के दौरान प्रोपलीन ग्लाइकोल, क्रोमियम और मेथियोनीन अनुपूरण के सकारात्मक प्रभाव की भी सूचना प्रदान की है।
- गायों में शुष्क अवधि के दौरान सेलेनियम विटामिन 'ई' की पूर्ति। दूध देना बंद करने के बाद गाय के लिए एंटीबायोटिक्स का स्तन के अंदर इंजेक्शन आवश्यक है। नए संक्रमणों के प्रवेश से बचने के लिए टीट सीलेंट (ऑर्बसील) का भी उपयोग किया जा सकता है।
- टीट सीलेंट: सामान्यतः ऑर्बसील को टीट सीलेंट की तरह उपयोग किया जाता है। यह बाहरी संक्रमणों को स्तन प्रणाली में जाने से रोकता है।
आहार प्रबंधन
- शुष्क गाय को शारीरिक स्थिति के अनुसार आहार देना चाहिए। बीसीएस 3 से 4 के बीच शारीरिक स्थिति का स्कोर पर्याप्त है अर्थात् यदि शरीर की स्थिति अच्छी है, तो अतिरिक्त खिलाने की आवश्यकता नहीं है।
- उत्पादन के दौरान कैल्शियम, फॉस्फोरस की भारी हानि होती है इसलिए शुष्क अवधि के दौरान आहार इन्हीं के साथ पूरा किया जाना चाहिए, लेकिन केवल प्रारंभिक शुष्क अवधि के दौरान। शुष्क अवधि के अंतिम 3 सप्ताह के दौरान कैल्शियम सीमित होना चाहिए, क्योंकि इससे दूध बुखार हो सकता है।
- शुष्क गाय को प्रतिदिन 30,000 से 50,000 आईयू विटामिन 'ए' खिलाना चाहिए। शुरुआती स्तनपान और दूध उत्पादन के दौरान गायें पर्याप्त ऊर्जा नहीं ले पाती हैं। अतः इन दिनों में गायों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
कीटोसिस: शुष्क गाय की भ्रूण की जरूरतों, कोलोस्ट्रम उत्पादन के साथ-साथ उनकी अपनी जरूरतों से संबंधित उच्च ऊर्जा की मांग होती है। इसके अलावा तनाव के कारण गाय के प्रसव के करीब पहुंचने पर ड्राई मैटर इनटेक (डीएमआई) 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है। ये सभी कारक मिलकर पशुओं को कई मेटाबॉलिक रोगों, विशेष रूप से कीटोसिस के संक्रमण में डालते हैं। यह एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है, जो नेगेटिव एनर्जी बैलेंस के कारण होता है। कीटोटिक गायों में अक्सर रक्त शर्करा की मात्रा कम होती है।
- लक्षण: कीटोसिस के लक्षणों में भूख व दूध उत्पादन में कमी शामिल है। गाय के मूत्र, मल तथा अन्य स्राव से नेल पॉलिश की अजीब सी गंध आती है।
- उपचार: ऊर्जा युक्त आहार प्रदान किया जाना चाहिए। डीएनएस ड्रिप, ग्लूकोज का इंजेक्शन, प्रोपलीन ग्लाइकोल फीडिंग और नियासिन फीडिंग इत्यादि की व्यवस्था करनी चाहिए।
जरूरी: ब्याने के समय गायों के रक्त में कैल्शियम की कमी को रोका जाना चाहिए। ट्रेस मिनरल्स एनआरसी को 35 प्रतिशत की सीमा से ऊपर दिया जाना चाहिए। ब्याने से पहले 3 सप्ताह तक मजबूत रोग प्रतिरक्षा के लिए सेलेनियम, विटामिन 'ई' दिया जाना चाहिए। दूध बुखार के मामले में, आहार के कैटायन एनायन डिफरेंस की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए, यानी प्रसव के करीब आने वाली गायों को खिलाने के लिए ऋणायन अधिक होना चाहिए।
सिफारिशें: गायों के प्रजनन एवं ब्याने की तारीखों का सटीक रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। गाय को लेट लेक्टेशन के दौरान अच्छे से खिलाया जाना चाहिए ताकि शुष्क अवस्था में वे पर्याप्त शारीरिक स्थिति (बीसीएस) में रहें। प्रत्येक गाय को कम से कम 45-60 दिनों की शुष्क अवधि की अनुमति दी जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि शुष्क अवधि ब्याने के समय उचित स्थिति में होगी, यदि आवश्यक हो, तो पर्याप्त चारा और कुछ अनाज उपलब्ध करवाया जाना चाहिए। गाय की आवश्यकतानुसार खनिज/मिनरल्स विटामिन की पूर्ति की जानी चाहिए।
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