जल, जीवन का आधार है और कृषि के लिए तो यह एक अनिवार्य घटक है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता फसलों की पैदावार और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पारंपरिक रूप से, सिंचाई के लिए सतही जल, जैसे नदियों, झीलों और नहरों का उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में भूजल (भूमिगत जल) का उपयोग तेजी से बढ़ा है। यह लेख सिंचाई के लिए भूजल के उपयोग के विभिन्न पहलुओं, इसके फायदों और इससे जुड़ी चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करता है।
भूजल: एक महत्वपूर्ण संसाधन
भूजल वह जल है जो मिट्टी के कणों के बीच और चट्टानों की दरारों में जमा होता है। यह बारिश और बर्फ के पिघलने से रिचार्ज होता है। भारत में, भूजल का उपयोग मुख्य रूप से नलकूपों (ट्यूबवेल) और कुओं के माध्यम से किया जाता है। पिछले कुछ दशकों में, बिजली की उपलब्धता और पंपिंग तकनीक में प्रगति ने किसानों को भूजल तक आसानी से पहुंच प्रदान की है, जिससे इसका उपयोग काफी बढ़ गया है।
भूजल के उपयोग के फायदे (Advantages of Groundwater Use)
भूजल का उपयोग कई तरह से फायदेमंद है, यही वजह है कि किसानों के बीच यह इतना लोकप्रिय हो गया है:
1. विश्वसनीय और सुनिश्चित जल आपूर्ति (Reliable and Assured Water Supply)
- मौसम पर निर्भरता कम: सतही जल स्रोत जैसे नदियां और नहरें मॉनसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं। सूखे या कम बारिश वाले वर्षों में ये स्रोत सूख जाते हैं, जिससे फसलें नष्ट हो सकती हैं। भूजल एक अधिक विश्वसनीय विकल्प है क्योंकि यह वर्ष भर उपलब्ध रहता है, भले ही बारिश कम हुई हो।
- सूखे से बचाव: भूजल फसलों को सूखे की स्थिति में भी पानी प्रदान करता है, जिससे किसानों को लगातार पैदावार मिलती रहती है और उनकी आय सुरक्षित रहती है।
2. बेहतर फसल प्रबंधन (Better Crop Management)
- मांग के अनुसार पानी की उपलब्धता: किसान अपनी फसलों की आवश्यकता के अनुसार, जब भी उन्हें पानी चाहिए, भूजल का उपयोग कर सकते हैं। यह उन्हें सिंचाई के समय और मात्रा को नियंत्रित करने की स्वतंत्रता देता है।
- उचित समय पर सिंचाई: उचित समय पर पानी देने से फसलों का विकास बेहतर होता है और पैदावार बढ़ती है। भूजल का उपयोग करके किसान यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनकी फसल को उसकी सबसे महत्वपूर्ण विकास अवस्थाओं में पर्याप्त पानी मिले।
3. स्थानीय नियंत्रण और स्वतंत्रता (Local Control and Independence)
- सरकार या प्राधिकरण पर निर्भरता कम: नहरों और बांधों जैसी सतही जल परियोजनाओं के लिए सरकार या जल प्राधिकरणों पर निर्भर रहना पड़ता है। भूजल का उपयोग करने वाले किसान अपने जल स्रोत के मालिक होते हैं और उन्हें पानी के आवंटन या वितरण के नियमों का पालन नहीं करना पड़ता।
- आर्थिक स्वतंत्रता: किसान अपनी खेती की योजनाएं अपने जल स्रोत की उपलब्धता के अनुसार बना सकते हैं, जिससे उन्हें अपनी फसल चयन और फसल चक्र में अधिक लचीलापन मिलता है।
4. उच्च जल-उपयोग दक्षता (High Water-Use Efficiency)
- कम बर्बादी: भूजल का उपयोग आमतौर पर नलकूपों के माध्यम से सीधे खेतों तक किया जाता है। इस प्रक्रिया में वाष्पीकरण और रिसाव के कारण होने वाली जल की बर्बादी कम होती है, जो नहरों से सिंचाई में आम है।
- तकनीकी अनुप्रयोग: भूजल को ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है, जो जल उपयोग दक्षता को और भी बढ़ाती हैं।
5. किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार (Improvement in Farmers' Economic Status)
- उच्च पैदावार: भूजल की सुनिश्चित उपलब्धता से किसान एक वर्ष में एक से अधिक फसलें (बहु-फसलन) उगा सकते हैं, जिससे उनकी कुल आय में वृद्धि होती है।
- जोखिम कम: सूखे के जोखिम को कम करके, भूजल किसानों की आजीविका को अधिक स्थिर बनाता है और उन्हें फसल खराब होने के डर से बचाता है।
भूजल के उपयोग के नुकसान (Disadvantages of Groundwater Use)
भूजल का अनियंत्रित और अत्यधिक उपयोग कई गंभीर चुनौतियों और नकारात्मक परिणामों को जन्म देता है:
1. जल स्तर में भारी गिरावट (Severe Decline in Water Levels)
- अत्यधिक दोहन (Over-exploitation): भारत के कई हिस्सों में, विशेषकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में, भूजल का दोहन उसके पुनर्भरण (रिचार्ज) की दर से कहीं अधिक हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर लगातार गिर रहा है।
- गहरे नलकूप: भूजल स्तर में गिरावट के कारण किसानों को अपने नलकूपों को और अधिक गहरा खोदना पड़ता है, जिससे पंपिंग की लागत बढ़ जाती है और छोटे किसानों के लिए यह अलाभकारी हो जाता है।
2. जल की गुणवत्ता में गिरावट (Deterioration of Water Quality)
- फ्लोराइड और आर्सेनिक का प्रदूषण: अत्यधिक दोहन से भूजल में फ्लोराइड, आर्सेनिक, और अन्य भारी धातुओं का स्तर बढ़ सकता है। ये तत्व स्वाभाविक रूप से भू-स्तरों में मौजूद होते हैं और जब जल स्तर गिरता है तो वे पानी में मिल जाते हैं।
- लवणता में वृद्धि (Salinity Increase): तटीय क्षेत्रों में, भूजल के अधिक दोहन से समुद्री जल का अंतर्वाह (sea water intrusion) हो सकता है, जिससे भूजल खारा हो जाता है और सिंचाई के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
- कृषि रसायनों का प्रदूषण: अत्यधिक सिंचाई और उर्वरकों के उपयोग से ये रसायन भूजल में रिस सकते हैं, जिससे जल की गुणवत्ता और भी खराब हो जाती है।
3. ऊर्जा की खपत में वृद्धि और कार्बन फुटप्रिंट (Increased Energy Consumption and Carbon Footprint)
- अधिक बिजली की आवश्यकता: जैसे-जैसे भूजल स्तर गिरता है, पानी को बाहर निकालने के लिए अधिक शक्तिशाली पंपों और अधिक बिजली की आवश्यकता होती है। इससे किसानों की लागत बढ़ती है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: पंप चलाने के लिए आवश्यक बिजली की बड़ी मात्रा, खासकर अगर यह जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होती है, तो कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाती है और जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
4. सामाजिक और आर्थिक असमानता (Social and Economic Inequality)
- छोटे किसानों के लिए चुनौती: भूजल का उपयोग करने के लिए नलकूप लगाने और चलाने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। बड़े और अमीर किसान इसे आसानी से वहन कर सकते हैं, जबकि छोटे किसानों के लिए यह मुश्किल होता है, जिससे उनके बीच असमानता बढ़ती है।
- जल संघर्ष: कुछ क्षेत्रों में, भूजल के दोहन को लेकर व्यक्तिगत किसानों के बीच संघर्ष भी उत्पन्न हो सकते हैं, खासकर जब जल स्तर बहुत कम हो जाता है।
5. पारिस्थितिकीय प्रभाव (Ecological Impact)
- नदियों और झीलों पर प्रभाव: भूजल और सतही जल परस्पर जुड़े होते हैं। भूजल का अत्यधिक दोहन नदियों, तालाबों और झीलों में पानी के प्रवाह को कम कर सकता है, जिससे इन पारिस्थितिकी प्रणालियों को नुकसान पहुंचता है।
- भूमि धंसना (Land Subsidence): कुछ मामलों में, भूजल के अत्यधिक निष्कर्षण से मिट्टी की संरचना कमजोर हो जाती है, जिससे भूमि धंसने (land subsidence) की घटना हो सकती है।
समाधान और आगे की राह (Solutions and Way Forward)
भूजल के उपयोग से जुड़े जोखिमों को कम करने और इसके लाभों को बनाए रखने के लिए, एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं:
- जल पुनर्भरण को बढ़ावा देना (Promoting Water Recharge): वर्षा जल संचयन (rainwater harvesting), तालाबों और चेक डैम का निर्माण, और रिचार्ज शाफ्ट जैसे तरीकों से भूजल को रिचार्ज करने के प्रयास करने चाहिए।
- जल उपयोग दक्षता में सुधार (Improving Water Use Efficiency): ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों को बड़े पैमाने पर अपनाना चाहिए। सरकार को इन तकनीकों को अपनाने के लिए किसानों को सब्सिडी और सहायता प्रदान करनी चाहिए।
- जल-गहन फसलों को हतोत्साहित करना (Discouraging Water-Intensive Crops): उन क्षेत्रों में जहां भूजल का स्तर कम है, सरकार को किसानों को धान और गन्ना जैसी जल-गहन फसलों के बजाय कम पानी वाली फसलें जैसे बाजरा और दालें उगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- ऊर्जा नीति में बदलाव (Changes in Energy Policy): सिंचाई के लिए मुफ्त या अत्यधिक सब्सिडी वाली बिजली की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। बिजली की लागत को भूजल के दोहन से जोड़कर किसान इसके उपयोग के प्रति अधिक जागरूक हो सकते हैं।
- सामुदायिक प्रबंधन (Community Management): भूजल का प्रबंधन व्यक्तिगत के बजाय सामुदायिक स्तर पर होना चाहिए ताकि इसके उपयोग को नियंत्रित किया जा सके और सभी किसानों को समान रूप से लाभ मिल सके।
सिंचाई के लिए भूजल का उपयोग भारत की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गया है, जो किसानों को एक विश्वसनीय और लचीला जल स्रोत प्रदान करता है। इसने निश्चित रूप से खाद्य उत्पादन और किसानों की आजीविका को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, इसके अनियंत्रित उपयोग से भूजल स्तर में भारी गिरावट, जल की गुणवत्ता में कमी और पर्यावरणीय क्षति जैसी गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, हमें एक टिकाऊ और एकीकृत जल प्रबंधन रणनीति की आवश्यकता है। भूजल का विवेकपूर्ण उपयोग, जल संरक्षण तकनीकों को अपनाना, और भूजल पुनर्भरण पर ध्यान केंद्रित करना ही भविष्य में कृषि और पर्यावरण दोनों के लिए सुनिश्चित समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।
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