सब्जी पौधशाला का उन्नत प्रबंधन: स्वस्थ पौध उगाएँ, बंपर उपज पाएँ | Scientific Management of Vegetable Nursery: Complete Guide

नर्सरी, यानि पौधशाला, उस स्थान को कहते हैं जहाँ बीजों की बुवाई कर छोटी-छोटी पौध तैयार की जाती है। जब तक ये पौध मुख्य खेत में लगाने के लिए तैयार न हो जाएँ, तब तक इनका उचित ध्यान रखा जाता है। कुछ सब्जियों में शुरुआती वृद्धि के समय से ही खास ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। जिन सब्जियों के बीज बहुत छोटे-छोटे आकार के होते हैं, उन सब्जियों की नर्सरी लगाकर पौध तैयार की जाती है और बाद में खेत में रोपाई की जाती है। इनमें टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च, बैंगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रोकली, प्याज, गांठगोभी आदि सब्जी फसलें शामिल हैं।

सब्जी उत्पादन में पौधशाला का महत्व अधिक है। वैज्ञानिक ढंग से पौधशाला का प्रबंधन अति आवश्यक है। यदि उन्नत तकनीक से पौधशाला का प्रबंधन न किया जाए, तो पूरी पौध नष्ट हो जाती है। इससे अधिक नुकसान के अलावा रोपाई से भी वंचित होना पड़ जाता है। ऐसे में विभिन्न सब्जियों के पौधों को वैज्ञानिक ढंग से पौधशाला में तैयार करना आवश्यक हो जाता है।


सब्जी पौधशाला का उन्नत प्रबंधन स्वस्थ पौध उगाएँ, बंपर उपज पाएँ   Scientific Management of Vegetable Nursery Complete Guide


मिट्टी के प्रकार: उन्नत और स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए उपजाऊ और स्वस्थ मिट्टी का होना भी बहुत ज़रूरी है। सब्जी फसलों की नर्सरी के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थों की अच्छी मात्रा उपलब्ध हो, ज़्यादा उपयुक्त रहती है। मिट्टी का पीएच मान 7 के आस-पास होना चाहिए। नर्सरी तैयार करने के लिए कुदाल या फावड़े की सहायता से नर्सरी वाली ज़मीन की जुताई कर लेनी चाहिए। मिट्टी के बचे हुए ढेले, पत्थर और खरपतवार हटाकर ज़मीन को समतल करना चाहिए। इसमें प्रति वर्ग मीटर मिट्टी के हिसाब से 2 किग्रा अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद या 500 ग्राम वर्मीकम्पोस्ट मिला लेना चाहिए। अगर भारी मिट्टी हो तो प्रति वर्ग मीटर मिट्टी में 2-3 किग्रा बालू मिलानी चाहिए।


क्यारी तैयार करने की विधि: नर्सरी का क्षेत्रफल उत्पादन की आवश्यकता के अनुसार होता है। इसकी लंबाई 3-4 मीटर तक रखी जा सकती है, किंतु चौड़ाई 1 मीटर से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। साथ ही दो नर्सरी के बीच में 1 फीट के रास्ते की जगह छोड़ी जाती है, जिससे खरपतवार निकालने व निराई-गुड़ाई में आसानी हो सके। मौसम के अनुसार ज़मीन से नर्सरी बेड की ऊंचाई भी अलग-अलग रखी जाती है। गर्मियों के मौसम में बनाई जाने वाली नर्सरी ज़मीन की सतह के पास यानि समतल बनाई जाती है। बरसात के समय पर पौध तैयार करने के लिए नर्सरी बेड को 10-15 सेमी ऊँचा उठाकर तैयार किया जाता है। सर्दियों में कम तापमान और ठंडी हवा से बचाने के लिए नर्सरी को सूखी घास या पॉलीथीन से ढक देना चाहिए जिससे बीज का जमाव जल्दी हो सके।


स्वस्थ पौध हेतु क्यारियों का उपचार: अच्छी पौध के लिए यह आवश्यक है कि नर्सरी की मिट्टी में कोई रोग पैदा करने वाले कारक न हों। अतः मिट्टी में मौजूद सभी रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को नष्ट कर देना चाहिए। इसके लिए फॉर्मेल्डिहाइड द्वारा उपचार बुवाई से 15-20 दिन पहले करना चाहिए। इसमें 4 लीटर प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से फॉर्मेल्डिहाइड (4%) का प्रयोग कर क्यारियों को गीला किया जाता है। इसके बाद उपचारित क्यारियों को काली पॉलीथीन से ढककर चारों तरफ गीली मिट्टी से दबा देते हैं जिससे हवा का संचार न हो सके। उपचार करने के 4-5 दिन बाद और बुवाई के 3 दिन पहले पॉलीथीन हटा लेनी चाहिए और हल्की गुड़ाई कर लेनी चाहिए जिससे मिट्टी, फॉर्मेलिन गैस से मुक्त हो जाए।


बीजों का उपचार: नर्सरी में बीज की बुवाई से पहले उन्हें मृदाजनित रोग आदि से बचाने के लिए उपचार करना भी ज़रूरी है। कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनको केवल बीज के उपचार से ही रोका जा सकता है। साथ ही बीज का उपचार काफी आसान और सस्ता भी पड़ता है। बुवाई से पहले बीज के उपचार के लिए नर्सरी में अधिकतर सब्जी बीजों का उपचार करने के लिए कैप्टॉन, थीरम या बाविस्टिन की 2 ग्राम मात्रा प्रति किग्रा बीज में मिलाई जाती है।


बीज की बुवाई: नर्सरी में पंक्ति बनाकर बुवाई करना अधिक उपयुक्त होता है। पंक्ति को उंगली या किसी लकड़ी की सहायता से बनाया जा सकता है। पंक्तियां 1.5 से 2 सेमी गहरी और पंक्तियों के बीच की दूरी 5-7 सेमी होनी चाहिए। बुवाई के बाद बीज को बारीक छनी गोबर की खाद से ढक देना चाहिए। मिट्टी की नमी और तापमान को बनाए रखने के लिए मल्च की ज़रूरत होती है ताकि समय पर बीज का जमाव हो सके। इसके लिए नर्सरी बेड के ऊपर सूखी घास या पुआल की परत या फिर सर्दियों में प्लास्टिक मल्च बिछा दी जाती है।


कठोरीकरण (हार्डनिंग) के लाभ: पौध के कठोरीकरण से तात्पर्य है कोई भी ऐसा उपाय जिसके द्वारा पौध के ऊतक इतने सशक्त व मजबूत हो जाएं कि वह प्रतिकूल परिस्थितियाँ झेल सकें। कठोरीकरण पौधों में होने वाली एक शारीरिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में पौध को नर्सरी से निकालने के 8 से 10 दिनों पहले कुछ कृत्रिम प्रतिकूल परिस्थितियाँ अपनाई जाती हैं जैसे सूर्य की तेज़ रोशनी, कम सिंचाई आदि।


कठोरीकरण के लिए आवश्यकता:
  • रोपाई के 4-5 दिन पहले नर्सरी की सिंचाई रोक देना।
  • पौध को रोपाई से पहले उन्हें सूर्य की तेज़ रोशनी में छोड़ देना जिससे उनका कठोरीकरण हो सके।
  • कम तापमान में भी पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है, जो उनके कठोरीकरण (hardening) में सहायता करती है।


खेत में पौध रोपण: पौध जब 10 से 15 सेमी लंबे हो जाएं और 4 से 6 पत्तियां निकल आएं तब वह मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। टमाटर, बैंगन, मिर्च व गोभीवर्गीय सब्जियों में पौध तैयार होने में लगभग 4 से 6 सप्ताह लगते हैं, जबकि प्याज की पौध में 8 सप्ताह तक का समय लगता है। पौध उखाड़ने के 24 घंटे पहले नर्सरी में अच्छे से पानी छोड़ दें जिससे मिट्टी मुलायम हो जाए और पौध उखाड़ते समय जड़ों को कम से कम नुकसान हो। पौध रोपण हमेशा शाम के समय ही करें और इसके तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर लें ताकि पौध आसानी से स्थापित हो जाए।


सामान्य सिफ़ारिशें
  • नर्सरी बनाने के लिए क्यारी का चयन हमेशा ऊंची जगह पर करना चाहिए जिससे कि पानी का जमाव न हो सके।
  • नर्सरी ऐसे स्थान में बनानी चाहिए जहाँ उसे उचित धूप मिल सके। यह अधिक छाया या वायु वेग वाली जगह नहीं होनी चाहिए।
  • सिंचाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  • पालतू और जंगली पशुओं से नर्सरी को बचाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।


रोग व नियंत्रण: पौध गलन या आर्द्रगलन रोग नर्सरी की एक प्रमुख समस्या है। यह कई प्रकार के फफूंदों द्वारा होता है। जिसकी वजह से बीज ज़मीन के नीचे अंकुरण से पहले या अंकुरण के 10-15 दिन बाद पौध ज़मीन की सतह से गलकर मर जाते हैं। बरसात के समय इस रोग की समस्या बढ़ जाती है।

नियंत्रण:
  • प्रारंभ में ही मृदा निर्जलीकरण या बीज का उपचार कर लेना चाहिए।
  • प्रतिवर्ष एक ही स्थान पर नर्सरी नहीं बनानी चाहिए क्योंकि इससे रोग बढ़ने की आशंकाएँ बढ़ जाती हैं।
  • नर्सरी ऊंचे स्थान पर बनानी चाहिए जहाँ बारिश का पानी न भर सके और सूर्य का उचित प्रकाश रहे।
  • नर्सरी की क्यारी हमेशा ज़मीन से 15-20 सेमी उठी हुई होनी चाहिए, साथ ही जल निकासी का भी प्रबंधन होना चाहिए।
  • बीज को अधिक घना नहीं बोना चाहिए।
  • जैविक विधि में रोग लगने की दशा में नर्सरी में ट्राइकोडर्मा (5 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें या रासायनिक विधि में कार्बेन्डाज़िम (2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें।


पौधशाला बनाने के लाभ
  • नर्सरी में बीजों के जमाव और आगे की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सकता है।
  • नर्सरी में पौधों पर आसानी से नज़र रखी जा सकती है और उन्हें कीट, रोग व खरपतवार से आसानी से बचाया जा सकता है।
  • नर्सरी में लगाया गया पौधा स्वस्थ होता है और जड़ों की वृद्धि और विकास भी सही से होने के कारण बाद में उत्पादन भी अच्छा मिलता है।
  • नर्सरी बनाने से भूमि और श्रम दोनों की बचत होती है, साथ ही अधिक सघन फसल चक्र भी अपनाया जा सकता है।
  • नर्सरी बनाने से मुख्य खेत को तैयार करने के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है।

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