किसानों के लिए मखाना: आय बढ़ाने के अवसर | Makhana Production: Prospects & Benefits

मखाना एक जलीय फसल है जिसका उत्पादन मुख्य रूप से उत्तर बिहार, बंगाल तथा असम राज्य में किया जाता है। मखाने की खेती ऐसे जल जमाव वाले क्षेत्रों में की जाती है जिसका उपयोग लगभग किसी भी फसल उत्पादन के लिए नहीं किया जा सकता है। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मखाना किसानों के लिए एक वरदान है। मखाना काफी सेहतमंद होता है तथा औषधीय गुणों से भरपूर होता है। मखाना से तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। देश के मखाना उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत भाग बिहार से आता है तथा यहां के जल जमाव वाले क्षेत्र मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया, समस्तीपुर, सुपौल, किशनगंज एवं अररिया के किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है। मखाना की खेती के क्षेत्र को काफी बढ़ाया जा सकता है साथ ही साथ मशीनीकरण कर उत्पादन, उत्पादकता एवं आमदनी में काफी हद तक वृद्धि की जा सकती है। आज भी मखाना की खेती परंपरागत विधि से ही की जाती है एवं उत्पादन उपरांत प्रसंस्करण भी घरेलू विधि पर ही आधारित है। अतः मखाना की खेती, प्रसंस्करण एवं व्यापार में अपार संभावनाएं हैं। किसान उत्पादकता समूह की स्थापना कर किसान उचित लाभ प्राप्त कर सकते हैं।


किसानों के लिए मखाना आय बढ़ाने के अवसर  Makhana Production Prospects & Benefits


मखाने की खेती दो तरह से की जाती है: एक विधि जिसमें आर्द्र भूमि क्षेत्र का उपयोग किया जाता है। इस भूमि में मार्च से सितंबर तक खेती की जाती है तथा उसके बाद बोरों/धान की खेती की जाती है। इस विधि में खेत में हमेशा 1.5 से 2 फीट पानी रखा जाता है तथा मखाने का बिचड़ा (छोटा पौधा) एक-एक करके बहुत ही सावधानी से लगाया जाता है। दूसरी विधि में, मखाने की खेती प्राकृतिक तालाब/जल जमाव वाले क्षेत्र में की जाती है। इस विधि में पिछले साल के बचे हुए बीज से ही पौधा तैयार होता है, अलग से बिचड़ा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है।

मखाने की उन्नत किस्म-सबौर मखाना-1, स्वर्ण बैदेही की उत्पादन क्षमता 32 क्विंटल/हेक्टेयर-गुरमी (बीज) है। किसान अभी भी पुरानी परंपरागत किस्मों का उत्पादन कर रहे हैं, जिसकी उत्पादन क्षमता कम है। नई प्रमेद के मखाना के बीज से ज्यादा मात्रा में लावा (खाने वाला मखाना) प्राप्त किया जाता है। 100 किलोग्राम मखाने के बीज से लगभग 55 किग्रा-लावा प्राप्त किया जाता है। एक हेक्टेयर मखाने की खेती में लगभग 50,000/- रुपये खर्च होता है तथा शुद्ध आमदनी 90,000/- तक प्राप्त की जा सकती है। मखाना सह मछली पालन को अपनाकर किसान इस आमदनी को लगभग डेढ़ से दोगुना तक कर सकते हैं। सरकार ने मिथिला मखाना को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग प्रदान किया है। इससे किसानों को अधिकतम मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलने की उम्मीद है। भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग एक संकेतक है, जिसका उपयोग मिश्रित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादन होने वाली प्रमुख विशेषताओं वाले उत्पादों को पहचान देने के लिए किया जाता है। इससे पूर्व बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय, मैसूर सिल्क, कश्मीरी केसर आदि को यह जीआई टैग प्रदान किया जा चुका है तथा इससे किसानों को लाभ प्राप्त हो रहा है।


मखाना प्रसंस्करण: मखाना प्रसंस्करण में सामान्य तौर पर, कटाई के बाद की विभिन्न प्रक्रियाएं शामिल हैं, जैसे धूप में सुखाना, आकार की ग्रेडिंग, प्री-हीटिंग, पॉपिंग, पॉलिशिंग, ग्रेडिंग तथा पैकेजिंग आदि।


सफाई: परिपक्व ताजे मखाने के बीज को पहले साफ किया जाता है और बीज के अलावा कई अन्य पदार्थों को हटा दिया जाता है। इसके बाद फिर गंदगी एवं कीचड़ को हटाने के लिए धोया जाता है।


धूप में सुखाना और बीजों का भंडारण: साफ किए गए मखाने के बीजों को फिर एक चटाई या सीमेंट के फर्श पर 2-3 घंटे के लिए तेज धूप में सुखाया जाता है ताकि अस्थायी भंडारण और परिवहन प्रक्रिया के लिए नमी को लगभग 31 प्रतिशत तक कम किया जाता है। बीजों का भंडारण परिवेशी परिस्थितियों में किया जाता है। आमतौर पर बीजों को प्रसंस्करण से पहले 20-25 दिनों के लिए भंडारित किया जाता है। भंडारण के दौरान नियमित अंतराल पर पानी का छिड़काव, उन्हें ताजा रखने और बीज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किया जाता है।


आकार ग्रेडिंग: धूप में सुखाए गए बीजों को छन्नी के माध्यम से उनके आकार के अनुसार 5 से 7 ग्रेड में वर्गीकृत किया जाता है। मखाने के बीज की ग्रेडिंग से भुनने के दौरान प्रत्येक नट को एकसमान रूप से गर्म करने की सुविधा मिलती है और यह प्रसंस्करण की दक्षता को बढ़ाता है।


पूर्व हीटिंग: धूप में सुखाए गए बीजों को आमतौर पर मिट्टी के घड़े या लोहे की कड़ाही में आग पर रखकर और लगातार हिलाते हुए गर्म किया जाता है। पैन की सतह का तापमान लगभग 250 डिग्री सेल्सियस - 3000 डिग्री सेल्सियस होता है और पैन की पूरी क्षमता पर आवश्यक समय लगभग 5 से 6 मिनट होता है। गर्म करने के बाद नमी की मात्रा लगभग 20 प्रतिशत तक कम हो जाती है।


तड़का: पहले से गर्म बीजों को 48-72 घंटे की अवधि के लिए परिवेशी स्थिति में भंडारण करना बीजों के तड़के के रूप में जाना जाता है। बीजों का तड़का इस उद्देश्य से किया जाता है ताकि बीज के सख्त कोट के भीतर गुठली को ढीला किया जा सके।


रोस्टिंग और पॉपिंग: यह मखाना प्रसंस्करण का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। लगभग 300 ग्राम पहले से गर्म और तड़के वाले बीज को लगातार हिलाते हुए 2900 डिग्री सेल्सियस से 3400 डिग्री सेल्सियस सतह के तापमान पर आग पर एक परत में कच्चे लोहे के बर्तन में भुना जाता है। लगभग 1.5 से 2.2 मिनट के बाद, बीज के भुनने से एक कर्कश आवाज सुनाई देती है। इसके बाद उसमें से पांच से सात भुने हुए बीजों को हाथ से जल्दी से निकालकर सख्त सतह पर रखकर लकड़ी के हथौड़े से उन पर अचानक प्रभावी बल लगाया जाता है। जैसे ही कठोर खोल टूटता है, लावा विस्तारित रूप में बाहर निकलता है, जिसे मखाना पॉप या लावा कहा जाता है। कच्चे माल की गुणवत्ता के आधार पर मखाने की उपज कच्चे बीज के वजन के आधार पर 35-40 प्रतिशत से भिन्न होती है।


चमकाना: यह बांस की टोकरियों में आपस में मखाना पॉप या लावा को रगड़कर किया जाता है। पॉलिश करने से मखाने में अधिक सफेदी और चमक आती है।


ग्रेडिंग: उत्पादक स्तर पर, पॉप्ड मखाना के लावा को आमतौर पर दो ग्रेडों में वर्गीकृत किया जाता है - लावा और थुड़ी। लावा फूला हुआ और लाल रंग के धब्बों के साथ सफेद होता है, जबकि थुड़ी अर्ध-पॉप्ड, सख्त और लाल रंग का होता है।


पैकेजिंग: स्थानीय बाजारों के लिए साधारण गुनी बैग जबकि दूर के बाजारों के लिए पॉलिथीन के अस्तर के साथ गुनी बैग का उपयोग पॉप्ड मखाना पैक करने के लिए किया जाता है। एक क्विंटल चीनी की क्षमता वाली एक बोरी में 8 से 9 किग्रा-अच्छी गुणवत्ता वाले मखाने को पैक किया जा सकता है।


विपणन: मखाना, भारत तथा विश्व के अनेक स्थानों में, खाद्य उत्पादों के तौर पर शामिल होता रहा है। भारत में इसका प्रयोग, स्नैक्स के साथ-साथ पकवान और मिठाई बनाने में भी किया जाता है, इस कारण बाजार में मखाने की मांग हमेशा बनी रहती है। बाजार में मांग का एक दूसरा कारण यह भी है कि इसका उत्पादन क्षेत्र सीमित है। भारत में, इसका सबसे अधिक 80% से 90% उत्पादन बिहार में होता है। मखाने की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी तेजी से बढ़ी है। भारत से मखाने का निर्यात अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, कतर, बांग्लादेश, कुवैत, ओमान, जापान इत्यादि देशों में होता है। हालांकि भारत में मखाने का निर्यात, उत्पादन के लिहाज से काफी कम है। इसका मुख्य कारण, मखाना की घरेलू बाजार में मांग, अधिक होना है।

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग होने के कारण, मखाना का भविष्य काफी उज्जवल है और समय के साथ विपणन के तरीकों में होने वाले बदलाव मखाना के किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।


विपणन में उन्नत प्रणाली: मखाने का बाजार मूल्य अच्छा-खासा है परंतु किसानों को बहुत अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है, इसके निम्न कारण हैं:
  • बाजार में, प्रसंस्कृत मखाने की मांग है और मखाना प्रसंस्करण की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं है। अतः छोटे किसानों को अपना कच्चा मखाना बिचौलिए को बेचना पड़ता है, जहां उन्हें कम कीमत मिलती है।
  • मखाना के मूल्य में बढ़ोतरी वैल्यू संवर्धन द्वारा संभव है, जिसका लाभ, मुख्यत: प्रसंस्करण उद्योग को मिलता है और किसान इस लाभ से वंचित रह जाते हैं।

समाधान
  • मखाने के प्रसंस्करण हेतु, प्रोसेसिंग मिल, उत्पादन क्षेत्र में स्थापित होने चाहिए, ताकि छोटे किसानों को अपना कच्चा मखाना बिचौलियों को न बेचना पड़े।
  • कच्चे मखाने का विपणन या तो एफपीओ द्वारा या फिर कोऑपरेटिव मार्केटिंग द्वारा हो, जिसमें किसानों के हितों को सर्वाधिक ध्यान में रखा जाता है।


उत्पादन एवं विपणन समाधान: मखाना उत्पादन एवं विपणन में किसानों को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हाल के दिनों में सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं से किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। मखाना उत्पादन एक हुनर भरा कार्य है, तथा एक विशेष वर्ग ही मखाना उत्पादन से जुड़े कार्य जैसे पौधे की रोपाई, कटाई एवं प्रसंस्करण कार्य कर रहे हैं और यह कार्य भी परंपरागत तरीके से ही किया जा रहा है।

प्रशिक्षण के माध्यम से नए लोगों को भी जोड़ा जा सकता है तथा तकनीक के माध्यम से मखाना उत्पादन से जुड़े कार्य को आसान बनाया जा सकता है। किसान लीज पर जमीन लेकर मखाना उत्पादन का कार्य कर रहे हैं तथा परंपरागत बीजों का उत्पादन कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि किसानों के बीच नए बीज एवं पूंजी उपलब्ध करवाई जाए। ज्यादा से ज्यादा मखाना आधारित किसान उत्पादकता समूह का गठन कर किसानों को उत्पादन एवं विपणन से जोड़ा जा सकता है। किसान राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक तथा अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से उत्पादकता समूह का गठन कर लाभ उठा सकते हैं।

पर्यावरण संरक्षण एक बड़ी चुनौती है, जल अधिग्रहण क्षेत्र में काफी जैव विविधताएं हैं। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मखाने की खेती के कारण जैव विविधता पर किसी भी तरह का प्रतिकूल प्रभाव न पड़ें। साथ ही साथ अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र-भूमि पर रामसार संधि का भी ध्यान रखा जाए। अतः मखाना एक स्वास्थ्यवर्धक आहार है, जिसका सेवन सभी कर सकते हैं। मखाना उत्पादन किसानों की आय दोगुनी करने में अहम भूमिका निभा सकता है।

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