मैकाडामिया (Macadamia) ऑस्ट्रेलिया का मूल वृक्ष है, जो उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई तट के वर्षा वनों में पाया जाता है। मैकाडामिया प्रोटियासी परिवार का सदस्य है। इसे खाने योग्य मेवों के लिए उगाया जाता है। इसकी गिरी स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। मैकाडामिया की कई प्रजातियाँ ऑस्ट्रेलिया में मौजूद हैं, लेकिन केवल दो प्रजातियाँ, मैकाडामिया इंटीग्रिफोलिया (Macadamia Integrifolia) और मैकाडामिया टेट्राफिला (Macadamia Tetraphylla) एवं उनके संकर की व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है। इनमें मैकाडामिया इंटीग्रिफोलिया अधिक लोकप्रिय है। इसके फलों का छिलका चिकना और गुठली लगभग गोलाकार, चिकनी सतह वाली होती है, जबकि मैकाडामिया टेट्राफिला का छिलका खुरदुरा एवं गुठली थोड़ी अंडाकार होती है। मैकाडामिया एक सदाबहार वृक्ष हैं जो 10 मीटर तक ऊँचे हो सकते हैं। इसके फल गोल, गहरे हरे रंग तथा 2-4 सेमी व्यास के होते हैं। फल का छिलका निकालने पर बहुत सख्त गोलाकार भूरे रंग की गुठली प्राप्त होती है। इसके अंदर सफेद क्रीम रंग की गिरी होती है। मैकाडामिया नट स्वाद में काजू जैसा होता है लेकिन इसका आकार गोलाकार और गिरी अधिक वसायुक्त होती है।
पोषण मूल्य और उपयोग: मैकाडामिया की गिरी में 14 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 76 प्रतिशत वसा और 8 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है। एक सौ ग्राम मैकाडामिया की गिरी 740 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करती है। इसमें थायमिन, विटामिन बी-6, मैंगनीज, आयरन, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। बादाम और काजू की तुलना में, मैकाडामिया की गिरी में अधिक वसा और अपेक्षाकृत कम प्रोटीन होता है। इसके वसा में एकल असंतृप्त वसा की अधिक मात्रा (59%) होती है, जिसमें 17% ओमेगा-7-पामिटोलिक एसिड होता है। मैकाडामिया की गिरी का उपयोग नाश्ते, मिठाइयों, बिस्कुट और आइसक्रीम आदि बनाने में भी किया जाता है। मैकाडामिया के छिलके का उपयोग क्रीम, बायोचार, कार्बन फिल्टर आदि में किया जा सकता है।
क्षेत्रफल एवं उत्पादन: मैकाडामिया का वैश्विक उत्पादन वर्ष 2018 में 211,000 टन था। दक्षिण अफ्रीका 54,000 टन उत्पादन के साथ मैकाडामिया का अग्रणी उत्पादक था। मैकाडामिया का व्यावसायिक उत्पादन भूमध्यसागरीय, समशीतोष्ण या उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले दक्षिण पूर्वी एशिया, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका के कई देशों में किया जाता है। भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा के कुछ बागानों में मैकाडामिया की खेती का सफल प्रयास किया गया है, लेकिन व्यावसायिक खेती अभी आरंभ नहीं हुई है।
जलवायु एवं मिट्टी: मैकाडामिया के वृक्षों को गर्म, आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। उपजाऊ मिट्टी वाले और 100 से 200 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र मैकाडामिया की खेती के लिए उपयुक्त होते हैं। सामान्यतौर पर मैकाडामिया के वृक्ष 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पसंद नहीं करते हैं। हालांकि, एक बार स्थापित होने के बाद, वे 2.50 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकते हैं। मैकाडामिया की खेती के लिए लंबे शुष्क मौसम और 5.5-7.5 पीएच मान के साथ अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट हल्की मिट्टी वाली जगहों को प्राथमिकता दी जाती है। भारत में बेंगलुरु की परिस्थितियों में काकेआ (Kakea) और किकमा (Kikma) किस्में अच्छी तरह से उगती पाई गई हैं।
किस्में (Varieties)
- ब्यूमोंट (Beaumont): यह मैकाडामिया इंटीग्रिफोलिया × एम. टेट्राफिला के संकरण से विकसित वाणिज्यिक किस्म है, जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में व्यापक रूप से उगाई जाती है। इसमें वसा की मात्रा अधिक होती है, लेकिन मिठास नहीं होती है। यह सबसे जल्दी फल देने वाली किस्मों में से एक है, आमतौर पर चौथे वर्ष में फल देना आरंभ कर देती है और उसके बाद पैदावार में लगातार वृद्धि होती है। व्यावसायिक बागानों में, 8 वर्ष की आयु तक यह प्रति वृक्ष 18 किलोग्राम तक पैदावार देती है।
- नीलमैक-III (Nelmac-III): यह मैकाडामिया इंटीग्रिफोलिया × एम. टेट्राफिला के संकरण से विकसित एक दक्षिण अफ्रीकी किस्म है। इसकी गिरी मीठी होती है। इसकी गिरी और मेवा का अनुपात अधिक है। दस वर्ष पुराने वृक्षों की औसत पैदावार 22 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है। यह 'ब्यूमोंट' के परागण के लिए एक लोकप्रिय किस्म है।
प्रवर्धन (Propagation): मैकाडामिया को बीजों द्वारा प्रवर्धित किया जा सकता है, लेकिन उत्पादकता और गिरी गुणवत्ता में अत्यधिक भिन्नता के कारण बीजू वृक्ष असंतोषजनक साबित हुए हैं। इसलिए, मैकाडामिया की व्यावसायिक खेती कलम किए गए वृक्षों से होती है। कलम किए गए पेड़ औसतन 3-4 गुना अधिक मेवा पैदा करते हैं। मैकाडामिया को बीजू वृक्ष के मूलवृंत पर वेज कलम (wedge grafting) द्वारा प्रवर्धित किया जाता है। पारंपरिक कलम द्वारा मैकाडामिया वृक्षों को बीज को अंकुरित करने से लेकर कलम और खेत में रोपण तक 24 माह लगते हैं। मिनी कलम द्वारा वृक्षों को बीज से 10-12 महीने लगते हैं और नई माइक्रो-कलम तकनीक में केवल 8-12 माह लग सकते हैं।
मूलवृंत (Rootstock): आमतौर पर मूलवृंत के लिए बीजू पौधों का उपयोग किया जाता है। मैकाडामिया के बीजू पौधे को बीज अंकुरण से लेकर कलम योग्य तैयार होने तक 8-10 महीने लगते हैं। दक्षिण अफ्रीका में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मूलवृंत एच-2 (H-2) है। इसका प्रवर्धन आसान और पौधे सशक्त एकसमान होते हैं।
रोपण (Planting): वृक्षों की संख्या, किस्म के प्रकार, मिट्टी की उर्वरता और स्थलाकृति के आधार पर रोपण की दूरी 6×3 मीटर से 10×4 मीटर तक हो सकती है। हालांकि मैकाडामिया स्व-परागित होता है, लेकिन बगीचे में कम से कम 2 किस्में लगाना बेहतर होता है।
खाद, उर्वरक और सिंचाई: खाद और उर्वरकों की मात्रा, मिट्टी के प्रकार और पौधों की आयु पर निर्भर करती है। आमतौर पर पौधों को 40-50 किलोग्राम गोबर की खाद के अलावा 450:150:500 ग्राम नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश प्रति पेड़ की वार्षिक खुराक की सिफारिश की जाती है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश को दो समान भागों में विभाजित कर देना चाहिए। सिंचाई की मात्रा वर्षा, वाष्पीकरण, मिट्टी के प्रकार और पौधों की आयु पर निर्भर करती है।
कटाई-छंटाई (Pruning): एक मुख्य तने और क्षैतिज शाखाओं के ढांचे के साथ एक वृक्ष बनाने के लिए, जमीन से आधे मीटर पर छंटाई करने की सिफारिश की जाती है। इसके बाद हर आधे मीटर के अंतराल पर छंटाई करने की सिफारिश की जाती है। इससे मुख्य तने और क्षैतिज शाखाओं का ढांचा तैयार हो जाता है। एक बार ढांचा बनने के बाद समय-समय पर कमजोर एवं क्षतिग्रस्त शाखाओं को काटते रहना चाहिए।
उपज, कटाई एवं कटाई उपरांत प्रबंधन: मैकाडामिया के फूल उभयलिंगी होते हैं। इसके बागानों में मधुमक्खियों की दो प्रजातियाँ प्रमुख परागणकर्ता हैं। औसतन 7 वर्षों के वृक्षों पर फल लगने लगते हैं। हालांकि, 20-वर्षीय वृक्ष पूर्ण उपज देते हैं और लगभग 40-60 वर्षों तक उपज देते रहते हैं। बेंगलुरु की परिस्थितियों में, फूल मार्च, जुलाई-अक्टूबर के दौरान आते हैं और फल अक्टूबर से मार्च में तैयार होते हैं। फल गुच्छों में लगते हैं और परिपक्व होने पर, छिलका सूखने और फटने लगता है। फल स्वाभाविक रूप से गिरते हैं और हाथ से एकत्र किए जा सकते हैं। बेंगलुरु की परिस्थितियों में 12 वर्ष पुराने वृक्ष से 20-22 किलोग्राम उपज प्राप्त की गई। फलों की तुड़ाई के बाद, तुरंत छिलका निकालने और सुखाने का काम शुरू करना चाहिए। कठोर खोल को तोड़ने के बाद, कच्ची गुठली को लगभग 1.5% नमी तक सुखाया जाता है। सामान्यतः इसे भूनकर और नमक डालकर खाया जाता है। भुने हुए मेवों का उपयोग चॉकलेट-लेपित नट कैंडी, बेकरी उत्पादों और आइसक्रीम में किया जा सकता है।
कीट प्रबंधन (Pest Management): युवा वृक्षों में मैकाडामिया फेल्टेड कॉसिड, शल्क कीटों, मैकाडामिया ट्विग-गर्डलर, मैकाडामिया पत्ती भेदक, लाल पत्ती भृंग प्रमुख कीट हैं। इनका प्रकोप होने पर आमतौर पर तुरंत छिड़काव की आवश्यकता होती है। अधिकांश बागानों में चूहे बड़ी समस्या हैं। चूहे पके फलों को नुकसान पहुंचाते हैं, इनका तुरंत नियंत्रण आवश्यक है।
रोग प्रबंधन (Disease Management): युवा वृक्षों में तना कैंकर (Stem Canker) प्रमुख रोग है। जहाँ नासूर छोटे होते हैं, वहाँ प्रभावित छाल और लकड़ी को एक तेज चाकू से छीलकर और पेंट के साथ पंजीकृत तांबेयुक्त कवकनाशी के साथ तनों को अच्छी तरह से भिगोना चाहिए। प्रभावित क्षेत्रों पर मेटालेक्सिल और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए। वैकल्पिक रूप से, प्रभावित वृक्षों पर फॉस्फोरस एसिड का दो से तीन माह नियमित छिड़काव करना चाहिए।
मैकाडामिया नट हमारे देश के लिए नई फसल है। भारत में मैकाडामिया के बहुत कम बागान हैं। इसके पोषक मूल्य के कारण इस गिरी की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। हमारे देश के कई क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं। यह फसल विविधीकरण और किसानों की आय बढ़ाने के लिए उपयुक्त हो सकती है।
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