कर्तित फूलों का सफल व्यापार घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में फूलों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। फूलों की गुणवत्ता केवल उनके अच्छे उत्पादन पर ही निर्भर नहीं करती, अपितु यह कटाई उपरांत प्रबंधन पर भी निर्भर करती है। फूलों की कटाई उपरांत प्रबंधन प्रणाली के मुख्य अंग हैं, बाज़ार की मांग, उत्पाद को खेत से बाज़ार तक पहुँचाने में लगने वाला समय, परिवहन के माध्यम इत्यादि। कटाई उपरांत पुष्पोत्पादन में होने वाली मात्रात्मक व गुणात्मक हानि से व्यापार में कमी आती है। इस कमी को कटाई उपरांत होने वाले प्रबंधन प्रणाली से रोक सकते हैं। कटाई उपरांत उचित प्रबंधन प्रणाली न सिर्फ़ हमें अच्छी गुणवत्ता वाले फूल देती है, बल्कि जिस समय बाज़ार में फूलों की बहुतायत हो, उस समय भंडारण का एक अच्छा विकल्प भी प्रदान करती है।
फूलों की जीर्णता को मुख्यत: दो कारक प्रभावित करते हैं – जैविक और वातावरणीय।
जैविक कारक
- श्वसन: फूलों में भंडारित आहार श्वसन क्रिया के दौरान कम होने से जीर्णता में कमी आने से फूल मुरझा जाते हैं और ग्राहक को कम आकर्षक लगते हैं।
- एथिलीन उत्पादन: पौधे में प्राकृतिक रूप से होने वाली मेटाबॉलिक क्रिया के दौरान एथिलीन का उत्पादन होता है। सभी उच्चवर्गीय पौधों में ऊतकों द्वारा एथिलीन का उत्पादन होता है। यह एक हार्मोन है जो प्राक्रतिक आयु बढ़ाकर फूलों को परिपक्वता प्रदान करता है।
- फूलों में संरचनात्मक परिवर्तन: हरित लवक की कमी, वर्णकों का विकास (पीला व नारंगी रंग), एंथोसायनिन (लाल व नीला रंग), ऊतकों का भूरापन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, जैविक अम्ल, अमीनो अम्ल, वसा इत्यादि की मात्रा में परिवर्तन फूलों के गुणों को प्रभावित करते हैं।
- वृद्धि और विकास: कुछ फूलों में गुरुत्वानुवर्ती का प्रभाव पड़ता है, जैसे ग्लैडियोलस, एन्टीराइनम आदि। इन फूलों को सतह के सापेक्ष भंडारण करने पर गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस कारण इनसे बाज़ार में कम मूल्य प्राप्त हो पाता है। इन्हें सीधा खड़ी अवस्था में भंडारित या परिवहन करना आवश्यक है।
- वाष्पोत्सर्जन या जल की हानि: जल हानि फूलों में अवनति का एक कारण है। इसके परिणामस्वरूप फूलों के भार में कमी आ जाती है। इससे फूल मुरझाकर सिकुड़ जाते हैं, फूलों की बनावट की गुणवत्ता (कोमलता, खिलना, कड़कपन आदि) व पोषक तत्वों का ह्रास होता है।
- शारीरिक क्रियात्मकों का रुकना: फूलों को खुले में या अनावश्यक तापमान पर रखने के परिणामस्वरूप शारीरिक क्रियात्मकों की कमी, जैसे प्रशीतन क्षति, द्रुतशीतक क्षति, ऊष्मा क्षति इत्यादि आ जाती हैं।
- भौतिक क्षति: विभिन्न प्रकार की भौतिक क्षति (सतह क्षति, कारक, घर्षण या हिलने-डुलने से होने वाली क्षति आदि) फूलों की गुणवत्ता में हानि के कारण हैं। मशीनरी क्षति से फूलों में जल की कमी, कवकों का फैलना और एथिलीन उत्पादन होता है।
- रोगों द्वारा क्षति: कवक व जीवाणुओं की गतिविधि से उत्पन्न लक्षणों से फूलों की गुणवत्ता एवं घटकीय आयु कम होती है।
- कटाई पूर्व के कारक: फूलों के कटाई उपरांत प्रबंधन के लिए कटाई पूर्व के कारकों का जानना बहुत आवश्यक है। कटाई पूर्व कारकों में फसल की आनुवंशिकता, किस्म का प्रकार, वातावरण कारक (जैसे प्रकाश, तापमान, आर्द्रता, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा आदि), खाद और उर्वरकों का प्रयोग, सिंचाई, कीट तथा रोगों का प्रकोप व इनके नियंत्रण में रसायनों का प्रयोग और फूलों की कार्यिकी अवस्था इत्यादि पर निर्भर करते हैं।
- कटाई उपरांत के कारक: कटाई उपरांत के कारकों में वातावरण का तापमान, प्रकाश, आर्द्रता, पानी की गुणवत्ता, श्वसन दर, एथिलीन का बनना, परिरक्षक का प्रयोग, हवा का संचरण, रिक्त स्थान, श्रेणीकरण, पैकिंग, परिवहन के दौरान का वातावरण इत्यादि शामिल हैं। ये फूलों की क्षति को कम करके उनकी आयु वृद्धि में सहायक होते हैं।
फूलों का रखरखाव
पुष्पवृंतों में पानी का संचरण: कटाई उपरांत फूलों के पुष्पवृंतों को जल्दी से पानी नहीं मिलने पर फूल मुरझा जाते हैं। यह मुख्यत: दो कारणों से होता है: (प्रथम) - कटाई उपरांत पुष्पवृंतों में वायु के प्रवेश से जल का संचरण रुक जाना। (द्वितीय) - तनों के कटे भाग के पास जीवाणुओं के होने से इस भाग में जल संचरण अवरुद्ध हो जाना। कर्तित फूलों को जल्दी से जल्दी पानी में रखना चाहिए ताकि वायु के प्रवेश को कम किया जा सके।
इसके बाद फिर से पुष्पवृंतों को पानी में लगभग एक इंच तक कटाई करें, जिससे पुष्पवृंतों में स्थित वायु के बुलबुले और जीवाणुओं को हटाया जा सके। ये जीवाणु, खमीर और अन्य सूक्ष्मजीव, सभी जगहों पर जैसे मृदा में, पौधों पर और अन्य जीवाश्मयुक्त पदार्थों में उपस्थित होते हैं। जीवाणु कोई भी तरल पदार्थ, जिसमें शर्करा और अन्य जीवाश्मयुक्त पदार्थ हो, बहुत जल्दी वृद्धि करते हैं। सामान्यत: व्यावसायिक उत्पादों में, हाइड्रोक्यूनाइल लवण, एल्युमीनियम सल्फेट और धीरे-धीरे उत्सर्जित करने वाले क्लोरीन घटक आदि आते हैं।
वातावरणीय अनुकूलन: वे फूल जो काटने, भंडारण या परिवहन के बाद मुरझाने लगते हैं, उनको तरोताजा अवस्था में लाने की विधि को वातावरणीय अनुकूलन (कंडीशनिंग) कहते हैं। इसके लिए पानी में जीवाणुरोधी पदार्थ डाले जाते हैं तथा उसे सिट्रिक अम्ल से अम्लीय बनाया जाता है। इस घोल में जैसे ट्विन-20 (0.01-0.1 प्रतिशत) आदि डाला जाता है। इनका पी.एच. मान 3.0 से 3.5 तक होता है।
पूर्व-शीतलन: कटाई उपरांत फूलों से खेत की ऊष्मा को कम करने के लिए इन्हें ठंडी हवा, ठंडे पानी इत्यादि से उपचारित किया जाता है। इससे फूलों का तापमान कम होगा और उनकी घटकीय आयु अधिक होगी।
स्पंदन (पल्सिंग): इस विधि में फूलों की श्वसन व वाष्पोत्सर्जन की दर को कम किया जाता है। इससे उनकी कटाई उपरांत आयु को बढ़ाने के लिए उन्हें चीनी और जीवाणुनाशक घोल में कुछ समय के लिए उपचारित किया जाता है। इनका भंडारण या परिवहन अधिक समय के लिए होता है।
क्लोरीन का प्रयोग: कटाई उपरांत फूलों को शीघ्र (2 दिन से कम समय में) उपयोग करना हो तब क्लोरीन का प्रयोग करते हैं। जब फूलों को अधिक दिनों तक रखना हो, तब जलयोजन घोल का प्रयोग करते हैं। जलयोजन घोल अधिक स्थायी होते हैं। इनका दोबारा उपयोग कर लागत को कम कर सकते हैं। शुरू में जीवाणुओं को नियंत्रित करने के लिए क्लोरीन का प्रयोग करें, उसके बाद एल्युमीनियम सल्फेट आधारित जलयोजन का प्रयोग कर आगे के 6 दिनों तक जीवाणुओं को नियंत्रित कर सकते हैं।
कली का खिलना: बाज़ार में मांग के कारण कई बार फूलों की कटाई उस समय कर ली जाती है जब उसकी कलियाँ या तो अपरिपक्व होती हैं या पूर्ण रूप से खुली नहीं होती हैं। अपरिपक्व, अर्ध-विकसित कलियों को पूर्ण रूप से खिलने के लिए कुछ फूलों जैसे गुलदाउदी, गुलाब, कार्नेशन, ग्लैडियोलस और डॉग फ्लावर इत्यादि में जीवाणुनाशक, चीनी एवं हार्मोन के घोल जैसे जिब्रेलिक अम्ल, बेंजाइल एडेनिन का प्रयोग किया जाता है।
पैकिंग: फूलों की कटाई उपरांत उन्हें स्थानीय एवं दूर-दराज की मंडी में भेजने के लिए कुछ निश्चित मापदंडों के आधार पर श्रेणीकृत किया जाता है। श्रेणीकरण के बाद इन फूलों के तने/डंडी को चीनी एवं रसायन के घोल में कुछ समय (3-5 मिनट) तक डुबोना चाहिए। तत्पश्चात 5, 10, 20, 50 व 100 के बंडल में बांध देना चाहिए। कर्तित फूलों को लहरदार गत्ते के डिब्बों में बंद करना चाहिए। फूलों को किसी भी प्रकार की क्षति से बचाने के लिए पैकिंग पात्र में रुई या अखबार की कतरनों का प्रयोग करना चाहिए।
फूलों का शीत भंडारण: पूर्व-शीतलन एवं स्पंदन के पश्चात फूलों का भंडारण कम तापमान पर करना चाहिए ताकि पुष्प मंडी में फूलों की आपूर्ति को नियमित किया जा सके अथवा मंडी में फूलों की अत्यधिक आपूर्ति को नियंत्रित किया जा सके। फूलों के भंडारण के लिए 32-35 डिग्री फारेनहाइट और 90 प्रतिशत आपेक्षित आर्द्रता आदर्श होती है। 32 डिग्री फारेनहाइट की तुलना में 50 डिग्री फारेनहाइट पर 2 से 3 गुना ज़्यादा फूलों की क्षति होती है।
तापमान और आर्द्रता को मापने का बैटरी चालित डिजिटल हाइग्रोथर्मामीटर एक अच्छा उपकरण है। यह उपकरण अधिकतम व न्यूनतम तापमान को भी मापता है। फूलों के भंडारण के लिए नियंत्रित वातावरण, परिवर्तित वातावरण या कम दबाव आदि आधुनिक तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है। जहाँ तक संभव हो, पैकिंग हेतु पारदर्शी एवं आकर्षक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए, जो ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित कर सकें।
परिवहन: फूलों को लहरदार गत्ते के डिब्बों में मंडी भेजना चाहिए। फूल एथिलीन गैसों के प्रति संवेदनशील हैं, उन्हें डिब्बों में एथिलीन स्क्रबर जिसमें पोटेशियम परमैंगनेट हो नामक रसायन का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ पुष्प जैसे ग्लैडियोलस तथा डॉग फ्लावर की डंडियाँ लेटाकर रखने पर भूमि की तरफ झुक जाती हैं, उन्हें खड़ी अवस्था में ही मंडी ले जाना चाहिए। कुछ पुष्पीय फसलें जैसे गुलदाउदी, लिलियम, एल्स्ट्रोमेरिया इत्यादि को यदि प्रकाश रहित वाहन में मंडी भेजा जाए, तो उनकी पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, इसलिए जिस वाहन में इन्हें मंडी भेजा जा रहा हो, उसमें कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। जहाँ तक संभव हो, पुष्पों का परिवहन हिमीकृत वाहन में करना चाहिए। ऐसे हिमीकृत वाहनों का प्रयोग भारत के कुछ बड़े शहरों में तेज़ी से बढ़ रहा है। इसमें सबसे बड़ी परेशानी है कि ऐसे वाहन उत्पाद-विशेष के लिए प्रयुक्त नहीं होते, उनमें हर तरह के उत्पाद भरे होते हैं। फूलों की अपनी एक प्रकृति है, अतः इन्हें ऐसे वाहन में भेजा जाना चाहिए, जिन्हें केवल फूलों की प्रकृति के अनुसार ही तैयार किया गया हो।
फूलों की जीर्णता के वातावरणीय कारक
- तापमान: यह एक महत्वपूर्ण वातावरणीय कारक है। यह फूलों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। प्रत्येक 10 डिग्री सेल्सियस तापमान पर फूलों का ह्रास 2 से 3 गुना तक बढ़ जाता है।
- आपेक्षित आर्द्रता: फूलों की कटाई उपरांत आपेक्षित आर्द्रता पर जल ह्रास की दर निर्भर करती है, जैसे फूल और उसके आसपास की वायु के बीच वाष्प दाब कम आपेक्षित आर्द्रता के कारण तापमान को बढ़ा देता है।
- वातावरण का संघटन: ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में परिवर्तन अर्थात मात्रा में अधिकता (सीए या एमए भंडारण) या कमी तालक फूलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। एथिलीन की मात्रा, प्रकाश की मात्रा व अन्य वातावरणीय कारक आदि भी पुष्प की घटकीय आयु को प्रभावित करते हैं।
कटाई के दौरान के फूलों की जीर्णता कारक: कर्तित फूलों की दीर्घ सस्योत्तर आयु पाने हेतु कटाई के दौरान उसकी अवस्था, समय व माध्यम इत्यादि कारकों पर विशेष ध्यान रखना शामिल है।
- कटाई की अवस्था: यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है जिस पर फूलों की दीर्घ आयु एवं गुणवत्ता आधारित होती है। फूलों को उस समय काटा या तोड़ा जाता है जब वे पूरी तरह से काटने योग्य हो जाएं लेकिन कुछ फूलों को खिलने से पूर्व, जब पुष्पिकाओं में रंग दिखने लगे या पंखुड़ियाँ अर्धखुली या पूरी खुली अवस्था में होने पर ही काट लिया जाता है। कर्तित फूलों को यदि बहुत जल्दी काटा जाता है, तो ऐसे में पुष्पों की गुणवत्ता कम हो जाती है। यदि फूलों की कटाई देर से की जाए, तो वे जल्दी ही नष्ट हो जाएंगे। इस प्रकार कटाई की उपयुक्त अवस्था का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। फूलों की कटाई की परिपक्वता पौधे की किस्म, प्रजाति, मंडी की दूरी तथा उपभोक्ता की पसंद पर निर्भर करती है। स्थानीय बाज़ारों/मंडियों के लिए फूलों की कटाई निर्धारित अवस्था से थोड़ा पहले कर लेनी चाहिए।
- कटाई का समय: फूलों की कटाई जब तापमान कम हो तो जल्दी सुबह या देर शाम के समय की जाती है। सुबह के समय काटे हुए फूल अधिक तरोताजा रहते हैं। यद्यपि शाम के समय काटे हुए फूलों में सर्वाधिक कार्बोहाइड्रेट का संचय होता है जो फूलों की सस्योत्तर दीर्घ आयु निर्धारित करता है।
- कटाई का तरीका: फूलों की कटाई तेज धार वाले चाकू या कैंची (सीकेटीयर) से की जाती है जिससे फूलों को कम से कम क्षति हो तथा वे ताजा बने रहें। फूलों को 30 डिग्री कोण पर तिरछा काटना चाहिए। वे फूल जिनका पुष्पवृंत कठोर होता है, उन पर प्राय: कोणीय चीरा लगाना चाहिए, जिससे उनकी सतह चिकनी बनी रहे और फूलों में पानी का अवशोषण अच्छी तरह से हो सके।
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