संतरे में लोरेंथस खरपतवार: पहचान, प्रभाव और नियंत्रण | Loranthus Parasitic Weed in Oranges: Identification, Impact & Control

उत्तरी बंगाल क्षेत्र, विशेष रूप से दार्जिलिंग, संतरे की विभिन्न प्रजातियों के विकास के लिए अनुकूल जलवायु से संपन्न है। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की जलवायु को संतरा उत्पादन का केंद्र माना जाता है। दार्जिलिंग संतरा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आजीविका का एक मुख्य स्रोत है। इस विशेष प्रकार की प्रजाति के खराब उत्पादन का मुख्य कारण संतरा वर्गीय तना छेदक, लोरेंथस तना परजीवी खरपतवार, गैर-वैज्ञानिक खेती और गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की कमी है। पश्चिम बंगाल के कालिम्पोंग जिले में दार्जिलिंग संतरा प्रजाति लोरेंथस खरपतवार से अत्यधिक प्रभावित है, जो पौधों के विकास में कमी, उत्पादन में कमी, गुणवत्ता में कमी तथा पौधों पर इस प्रकार हावी हो जाता है कि संक्रमण के कुछ ही वर्षों बाद मेज़बान पौधों की मृत्यु हो जाती है। लोरेंथस खरपतवार बगीचे के अलावा अन्य फलों के पेड़-पौधों जैसे आम, आड़ू, नीम, सेब तथा चाय बागानों आदि पर भी अपना पोषण करता है। यह खरपतवार उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के संतरा उत्पादन में कमी का प्रमुख कारण है।


संतरे में लोरेंथस खरपतवार पहचान, प्रभाव और नियंत्रण  Loranthus Parasitic Weed in Oranges Identification, Impact & Control


दार्जिलिंग संतरा (साइट्रस रेटिकुलाटा ब्लैंको) उत्तर पश्चिम बंगाल की महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है। इसका उत्पादन दिन-प्रतिदिन कुछ महत्वपूर्ण कारकों के कारण घट रहा है, जिसमें से एक प्रमुख कारक लोरेंथस परजीवी खरपतवार का बढ़ता प्रकोप है। यह खरपतवार समुद्र तल से 500 से 1800 मीटर तक के फल उगाने वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक तना परजीवी खरपतवार है जो अप्रैल-मई के महीनों में उगता है, इसके प्रसार के लिए पक्षियों को जिम्मेदार माना गया है। इस खरपतवार के फैलाव का मुख्य कारण बगीचों तथा उसके आसपास की जगहों को साफ-सुथरा नहीं रखना है। इसका फैलाव पौधों से बगीचे में बहुत कम समय में ही हो जाता है। यह खरपतवार यहाँ के वातावरण में संतरे के तने के ऊपर आसानी से उग जाता है तथा इसके पोषक तत्वों से ही अपना पोषण करता है। इसके कारण फल वृद्धि, उत्पादन तथा गुणवत्ता के साथ-साथ जीवन भी बहुत जल्दी ही समाप्त हो जाता है। इस लेख के माध्यम से लोरेंथस खरपतवार के उत्पन्न होने का कारण, प्रभाव, नियंत्रण और प्रबंधन की जानकारी दी गई है। इससे काफी हद तक संक्रमित पेड़-पौधों को आसानी से बचाया जा सकता है।

इस खरपतवार के फैलाव का मुख्य कारण दो पक्षी प्लेन फ्लावर पेकर और फायर-ब्रेस्टेड फ्लावर पेकर हैं। पक्षियों द्वारा फल को खाकर पेड़-पौधों पर फेंक देना या उसके साथ किसी तरह से इस बीज का संपर्क पेड़-पौधों के तनों से होना आदि प्रमुख कारणों में से हैं। इस खरपतवार के जीवनचक्र में सबसे पहले बीज का अंकुरण होता है उसके बाद परजीवी हॉस्टोरियम (एक लगाव तंत्र) को अपने मेज़बान की शाखाओं में शामिल कर लेते हैं। बाद में, जहाँ भी मेज़बान के साथ संपर्क होता है, उसी परजीवी पौधे से द्वितीयक हॉस्टोरिया का निर्माण होता है। शाखाओं पर परजीवीकरण करके पूरे पौधे पर अपना जाल बिछा देता है। यह पौधे के सभी पोषक तत्वों को आसानी से अपने आहार के रूप में लेता है। इसके कारण सूर्य का प्रकाश पेड़-पौधों पर नहीं पड़ता है और पौधा पोषण रहित होकर ग्रसित हो जाता है।


संतरे में लोरेंथस परजीवी खरपतवार: आकृति और रंगरूप: लोरेंथस परजीवी खरपतवार, जो संतरे के पेड़ों और अन्य कई वृक्षों को प्रभावित करता है, देखने में जितना सुंदर होता है, उतना ही यह मेज़बान पेड़ के लिए हानिकारक होता है। इसकी पहचान इसके विशिष्ट आकृति और रंगरूप से की जा सकती है:

पत्तियां:
  • लोरेंथस की पत्तियां आमतौर पर गोलाकार होती हैं।
  • इनकी एक खास विशेषता यह है कि पत्तियों का निचला भाग सफेद होता है, जिसके कारण वे कुल मिलाकर सिल्वर ग्रे (चांदी-धूसर) रंग की दिखती हैं। यह रंग मेज़बान पेड़ की हरी पत्तियों से इसे आसानी से अलग करने में मदद करता है।

फूल:
  • लोरेंथस खरपतवार में जुलाई से अगस्त के महीनों के बीच फूल आते हैं।
  • इसके फूल लगभग 3 सेंटीमीटर लंबे होते हैं और इनका आकार कुछ हद तक घुमावदार होता है।
  • फूलों के रंग की बात करें तो, ये आधार पर लाल होते हैं और सिरे के पास हरे-पीले रंग के होते हैं, जिससे ये काफी आकर्षक दिखते हैं।

फल:
  • इसके फल आकार में छोटे होते हैं, जो लगभग 6-7 मिलीमीटर लंबे होते हैं और जामुन की तरह दिखते हैं।
  • पकने पर ये फल लाल रंग के हो जाते हैं।
  • इन फलों की सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि इनका गूदा अत्यधिक चिपचिपा होता है। यही चिपचिपी प्रकृति पक्षियों द्वारा फैलाव में सहायक होती है, क्योंकि यह बीज को मेज़बान पेड़ की शाखाओं से मजबूती से चिपकाए रखती है।

यह अनूठा रंगरूप और संरचना ही लोरेंथस को न केवल पहचानने योग्य बनाती है, बल्कि इसके प्रसार तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


गैर-रासायनिक प्रबंधन: 
  • प्रभावित शाखाओं की छंटाई सावधानीपूर्वक करनी चाहिए ताकि इस खरपतवार का संक्रमण दूसरे वृक्ष में न हो।
  • अत्यधिक संक्रमित वृक्षों से लोरेंथस खरपतवार हटाते समय आमतौर पर छंटाई के बाद पहले वर्ष में पेड़ फल नहीं देता है, लेकिन उसके अगले वर्ष कुछ मात्रा में फल देता है। यदि पौधों द्वारा फल नहीं दिया जाता है तो पुनः फिर से खरपतवार को अच्छे से देखकर हटाने की जरूरत है।
  • लोरेंथस खरपतवार हटाने के बाद सिंचाई, जैविक खाद तथा पोषक तत्वों की कमी को पूरा करके भी हम पेड़-पौधों को फिर से पुनर्जीवित कर सकते हैं।
  • बगीचे के आसपास हम निरंतर साफ-सफाई रखकर भी लोरेंथस खरपतवार से पेड़-पौधों का बचाव कर सकते हैं।


उचित नीति ज़रूरी: लोरेंथस परजीवी खरपतवार का प्रकोप दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह उत्तर-पूर्वी जलवायु में उत्पादित होने वाली संतरा प्रजाति के लिए चिंता का विषय है। इस खरपतवार का प्रभाव इस प्रकार बढ़ रहा है कि यह दार्जिलिंग संतरा प्रजाति के साथ-साथ अन्य वृक्षों को भी अपना शिकार बना रहा है। इसके कारण दार्जिलिंग संतरे के उत्पादन, गुणवत्ता तथा बागानों के फल उत्पादन में काफी कमी दर्ज की गई है। इसके कारण यहां के किसानों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हो रहा है। इस क्षेत्र में रहने वाले काफी लोगों का मुख्य व्यवसाय दार्जिलिंग संतरे का उत्पादन है जो लोरेंथस खरपतवार के कारण प्रभावित हो रहा है। कृषि व्यवसाय से संबंधित लोग, केंद्र और राज्य स्तर के अनुसंधान संस्थानों को इससे निजात पाने के लिए विशेष रूप से सतर्क होने तथा रोकने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा ताकि आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए दार्जिलिंग संतरा प्रजाति को व्यवसाय का मुख्य आधार बनाया जा सके। इस खरपतवार को पूरी तरह से खत्म करने और इसे आसपास के बगीचों में फैलने से रोकने के लिए संबंधित विभागों द्वारा अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर नियोजित प्रशिक्षण और प्रबंधन कार्यक्रम शुरू किए जाना अति आवश्यक है। इस खरपतवार के लिए निम्न स्तर से उच्च स्तर तक यदि लोगों द्वारा ठोस कदम नहीं उठाए गए तो दार्जिलिंग संतरा प्रजाति के साथ-साथ इससे संक्रमित अन्य फलों की प्रजाति के अस्तित्व को बहुत जल्दी ही खो देंगे।


संतरे में लोरेंथस परजीवी खरपतवार: रासायनिक प्रबंधन: लोरेंथस परजीवी खरपतवार के प्रभावी प्रबंधन के लिए, रासायनिक नियंत्रण विधियाँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, खासकर जब संक्रमण गंभीर हो। हालांकि, इन विधियों का उपयोग सावधानीपूर्वक और विशेषज्ञों की सलाह पर ही करना चाहिए, ताकि मेज़बान पौधे और पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो। यहाँ लोरेंथस के रासायनिक प्रबंधन के कुछ मुख्य तरीके दिए गए हैं:

बोर्डो पेस्ट का उपयोग (Bordeaux Paste Application)
  • विधि: जब आप संक्रमित शाखाओं की छंटाई करते हैं और लोरेंथस के पौधों को हटाते हैं, तो जो कटे हुए हिस्से बचते हैं, उन पर बोर्डो पेस्ट का लेप लगाना चाहिए। बोर्डो पेस्ट कॉपर सल्फेट और कैल्शियम हाइड्रोक्साइड का एक मिश्रण होता है।
  • उद्देश्य: यह पेस्ट कटे हुए घावों को संक्रमण से बचाने में मदद करता है और लोरेंथस के बचे हुए सूक्ष्म बीजाणुओं या ऊतकों को आगे बढ़ने से रोकता है। यह घाव भरने की प्रक्रिया को भी बढ़ावा देता है।
  • सावधानी: पेस्ट को अच्छी तरह से तैयार करना और समान रूप से लगाना महत्वपूर्ण है।

मेजबान पौधे में इंजेक्शन (Injections into Host Plant)
  • विधि: यह एक अधिक लक्षित विधि है जहाँ सीधे मेज़बान पौधे के तने या शाखाओं में विशिष्ट रसायनों का इंजेक्शन लगाया जाता है। आमतौर पर कॉपर सल्फेट और फेरॉक्सोन जैसे रसायन इस उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • उद्देश्य: इंजेक्ट किए गए रसायन मेज़बान पौधे के संवहनी तंत्र में प्रवेश करते हैं और लोरेंथस तक पहुँचते हैं, जिससे यह परजीवी नष्ट हो जाता है। यह विधि विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी हो सकती है जहाँ छंटाई संभव न हो या जहाँ परजीवी गहरे में हो।
  • सावधानी: इंजेक्शन की खुराक और लगाने का तरीका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि गलत खुराक मेज़बान पौधे को नुकसान पहुँचा सकती है। इसे केवल प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा ही किया जाना चाहिए।

संक्रमित शाखाओं की छाल हटाना और रसायन लगाना (Bark Removal and Chemical Application)
  • विधि: इस तरीके में, लोरेंथस से संक्रमित शाखाओं की छाल को लगभग 0.5 सेंटीमीटर की गहराई तक सावधानीपूर्वक हटाया जाता है। छाल हटाने के बाद, उस साफ किए गए हिस्से पर 2,4-डाइक्लोरोफेनॉक्सीएसिटिक एसिड (2,4-D) जैसे हर्बिसाइड (खरपतवारनाशक) का घोल लगाया जाता है।
  • उद्देश्य: छाल हटाने से रसायन सीधे परजीवी के ऊतकों के संपर्क में आ पाता है, जिससे उसकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है। 2,4-D एक प्रणालीगत हर्बिसाइड है जो परजीवी पौधे के भीतर फैलकर उसे नष्ट कर देता है।
  • सावधानी: छाल हटाने की प्रक्रिया में मेज़बान पौधे को अनावश्यक नुकसान न पहुँचाने का ध्यान रखना चाहिए। रसायन का सही सांद्रण और उचित अनुप्रयोग महत्वपूर्ण है ताकि मेज़बान पौधे को न्यूनतम क्षति हो। यह विधि भी विशेषज्ञों की देखरेख में ही करनी चाहिए।

रासायनिक प्रबंधन में महत्वपूर्ण विचार:
  • लक्ष्य-विशिष्ट रसायन: हमेशा ऐसे रसायनों का चयन करें जो लोरेंथस के लिए प्रभावी हों और मेज़बान पौधे के लिए कम से कम हानिकारक हों।
  • सही खुराक और समय: रसायनों का उपयोग निर्माता के निर्देशों और कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार सही खुराक और सही समय पर करना चाहिए। गलत खुराक या गलत समय पर उपयोग से फसल को नुकसान हो सकता है।
  • सुरक्षा उपाय: रासायनिक छिड़काव या अनुप्रयोग करते समय व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (जैसे दस्ताने, मास्क) का उपयोग करें।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: रसायनों के उपयोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों, जैसे मिट्टी और पानी का प्रदूषण, के बारे में जागरूक रहें। जैविक और गैर-रासायनिक विधियों को प्राथमिकता देना हमेशा बेहतर होता है।
  • प्रतिरोध का विकास: बार-बार एक ही रसायन का उपयोग करने से खरपतवारों में प्रतिरोध विकसित हो सकता है। इसलिए, रसायनों को घुमा-फिराकर (रोटेशन में) उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

रासायनिक प्रबंधन, गैर-रासायनिक विधियों के साथ मिलकर, लोरेंथस परजीवी खरपतवार को नियंत्रित करने में सबसे प्रभावी रणनीति हो सकती है।

Post a Comment

और नया पुराने