खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से बड़ी संख्या में रोजगार अवसरों का सृजन किया जा रहा है। आज देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों, होटल, रेस्तरां आदि व्यवसाय का फैलाव हो रहा है। महिलाएं स्वयं या समूह के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण के कार्य में अहम योगदान दे सकती हैं। वर्तमान में बाजार में खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है; जैसे अचार, चटनी, जैम, जेली, केचप, पापड़, फल मिश्रित चॉकलेट, टॉफी व अन्य उत्पाद। फलों के टुकड़े, मिश्रित दही, दूध तथा पनीर आदि की भी बहुतायत में मांग है।
इसके अतिरिक्त, फलों के कंसंट्रेट, फल-सब्जियों के जूस, प्यूरी इत्यादि भी काफी लोकप्रिय उत्पाद हैं। सूखे फल-सब्जियां भी सुविधाजनक, अत्यधिक पोर्टेबल और टिकाऊ होती हैं। वर्तमान में कम वसायुक्त उत्पाद, विटामिन/खनिज फोर्टीफाइड उत्पाद, कैलोरी मुक्त तथा कम कैलोरी युक्त उत्पाद उपभोक्ताओं को काफी भा रहे हैं। यही नहीं, फल-सब्जियों के अपशिष्ट का उपयोग कर मूल्यवर्धित उत्पाद जैसे उबटन, लिप बाम, फल-सब्जी रेशे के बिस्कुट, छिलके व बीजों से खाद, उच्च प्रोटीनयुक्त पशु आहार आदि बनाए जा सकते हैं। महिलाएं इनमें से किसी भी प्रकार के खाद्य प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण अथवा तकनीकी जानकारी लेकर अपना उद्यम स्थापित कर सकती हैं।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कृषि क्षेत्र और उपभोक्ता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करता है। यह बुनियादी पोषण समस्या को दूर करने से लेकर उत्पाद विविधता के विकल्प प्रदान करता है। पारंपरिक रूप से फल एवं सब्जियां संतुलित आहार के महत्वपूर्ण घटक के रूप में मानी जाती हैं।
उपभोक्ता ताज़ा और स्वस्थ फलों व सब्जियों के लिए अधिक मूल्य का भुगतान भी करने के लिए तैयार होते हैं। उपभोक्ताओं द्वारा स्वस्थ फल एवं सब्जी उत्पादों में विविधता और स्वाद की मांग की जाती है। विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण विश्व के सभी प्रकार के फलों एवं सब्जियों का भारत में उत्पादन किया जाता है। कई बार फसल अच्छी होने की स्थिति में बाजार भाव में कमी आ जाती है। इससे किसानों को आर्थिक हानि होती है। यहाँ तक, कभी-कभी तो उत्पादकों को उनकी अपनी फसल को मंडी तक ले जाने का किराया भी नहीं निकलता, जिससे वे पूरी तरह से तैयार फसल को खेत में ही नष्ट करना उचित समझते हैं। एक आकलन के अनुसार, लगभग 7-12 प्रतिशत फल एवं सब्जियों की उपज उपभोक्ताओं तक पहुँचने से पहले ही नष्ट हो जाती है। इससे हजारों करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यह स्थिति लगभग पूरे देश में व्याप्त है। ऐसे में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र किसानों को उचित मूल्य दिलवाने के साथ-साथ फल एवं सब्जियों के नुकसान को कम करता है व देश की आर्थिक प्रगति में योगदान करता है।
जैसे-जैसे उपभोक्ताओं की मांग में बदलाव हो रहा है, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का बाजार बढ़ रहा है। ऐसे में प्रसंस्करण उद्योग की भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। इस क्षेत्र के विकास के लिए भारतीय उपभोक्ताओं की पसंद, बदलते स्वाद के साथ-साथ पारंपरिक उत्पादों को नए एवं विविध रूप देने की आवश्यकता होगी। विदेशी और भारतीय व्यंजनों के मिश्रित उत्पाद भी अधिक लोकप्रिय साबित होंगे। यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों से प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद आयात किए जाते हैं। इस क्षेत्र में कारोबारी निवेश द्वारा बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत की जा सकती है तथा महिलाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं सृजित की जा सकती हैं। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्म-कुटीर एवं लघु प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करके गाँव के लोगों का शहर की तरफ पलायन रोका जा सकता है।
महिला उद्यमियों को लाभ:
- प्रसंस्करण के माध्यम से महिलाओं को स्वरोजगार की प्राप्ति होती है, जिससे उनका आर्थिक सशक्तिकरण होता है।
- बाजार में उत्पाद को कम दाम में बेचने से राहत मिलती है।
- उत्पाद की मूल्यवर्धन क्षमता में वृद्धि होने से बाजार में मूल्य अधिक प्राप्त होता है।
- समूह के माध्यम से कार्य करने में सहायता प्राप्त होती है।
प्रसंस्करण में महिला उद्यमियों की भूमिका: खेतों से प्राप्त उत्पादों में फल एवं सब्जियों का अग्रणी स्थान है। ये दोनों ही ऐसे उत्पाद हैं, जिनका मूल्य बाजार में बढ़ता-घटता रहता है। इसके साथ ही इनकी निर्धारित आयु कम होती है अर्थात् ये शीघ्र ही खराब हो जाते हैं।
खाद्य उत्पादों की जल्द ही खराब होने की प्रवृत्ति के कारण इन्हें कम मूल्य पर भी बेचने की स्थिति किसानों के समक्ष आ जाती है। ऐसी स्थिति में कृषक महिलाओं को कई बार घाटे का सौदा करना पड़ता है। इससे बचने के लिए कृषक महिलाएं खाद्य प्रसंस्करण की तकनीकों को अपना सकती हैं। इससे फल एवं सब्जियों के टिकाऊ बने रहने के साथ उनके स्वाद एवं मूल्य में भी वृद्धि होती है। इसके साथ ही वर्षभर उपभोक्ताओं को इन प्रसंस्कृत उत्पादों का स्वाद नियमित रूप से मिलता रहता है।
महिलाओं को रोजगार: प्रसंस्कृत उत्पादों से महिलाओं के रोजगार की संभावनाओं में सतत वृद्धि हो रही है। महिलाएं ग्रामीण हों या शहरी क्षेत्र की, वे अपने अन्य कार्यों के साथ कुछ समय निकालकर प्रसंस्कृत उत्पादों को तैयार करने का कार्य कर रही हैं। इस प्रकार रोजगार के नए साधन सृजित हो रहे हैं। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में महिलाएं अनाजों, मसालों, फल एवं सब्जियों के प्रसंस्करण के क्षेत्र में रोजगार स्थापित कर रही हैं।
खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र
- फल एवं सब्जियां
- अनाज एवं दालें
- मसाले
- दूध
- ग्रेडिंग एवं पैकेजिंग
वर्तमान समय में बाजार प्रसंस्कृत उत्पादों पर बढ़ता जा रहा है। समय की कमी एवं बढ़ती हुई खाद्य उत्पादों की मांग के आधार पर महिलाओं द्वारा बाजार में खाद्य प्रसंस्करण से तैयार उत्पादों की मांग अधिक है। बाजार की मांग के अनुसार महिलाएं फल-सब्जी से बने विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे अचार, चटनी, जैम, जेली, स्वास्थ्यवर्धक पेय, मुरब्बा, कैंडी, फ्रूट स्प्रेड, सूखे फल-सब्जियां, अनाज एवं दालों के प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे दाल, बेसन, मल्टीग्रेन आटा, नूडल्स, पास्ता, केक, कुकीज एवं बिस्कुट आदि तैयार कर सकती हैं। हमारे देश के सुझाव पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज (मिलेट्स) वर्ष घोषित किया गया है। इस संदर्भ में श्रीअन्न आधारित मूल्यवर्धित उत्पादों की भी अपार संभावनाएं हैं। इनमें ज्वार, बाजरा, रागी से तैयार आटा, दलिया, सूजी, नूडल्स, पास्ता, शिशु आहार एवं पैक्ड केक, कुकीज आदि उत्पाद महिलाएं तैयार करके आसानी से बाजार में बेच सकती हैं।
खाद्य प्रसंस्करण: खाद्य प्रसंस्करण द्वारा प्राथमिक कृषि उपज जैसे अनाज, फल-सब्जी इत्यादि को विभिन्न उपचारों द्वारा अथवा अन्य रूप से संरक्षित करके स्वाद में वृद्धि कर मूल्य संवर्धित किया जाता है। ऐसे उत्पादों की पौष्टिकता एवं खाद्य सुरक्षा बरकरार रहती है, तथा इन्हें लंबे समय तक भंडारित भी किया जा सकता है। प्रसंस्कृत उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता के निम्न कारण हैं:
- युवाओं की पसंद
- बढ़ता शहरीकरण
- आय में वृद्धि
- उपभोक्ता की बढ़ती संपन्नता एवं जीवन शैली में बदलाव
- लोगों की आहार शैली में परिवर्तन
- सुविधाजनक खाद्य (जैसे स्प्रे ड्राइड अथवा फ्रीज ड्राइड उत्पाद, जूस कंसंट्रेट, रिकंस्टीट्यूटेड फल तथा सेल्फ कुकिंग) आहार आदि की बढ़ती मांग
- सुपरमार्केट्स का विकास
कृषि विज्ञान केंद्र की भूमिका: देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा कृषक महिलाओं के आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक विकल्प के रूप में उभरा है। वर्तमान में खाद्य प्रसंस्करण देश के प्रमुख उद्योगों में से एक है जो देश को सफलता की ओर अग्रसर कर रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण आधारित विभिन्न प्रायोगिक प्रशिक्षण देकर संबंधित क्षेत्र में कार्य करने के लिए उनका मार्ग प्रशस्त कर रहा है। इसी श्रृंखला में कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली में स्थित खाद्य प्रसंस्करण प्रशिक्षण इकाई महिलाओं और युवाओं को कृषि के लिए आकर्षित करने तथा उन्हें कृषि में बनाए रखने के माध्यम से फल, सब्जियों एवं अनाज के प्रसंस्करण पर आधारित प्रशिक्षण आयोजित करता है। इस दौरान प्रशिक्षणार्थियों को विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पादों को तैयार करने के लिए प्रायोगिक ज्ञान एवं उत्पादों की बाजार मांग से लेकर पैकेजिंग तक से जुड़े संपूर्ण प्रशिक्षण एवं इसके साथ ही समूह के माध्यम से कृषक महिलाओं को जोड़कर व्यवसाय करने की सलाह व सहयोग दिया जाता है।
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