तेलंगाना राज्य के मिर्च उत्पादक क्षेत्रों में बहुभक्षी प्रजाति के ब्लैक थ्रिप्स, थ्रिप्स परविसपिनस (कर्णी), (थाईसेनोप्टेरा: टेरेब्रांटिया: थ्रिपीडे) का भारतवर्ष में प्रथम दृष्टया विनाशकारी प्रकोप देखा गया। यह भारत के मूल थ्रिप्स कीट (सिर्टोथिप्स डॉर्सालिस) से अधिक आक्रामक पाई गई। ब्लैक थ्रिप्स कीट का उद्गम स्थल थाईलैंड और अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देश हैं, जहाँ से यह पूरे विश्व में फैला। ब्लैक थ्रिप्स द्वारा जनित टोस्पोवायरस मिर्च का प्रमुख रोग है। इस रोग की जटिल प्रकृति के कारण इनके लक्षणों को आरंभ काल में पुष्टि करना मुश्किल होता है जिसके कारण मिर्च की पूरी फसल नष्ट हो जाती है। समन्वित कीट प्रबंधन करने के लिए किसानों द्वारा हर तीसरे/चौथे दिन कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। हालाँकि, बार-बार रासायनिक दवाओं का छिड़काव करने के बावजूद इस कीट के नियंत्रण पर सफलता नहीं मिल पा रही है। विषैले कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण निर्यात प्रभावित होते हैं। ऐसा प्रमुख रूप से किसानों में जागरूकता की कमी के कारण हो रहा है। इस कीट के प्रबंधन के लिए कीटों का शीघ्र पता लगाने के लिए फसलों की नियमित निगरानी करके, कीट संख्या घनत्व को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखने के लिए गैर-रासायनिक तरीकों का उपयोग करने के साथ ही इस आक्रामक कीट से निपटने के लिए समन्वित कीट प्रबंधन के अंतर्गत नवीन रणनीतियों को विकसित करने के लिए तत्काल कार्य करने की आवश्यकता है।
मिर्च, भारत की एक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण नकदी फसल है। भारत दुनिया में प्रथम स्थान रखते हुए 38 प्रतिशत का उत्पादन करता है। देश में मिर्च की खेती के अंतर्गत 852 हजार हेक्टेयर क्षेत्र एवं कुल उत्पादन 1578 मिलियन टन है जिसकी उत्पादकता 2.4 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है। मिर्च की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 2-3 लाख रुपये के बीच निवेश की आवश्यकता होती है। देश में कुल उपज की 37 प्रतिशत पैदावार केवल आंध्र प्रदेश से प्राप्त होती है। इस फसल के उत्पादन को प्रभावित करने वाले कीट ब्लैक थ्रिप्स का प्रकोप निरंतर बढ़ता जा रहा है। इससे न केवल उपज में कमी आती है, बल्कि फसल के पूर्णतः नुकसान से किसानों को भारी हानि का सामना भी करना पड़ता है। इस कीट का समय से पूर्व समन्वित प्रबंधन भारी नुकसान से बचाने में लाभदायक सिद्ध हो सकता है।
ब्लैक थ्रिप्स की पहचान: अन्य थ्रिप्स प्रजातियों की तुलना में आकार में ये थोड़े बड़े होते हैं, शरीर गहरे भूरे से काले रंग का जिनकी लंबाई लगभग 1-2 मि.मी. होती है। इनके काले शरीर पर पतले, लंबी आकृतियों के साथ पंख झिल्लीदार होते हैं। इसका उदर लंबा, पतला एवं 11 खंडों में खंडित होता है। सामान्यतः वयस्क मादा का आकार वयस्क नर से बड़ा होता है।
हानि की प्रकृति: इस कीट के वयस्क और शिशु कोमल पत्तियों, फूलों और बढ़ती हुई टहनियों का रस चूसते हैं। इसका प्रकोप शुष्क मौसमों में अधिक होता है। मिर्च और अन्य फसलों में ब्लैक थ्रिप्स मुख्य रूप से फसलों में फूल आने की अवस्था को प्रभावित करती है। नवीन पत्तियों, कलियों और फलों के रस चूसने के परिणामस्वरूप पत्तियों का रंग कांस्य जैसा हो जाता है, जो रस निष्कर्षण के कारण होता है।
अत्यधिक फूलों और कलियों का रस चूसने के कारण फूल और कलियां समय से पहले झड़ जाते हैं। इसके साथ ही पौधे की विकृति होने पर वृद्धि रुकने के कारण पौधे बौने और कमजोर नजर आने लगते हैं। यह कीट टोस्पोवायरस को प्रसारित करता है। थ्रिप्स के शुरुआती चरण (इंस्टार) के लार्वा ही वायरस का संचारण करते हैं, वयस्क थ्रिप्स टोस्पोवायरस को ग्रहण तो कर सकते हैं, लेकिन वे उन्हें प्रसारित करने में असमर्थ होते हैं।
जीवन चक्र: इसका जीवन चक्र 6 चरणों में पूरा होता है। मादाएं अपने अंड निक्षेपक की सहायता से निषेचित/अनिषेचित दोनों प्रकार के अंडों को मिर्च के पौधे के ऊतकों के अंदर डालती हैं। जहाँ से 6-8 दिनों में उनसे शिशु (लार्वा) निकलते हैं। शिशु दो चरणों से गुजरते हैं, वयस्क चरण तक अपने विकास को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पत्तियों का रस चूसते हैं।
पूर्ण विकसित शिशु 24 घंटे तक प्रीप्यूपल अवस्था से गुजरते हुए भुरभुरी मिट्टी के ऊपर प्यूपा का निर्माण करते हैं। प्यूपा अवस्था 2 से 3 दिनों की होती है। मादा अपने जीवनकाल में 55-150 अंडे देती हैं। जैसे-जैसे इनकी आबादी का विस्तार होता है, वे परिपक्व पुरानी पत्तियों की सतहों पर भी आक्रमण करते हैं।
थ्रिप्स के जीवनकाल के विभिन्न चरणों की अवधि आमतौर पर वायुमंडलीय तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करती है। थ्रिप्स की एक वर्ष में कई पीढ़ियां (लगभग आठ तक) होती हैं। जब मौसम गर्म होता है, तो अंडे से वयस्क तक का जीवन चक्र 2 सप्ताह में पूरा होता है।
अनुकूल परिस्थितियाँ: ब्लैक थ्रिप्स के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच का गर्म तापमान, आर्द्र परिस्थितियाँ, (60% से अधिक उच्च आर्द्रता) इनके विकास और प्रसार को बढ़ावा देती हैं।
समन्वित कीट प्रबंधन के अंतर्गत महत्वपूर्ण सुझाव
- कीटों की सटीक पहचान करने के उपरांत ही कीट नियंत्रण के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करें, यह मूल्यांकन करें कि कौन सी नियंत्रण नीति कारगर रहेगी।
- इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू.एस. की 10 ग्राम/किलो बीज की दर के साथ बीज उपचार या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. 1.0 मि.ली./लीटर की दर के साथ 30 मिनट के लिए नर्सरी के पौध की जड़ों को डुबोकर उपचारित करने के उपरांत पौध रोपण करें।
- कीटनाशकों की दीर्घकालिक प्रभावकारिता को बनाए रखने के लिए एक ही क्रिया प्रणाली वाले रासायनिक कीटनाशकों के बार-बार छिड़काव से बचें।
- शरणार्थी कीटों के संरक्षण के लिए रोपाई की गई मिर्च की फसलों में पाँच प्रतिशत रिक्त जगहों पर किसी भी प्रकार के कीट रसायनों का प्रयोग न करें। इसके अलावा मिर्च की फसलों के कुछ भागों में ही कीट मौजूद हैं, तो संपूर्ण खेत में छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए।
- कीटनाशकों को सुरक्षित, अधिक प्रभावी या उपयोग में अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए सहायक (एडजुवेंट्स) और योजक (एडिटिव्स) को मिलाया जा सकता है।
- बरसात के दिनों में कीटनाशकों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए कीटनाशकों के घोल में स्टीकर जैसे सैंडोविट 0.5 मि.ली./लीटर कीटनाशक के घोल में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए, स्टीकर के प्रयोग से कीटनाशक की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।
ब्लैक थ्रिप्स के प्रकोप का प्रभाव
- रोगों का संचारण: टोस्पोवायरस (पत्तियों का मुड़ना) के लिए वाहक के रूप में कार्य करते हैं। ये पौधों की गंभीर क्षति का कारण बनते हैं, तत्पश्चात अतिसंवेदनशील पौधों को टोस्पोवायरस से संक्रमित करते हैं।
- प्रकाश संश्लेषण में कमी: कीट द्वारा लगातार क्षति करने से प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे विकास क्षमता सीमित हो जाती है।
- फलों को क्षति: पौधों पर अक्सर विकृति निशान और समय से पहले फूल गिर जाते हैं, रस चूसने के कारण फल की समग्र गुणवत्ता के साथ बाजार मूल्यों में कमी पाई जाती है।
ब्लैक थ्रिप्स का समन्वित कीट प्रबंधन:
नियमित निगरानी द्वारा: संक्रमण के शुरुआती लक्षणों, जैसे पत्तियों का चांदी जैसा होना, विकृत पत्ते या फलों पर पड़े निशानों का तुरंत पता लगाकर, वयस्क थ्रिप्स की शुरुआती चेतावनी और उन्हें पकड़ने के लिए नीले चिपचिपे फंदे लगाएं। यह थ्रिप्स की निगरानी करने का सबसे सरल और उत्तम तरीका है। यह मिर्च की फसल में अंडे देने की प्रक्रिया को भी कम करता है। निगरानी के लिए 30 से 35 फंदे प्रति हेक्टेयर लगाएं। साप्ताहिक अंतराल पर पुराने फंदों को नए फंदों से बदल दें। फंदे का आकार 15x20 सेमी या 30x20 सेमी रखना उचित होता है। फंदे को हमेशा फसल की ऊंचाई के आधार पर थोड़ा ऊंचा स्थापित करें।
कीट और रोग प्रतिरोधी प्रजातियाँ लगाकर: कीट और रोग प्रतिरोधी, कम अवधि वाली किस्मों का चुनाव करें। बुवाई से पहले बीज को हमेशा कीटनाशकों से उपचारित करें। थ्रिप्स के प्रकोप की गंभीरता को कम करने के लिए आप बुवाई या रोपाई की तारीख में भी बदलाव कर सकते हैं।
कृषि क्रियाओं द्वारा: गर्मियों में गहरी जुताई करें और फसल चक्र अपनाएं। कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखें। खेत की सीमा पर ज्वार, मक्का, बाजरा जैसी लंबी बढ़ने वाली फसलों की 2-3 पंक्तियाँ लगाएं। इन सीमा फसलों की बुवाई मिर्च के पौधे लगाने से 15-20 दिन पहले करें। मिर्च की हर दस कतारों के बाद लोबिया की तीन कतारें लगाएं। खेत के मेड़ों के आस-पास मौजूद पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस, क्लियोम विस्कोसा, प्रोसोपिस प्रजाति, लैंटाना कैमरा, जंगली सोलेनेसी प्रजाति आदि जैसे खरपतवारों को उखाड़कर नष्ट कर दें। ये खरपतवार थ्रिप्स के लिए वैकल्पिक पोषक के रूप में आश्रय प्रदान करते हैं।
उचित सिंचाई द्वारा: भूमिगत सिंचाई की जगह फव्वारा सिंचाई प्रणाली अपनाएं। मिट्टी में 60% नमी की कमी होने पर सिंचाई करें। सर्दियों में 20 दिनों के अंतराल पर नेफ्थलीन एसिटिक एसिड का 1 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर कम से कम दो से तीन बार छिड़काव करें।
यांत्रिक नियंत्रण द्वारा: गंभीर रूप से संक्रमित शीर्ष प्ररोहों को तोड़कर और संक्रमित पौधों को उखाड़ने के बाद उन्हें गाड़कर या जलाकर नष्ट कर दें।
जैव कीट रसायनों पर बल देना (जैविक नियंत्रण): लेडीबग, लेस विंग्स या शिकारी माइट जैसे लाभकारी मित्र कीट थ्रिप्स का भक्षण करते हैं। अच्छी तरह से विघटित खाद (गोबर की खाद) का प्रयोग 2.50 टन प्रति हेक्टेयर की दर से करें। मेटारिजीयम एनिसोप्लिया या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस (दर: 2 किग्रा प्रति टन) से समृद्ध गोबर की खाद की 25-30 टन प्रति हेक्टेयर की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें। ब्यूवेरिया बेसियाना या वर्टिसिलियम लेकनाई का 4 ग्राम प्रति लीटर या 4 मिली प्रति लीटर (बीजाणु भार: 1×108 प्रति इकाई कॉलोनी निर्माण/ग्राम) का समान रूप से छिड़काव 7 दिनों के अंतराल पर करें। कीट रोगजनक सूत्रकृमि (ईपीएन), स्टीनेरनेमा कारपोकेप्सी के सूत्रीकरण के लिए 10 ग्राम प्रति लीटर की दर से फसल पर छिड़काव करें। ईपीएन का उपयोग सूर्योदय या सूर्यास्त के बाद देर शाम को करना चाहिए, क्योंकि ये पराबैंगनी प्रकाश की किरणों (यूवी किरणों) और उच्च तापमान के प्रति संवेदनशील होते हैं।
वानस्पतिक कीट रसायनों का उपयोग: समुद्री खरपतवार (कप्पा फाइकस एल्वरेशी) के बीज का 2 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें, या मिट्टी में 500 किलोग्राम नीम की खली और 1.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से केंचुआ खाद का प्रयोग करें। यह उपाय थ्रिप्स से पौधे में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है। नीम की खली (2 मिली प्रति लीटर) का छिड़काव 7 दिनों के अंतराल पर ब्लैक थ्रिप्स के फैलाव को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है।
लाभकारी मित्र कीटों के प्रसार हेतु क्रियाएं:
- रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।
- भारत में मिर्च पर कार्बामेट्स, ऑर्गेनोफॉस्फेट, पाइरेथ्रॉइड्स (जैसे फ्लूवेलिनेट, साइफ्लुथ्रिन, आदि) जैसे कीटनाशकों के छिड़काव से बचें। ये कीटनाशक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले मित्र कीटों और परागणकों के लिए अत्यधिक विषैले होते हैं, जो माइट के प्रकोप का कारण बन सकते हैं। ये ब्लैक थ्रिप्स के विरुद्ध विशेष रूप से प्रभावी नहीं हैं क्योंकि थ्रिप्स बहुत सूक्ष्म कीट होते हैं और मुड़े हुए पत्तों में छिपे रहते हैं।
- अंतिम उपाय के रूप में, थ्रिप्स नियंत्रण के लिए लेबल किए गए कीटनाशकों का उपयोग करें।
- अनुशंसित सुरक्षित कीटनाशक रसायनों के उपयोग के लिए, वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (CIB और RC) ने मिर्च में थ्रिप्स के लिए निम्नलिखित पंजीकृत कीटनाशकों को मंजूरी दी है।
- डाईफेनथियुरॉन (47%) + बिफेंथ्रिन (9.40%) एससी घुलनशील पाउडर का 1.25 मिली/लीटर का घोल बनाकर छिड़काव करें।
- इमामेक्टिन बेंजोएट (5%) एसजी के घुलनशील दाने का 0.4 ग्राम/लीटर का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- सायंत्रानीलिप्रोल (10.26% ओडी) एक एंथ्रानिलिक डायमाइड कीटनाशक है। यह कीट पर डिंबनाशी (ओविसाइडल), लार्वानाशी (ओवी-लार्विसाइडल) और वयस्कनाशी (एडल्टिसाइडल) प्रभावकारिता भी दिखाता है। कीट प्रजातियों के संपर्क में आने के कुछ घंटों के भीतर कीट आमतौर पर तेजी से खाना बंद कर देता है। इसकी 0.5 मिली/लीटर की मात्रा को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- स्पिनटोरम (11.70% एस.सी.) का 0.9 मिली/लीटर को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह केवल लक्ष्य कीटों को ही मारता है और मित्र कीटों को प्रभावित नहीं करता है।
- प्रोफेनोफॉस (40% ईसी) या फेनपाइरॉक्सिमेट (2.5 ईसी) घुलनशील घोल की 2.0 मिली/लीटर को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। यह कीटनाशक थ्रिप्स के अंडों को जड़ से नष्ट कर देता है और पत्तियों की निचली और ऊपरी सतह पर मौजूद कीटों को मारता है।
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