क्यों है बाजरा इतना खास? जानें इसके अद्भुत स्वास्थ्य लाभ | Millet: The Superfood That Keeps You Healthy

विश्व पोषक तत्वों से भरपूर अनाज की कमी की समस्या से जूझ रहा है। भारत जैसे विकासशील देश और अफ्रीकी प्रायद्वीप में यह समस्या अधिक जटिल है। यहां कुपोषण का सीधा प्रभाव मनुष्य पर विभिन्न प्रकार के रोगों के रूप में देखा जा सकता है। तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन ने परंपरागत उत्पादित होने वाली अनाज की फसलों जैसे-गेहूं और धान जिन्हें ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है, को प्रभावित किया है। वहीं अब पोषण से समृद्ध श्रीअन्न की ओर रुख किया जा रहा है। मक्का व ज्वार सहित ये फसलें श्रीअन्न के रूप में जानी जाती हैं। श्रीअन्न फसलों में सूखे को सहन करने की क्षमता गेहूं व धान से ज्यादा है। ये फसलें आसानी से वर्षा आधारित क्षेत्रों में पनप जाती हैं। श्रीअन्न में सूक्ष्म पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। ये अनाज मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं और इनमें एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। ये उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और ट्यूमर से ग्रसित रोगियों के लिए लाभकारी हैं। भारत की अधिकांश भूमि वर्षा आधारित व शुष्क है, जहां पर श्रीअन्न की खेती संभव है। अतः ऐसे क्षेत्रों में श्रीमन्न की फसलों की खेती को बढ़ावा देकर वर्तमान व भविष्य में आने वाली चुनौतियों जैसे कि कुपोषण की समस्या को कम कर सकते हैं। इसके साथ ही खाद्यान्न की समस्या को भी सुनिश्चित कर सकते हैं।


क्यों है बाजरा इतना खास जानें इसके अद्भुत स्वास्थ्य लाभ  Millet The Superfood That Keeps You Healthy


भारत, श्रीअन्नों के उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। वहीं आमजन में इसमें पाए जाने वाले पौष्टिक गुणों के प्रति जागरूकता का अभाव है। श्रीअन्नों में धान एवं गेहूं की तुलना में लवण पाचक फाइबर और पोषक तत्व भी ज्यादा होते हैं। इनमें 9-14 प्रतिशत तक प्रोटीन व 70-80 प्रतिशत तक कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं। श्रीअन्न फसलें कम अवधि की होती हैं।

श्रीअन्न फसलों की प्रजातियों में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इनका उपयोग करके वर्तमान में कुपोषण जैसी समस्याओं का निवारण किया जा सकता है। ये फसलें वर्षा आधारित क्षेत्रों व शुष्क क्षेत्रों में आसानी से उग जाती हैं। अतः ये फसलें भविष्य में खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती हैं। भारत में लोगों को अपनी आहार श्रृंखला में ज्यादा से ज्यादा श्रीअन्न को शामिल करने के लिए अधिक प्रयास करने की जरूरत है।


प्रजातियां और किस्में

रागी या फिंगर मिलेट
  • किस्में: सीएफएमवी-2, सीएफएमवी-3, फूले केसरी, बिरसा मरुवा, दापोली, छत्तीसगढ़ रागी-3, वीएल-382.
  • गुण: वीएल-378 रागी, जिसे मंडुआ या फिंगर मिलेट के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा बीज है जिसमें फाइबर, कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी खेती कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और महाराष्ट्र के शुष्क क्षेत्रों में भी की जाती है।

फॉक्सटेल मिलेट
  • किस्में: सूर्यानंदी, रेनाडू, गरुनम, एटीएल-1, राजेंद्र कौनी-1, एसआई-3156
  • गुण: फॉक्सटेल मिलेट को हिंदी में कंगनी कहते हैं। यह वार्षिक घास का पौधा है जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद बीज उत्पादित करता है। कंगनी में फाइबर, प्रोटीन और कई तरह के मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं। यह दुनिया का सबसे पुराना मिलेट है और भारत समेत कई देशों में उगाया जाता है। कंगनी के बीजों का रंग अलग-अलग हो सकता है। इन पर पतला छिलका होता है, जो आसानी से उतर जाता है। कंगनी के बीजों का स्वाद हल्का मीठा होता है और इनका सेवन गेहूं या धान के साथ किया जा सकता है। इसकी खेती मुख्यत: आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु व कर्नाटक में की जाती है।

प्रोसो मिलेट
  • किस्में: प्रतापचीना-01, पीआरसी-01, टीएनएमयू-202, टीएनएमयू-151, टीएनएएमयू-64, डीएच-48, सीओ-05, एटीएल-01
  • गुण: प्रोसो मिलेट को हिंदी में छैना या पुनर्नवा कहते हैं। प्रोसो मिलेट को आहार के रूप में शामिल किया जाता है। इसके अलावा पक्षियों के लिए बीज और इथेनॉल बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। प्रोसो मिलेट के दानों में विटामिन, खनिज और अमीनो एसिड होते हैं। इसके साथ ही इसमें स्टार्च और एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं। इसके बीजों में ऐसे घटक होते हैं, जो रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को दुरुस्त करते हैं और लिवर क्षति को कम करते हैं। इसके अलावा इसमें लेसिथिन भी होता है, जो तंत्रिका स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

कोडो मिलेट
  • किस्में: टीएनएयू-86, केएमवी-545, केएमवी-551, गुजरात कोडो मिलेट-04, सीआरके-369-25
  • गुण: भारत में कोडो मिलेट को ज्यादातर दक्कन क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसकी खेती हिमालय की तलहटी तक फैली हुई है। जब यह फसल पककर तैयार होती है, तो इसके दाने लाल और भूरे रंग के हो जाते हैं। कोडो मिलेट पाचन फाइबर एवं आयरन, एंटीऑक्सीडेंट जैसे खनिजों से भरपूर है। इसमें फॉस्फोरस की मात्रा अन्य मिलेट्स की तुलना में कम होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट मात्रा ज्यादा होती है। यह एक पौष्टिक अनाज है, जिसे शुगर फ्री धान या अकाल का अनाज भी कहा जाता है। कोडो मिलेट में वसा की मात्रा बेहद कम और फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है। इसे खाने से वजन नहीं बढ़ता है। यह ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ने से रोकता है।

बार्नयार्ड मिलेट
  • किस्में: वीएल मदिरा-207, डीएचबीएम-93-2, डीएचबीएम-23-3, फूले, भारती-1, एमडीयू-01, सीओ-02, प्रताप सांवा-08, (ईआर-64)
  • गुण: इसे हिंदी में सांवा कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम इचिनोक्लोआ फर्मेंटेसिया है। बार्नयार्ड मिलेट एक अल्पावधि फसल है। प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी उगाई जा सकती है। यह कई तरह के जैविक और अजैविक तनावों को सहन कर सकती है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बार्नयार्ड मिलेट की खेती की जा सकती है। इसके अलावा अनुपजाऊ भूमि पर भी इसकी खेती की जा सकती है, जहां धान नहीं उगाया जा सकता है। बार्नयार्ड मिलेट के दानों को बाजरे के साथ मिलाकर भी खाया जा सकता है। बार्नयार्ड मिलेट में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं। जैसे कि विटामिन, खनिज, आहार फाइबर, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट, इसमें आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और विटामिन-बी भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं। नवरात्रि जैसे व्रतों के दौरान इसका इस्तेमाल डोसा, ढोकला और धान पुलाव जैसे कई व्यंजन बनाने में किया जाता है। इसमें मौजूद पोषक तत्वों की वजह से यह व्रत के दौरान भूख मिटाने के लिए अच्छा माना जाता है। इसकी खेती मुख्यत: उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में होती है।

ज्वार
  • किस्में: सीएसवी-27, सीएसवी-41, सीएसवी-15, सीएसवी-23, सीएसएच-30, सीएसएच-41, सीएसएच-27, सीएसएच-16, सीएसएच-15, आरएस-29
  • गुण: ज्वार को मोटे दानों का राजा भी कहते हैं। इसकी तासीर गर्म होती है। ज्वार में मिनरल, प्रोटीन और विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स जैसे कई पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा ज्वार में काफी मात्रा में पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और आयरन भी होता है। इसे पशु और मानव दोनों के लिए उगाया जाता है। ज्वार का उत्पादन मुख्यत: महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और हरियाणा में होता है।

बाजरा
  • किस्में: आईसीएमए-94444, आर-56
  • गुण: बाजरा एक ऐसी फसल है, जिसे पशु और मानव दोनों के लिए उगाया जाता है। इसके दानों में पोषक तत्व जैसे-प्रोटीन, फाइबर प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह सबसे ज्यादा बोया जाने वाला अनाज है। इसकी खेती मुख्यत: पश्चिमी राजस्थान में ज्यादा होती है। इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और आंध्र प्रदेश में भी की जाती है। यह फॉस्फोरस और कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है, जो पीक बोन डेंसिटी प्राप्त करने में भी सहायता करता है।

ब्राउनटॉप मिलेट
  • किस्में: एचबीआर-2, जीबीयूबीटी-6
  • गुण: ब्राउनटॉप मिलेट को हिंदी में हरी कंगनी भी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्राचियारिया रामोसा (एल.) स्टेफ या यूरोक्लोआ रामोसा (एल.) आरडी वेबस्टर है। यह एक कम प्रचलित फसल है, जिसे भारत के कुछ ही राज्यों में उगाया जाता है। इसे ज्यादातर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। इसे कन्नड़ में कोरली, तेलुगु में अंडु कोरालू और तमिल में पाला पुल के नाम से जाना जाता है। ब्राउनटॉप का उपयोग अनाज के रूप में, पक्षियों को खिलाने के लिए और उद्योगों में कच्ची सामग्री के रूप में भी किया जाता है। इसका उपयोग खिचड़ी, डोसा, उपमा आदि व्यंजन बनाने में किया जाता है।

लिटिल मिलेट
  • किस्में: सीएलएमवी-1 (जैकर सामा-1), एलएमवी-518, छत्तीसगढ़ सोन कुटकी, जीएनवी-3, फूले एकादशी, जवाहर कुटकी-4 (जेके-4)
  • गुण: लिटिल मिलेट को हिंदी में कुटकी कहते हैं। यह एक छोटा सा श्रीअन्न है, इसे भारत में 2100 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जाता है। यह चीना/प्रोसो मिलेट की एक प्रजाति है। कुटकी के बीज चीना/प्रोसो मिलेट की तुलना में बहुत छोटे होते हैं। कुटकी में कार्बोहाइड्रेट, फेनोलिक और एंटीऑक्सीडेंट तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। ये मधुमेह, कैंसर, मोटापा जैसे मेटाबॉलिक संबंधी विकारों को रोकने में मदद करते हैं। कुटकी में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल्स भी भरपूर मात्रा में होते हैं। इसकी खेती कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बिहार, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है।

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