गंगा नदी, अपने आध्यात्मिक और पारिस्थितिकीय महत्व के लिए अहम मानी जाती है। यह वर्तमान में अत्यधिक मछली पकड़ने, प्रदूषण और पर्यावरणीय समस्याओं के चलते स्वदेशी मछली प्रजातियों की कमी का सामना कर रही है। इस अध्ययन का उद्देश्य मछलियों के प्रजनन और बीज उत्पादन की नई विधियों के माध्यम से नदी की जैव विविधता को संरक्षित करना है। उन्नत प्रजनन तकनीकों और बीज उत्पादन प्रक्रियाओं को अपनाकर, गंगा नदी के मछली संसाधनों और पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। विशेष तौर पर, इंडियन मेजर कार्प प्रजातियों की स्थानीय अर्थव्यवस्था और पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका देखी गई है, इसलिए इनके संरक्षण की नितांत आवश्यकता है। प्रस्तुत लेख मछली उत्पादन में वृद्धि हेतु हार्मोन इंजेक्शन और कृत्रिम प्रजनन जैसी उन्नत प्रजनन विधियों पर केंद्रित है। इसके साथ ही, यह हैचरी और नर्सरी में पारिस्थितिकीय प्रबंधन के महत्व को भी रेखांकित करता है, जिससे उच्च उत्तरजीविता दर और उत्पादकता सुनिश्चित की जा सके। इन प्रयासों का लक्ष्य गंगा नदी की पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करना और स्थानीय समुदायों की आजीविका को सशक्त करना है।
गंगा नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र नदियों में से एक है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण, जैव-विविधता एवं पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गंगा नदी में मछलियों की कई प्रजातियां वास करती हैं पर पिछले कुछ दशकों में गंगा नदी की मछली प्रजातियों में कमी देखी गई है। इसका मुख्य कारण अत्यधिक मछली पकड़ना, प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय समस्याएं हैं। इस संदर्भ में, गंगा नदी की स्थानीय मछलियों के प्रजनन और बीज उत्पादन के समस्त पहलुओं पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।
बीज उत्पादन से लेकर नदी रैंचिंग तक समस्त प्रक्रियाओं को प्रभावी ढंग से लागू कर गंगा नदी की जैवविविधता को संरक्षित और मछली संसाधनों की स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है। इन मछलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रजनन और बीज उत्पादन की तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे नदी रैंचिंग विषयों को बढ़ावा मिल रहा है। इसके माध्यम से गंगा नदी की जैव विविधता को संरक्षित करने और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है। इसके साथ ही, यह पहल गंगा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
नदी रैंचिंग का मुख्य उद्देश्य गंगा नदी में मछलियों की संख्या में वृद्धि और उनकी प्रजातियों का संरक्षण करना है, जिसके तहत मछलियों के बीज का उत्पादन करके उन्हें नदी में छोड़ दिया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल मछलियों की संख्या को बढ़ाने में सहायक है, बल्कि स्थानीय मछुआरों की आजीविका को भी सुदृढ़ करती है। इनमें से इंडियन मेजर कार्प (कतला, रोहू, और मृगल) भारत के मत्स्य पालन उद्योग के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये प्रजातियां किसानों और मछुआरों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
भारत के अधिकतर जलमार्गों में ये मछलियां पाई जाती हैं, जो सामुदायिक और व्यापारिक मछली पालन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त हैं। ये मछलियां उच्च पोषण तत्वों जैसे प्रोटीन, विटामिन और आवश्यक फैटी-एसिड का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी और पोषणवर्धक होती हैं। इससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से इन मछलियों का जल निकायों में पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखने और जल की गुणवत्ता सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान होता है।
अधिक कुशल और सतत मत्स्य पालन के लिए अनुसंधान और विकास गतिविधियों द्वारा इंडियन मेजर कार्प के प्रजनन और उत्पादन में उन्नत तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इन मछलियों का प्रजनन और बीज उत्पादन एक वैज्ञानिक और संरचित प्रक्रिया होती है जो मछली पालन उद्योग के विकास और उन्नति में सहयोग करती है। इस लेख में इंडियन मेजर कार्प के प्रजनन और बीज उत्पादन की प्रक्रिया पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है।
इंडियन मेजर कार्प की ब्रूड मछलियों का प्रबंधन: हालांकि इंडियन मेजर कार्प आमतौर पर 2 वर्ष में ही परिपक्व हो जाती हैं। किंतु 3 वर्ष की ब्रूड मछलियों (वजन: लगभग 3 किग्रा) को प्रजनन के लिए बेहतर माना जाता है। ब्रूडस्टॉक प्रबंधन प्रजनन काल से 3-5 महीने पहले, अर्थात जनवरी-फरवरी से शुरू होता है। इस दौरान संभावित ब्रूड मछलियों को 2000 किग्रा/हेक्टेयर (200 किग्रा/1000 वर्ग मीटर क्षेत्र) के तालाबों में स्टॉक किया जाता है। इस अवधि में सक्रिय आहार देना शुरू करते हैं, जिससे दैहिक विकास धीरे-धीरे बंद हो जाता है और जननांग का विकास शुरू हो जाता है।
मछलियों की शारीरिक वृद्धि और जननांग विकास के लिए, खली और चावल की भूसी को 1:1 के अनुपात में मिलाकर मछलियों के वजन के 1-2 प्रतिशत की दर पर पूरक आहार दिया जाता है। तालाब के जल की गहराई बनाए रखने के लिए, समय-समय पर ताजा पानी भी डाला जाता है। इस प्रकार, उचित समय और उत्तम प्रबंधन के साथ, उच्च गुणवत्ता वाली ब्रूड मछलियों का उत्पादन होता है, जो प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
प्रजनन प्रक्रिया: इंडियन मेजर कार्प का प्रजनन मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-अगस्त) के साथ शुरू होता है। इस समय, मछलियां प्रजनन के लिए अनुकूल जलवायु और जल प्राचलों के तालाबों में स्थानांतरित की जाती हैं। इन मछलियों का प्रजनन स्थानीय तौर पर किया जाता है, जहां नर मछलियाँ शुक्राणु (स्पर्म) तथा मादा मछलियाँ अंडे देती हैं। प्रजनन के लिए, विशिष्ट तालाबों में चयनित ब्रूड मछलियों को तैयार किया जाता है और उन्हें खास देखभाल दी जाती है।
हार्मोन इंजेक्शन की मात्रा: हार्मोन इंजेक्शन की मात्रा निर्धारित करने के लिए पिट्यूटरी ग्रंथियां और सिंथेटिक हार्मोन दोनों का उपयोग स्पॉनिंग एजेंट के रूप में किया जाता है। इंजेक्शन की मात्रा मछली के शारीरिक वजन के आधार पर तय की जाती है। पिट्यूटरी ग्रंथि के लिए, मात्रा की गणना मछली के प्रति किग्रा वजन के अनुसार मिग्रा में जबकि सिंथेटिक हार्मोन के लिए, मात्रा मछली के प्रति किग्रा वजन के अनुसार मि.ली. में तय की जाती है। इस प्रकार, इंजेक्शन देने से पहले मछलियों का सही वजन मापना और उसके अनुसार मात्रा की सही गणना करना आवश्यक होता है ताकि प्रभावी प्रजनन सुनिश्चित किया जा सके।
पीयूष (पिट्यूटरी) ग्रंथि: स्पॉनिंग वाली मादा और नर मछलियों के वजन के आधार पर पिट्यूटरी ग्रंथि मात्रा निर्धारित की जाती है। मादा मछली को पहला इंजेक्शन 2-4 मि.ग्रा./कि.ग्रा. शारीरिक वजन के आधार पर और दूसरा इंजेक्शन 4-6 घंटे के बाद 6-10 मि.ग्रा./कि.ग्रा. के आधार पर दिया जाता है। नर मछलियों को 2-3 मिग्रा/किग्रा शरीर के वजन पर केवल एक इंजेक्शन तब दिया जाता है, जब मादा मछलियों को उनकी दूसरी मात्रा दी जाती है। मछली की शारीरिक स्थिति और जलवायु के अनुसार मात्रा को बढ़ाया और घटाया जा सकता है।
इको-हैचरी पूल में इनक्यूबेशन: इंडियन मेजर कार्प मछलियों के अंडों का संवर्धन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो मछली पालन में उनकी उत्पादकता और उत्तरजीविता दर को बढ़ाने के लिए आवश्यक है। अंडों का संवर्धन आमतौर पर नियंत्रित और अनुकूल वातावरण में किया जाता है, जिससे उनकी हैचिंग दर और उत्तरजीविता दर की संभावना में सुधार होता है।
उपरोक्त प्रक्रिया में अंडों को विशेष इनक्यूबेशन टैंक में रखा जाता है। यह पूल या इनक्यूबेशन पूल गोलाकार होता है और सीमेंट कंक्रीट, ईंट की चिनाई या एफआरपी सामग्री से बना होता है। इसमें दो कक्ष होते हैं - आंतरिक और बाहरी। बाहरी कक्ष का व्यास 3-6 मीटर और आंतरिक कक्ष का व्यास 1.0 मीटर - 1.5 मीटर का होता है। पूल की गहराई 1.0 - 1.5 मीटर होती है।
बाहरी और आंतरिक कक्षों को अलग करने वाली गोलाकार दीवार तार की जाली से बनी होती है। इस संरचना को नायलॉन के कपड़े (जाल का आकार 1/80 इंच) लपेटा जाता है, जो पानी को बाहरी कक्ष से आंतरिक कक्ष में बहने में मदद करता है। अंत में, पानी हैचरी के केंद्र में रखे गए ऊर्ध्वाधर आउटलेट के माध्यम से इनक्यूबेशन पूल से बाहर आता है।
पानी के इनलेट पाइप 45 डिग्री के आसपास (बतख के मुंह के आकार) जैसे एक गोलाकार पंक्ति में बाहरी कक्ष के फर्श पर एक-दूसरे के साथ समान दूरी पर रखे जाते हैं। कभी-कभी, अंडे देने वाले पाइप को इनक्यूबेशन पूल से जोड़ दिया जाता है, ताकि स्पॉनिंग के तुरंत बाद अंडे को इनक्यूबेशन के लिए पहुंचाया जा सके और अंडों का विकास सही ढंग से हो सके।
संवर्धन के दौरान अंडों की नियमित निगरानी की जाती है, ताकि संबंधित किसी समस्या को समय रहते पहचान कर उसका समाधान किया जा सके। संक्रमण और कवक रोग से बचाव के लिए संक्रमण निरोधक तत्वों का भी उपयोग किया जाता है। अंडों के सही ढंग से फूटने के बाद उन्हें लार्वा टैंक में स्थानांतरित किया जाता है, जहां उनकी उचित देखभाल और पोषण की व्यवस्था की जाती है। इनक्यूबेशन एक वैज्ञानिक और सुनियोजित प्रक्रिया है, जो मछली पालन के क्षेत्र में मछलियों की सफल हैचिंग और स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करती है।
इनक्यूबेशन पूल की सफाई के लिए उपकरणों का उपयोग
- सरफेस क्लीनर: पानी की सतह पर 2 से.मी. व्यास वाली लकड़ी या बांस की छड़ी को बाहरी कक्ष में दो दीवारों के बीच रखा जाता है। इसमें पानी के झाग, तैरते हुए मलबे और कीट जमा हो जाते हैं, जिन्हें मैन्युअल रूप से हटाया जाता है।
- सब-सरफेस क्लीनर: पानी की सतह पर 4-5 सेमी चौड़ाई का एक छिद्रित लकड़ी का तख्ता लगाया जाता है, जो आधा डूबा हुआ होता है। यह कक्ष के मध्य भाग के पानी को साफ करता है।
- कॉलम क्लीनर: एक छड़ी को (4-5 सेमी व्यास वाली) बाहरी कक्ष में दो दीवारों के बीच रखा जाता है। छड़ी पर 1.0-1.5 मीटर लंबाई के नरम ब्रिसल्स वाली नारियल की रस्सी को 10-15 सेमी की दूरी पर बांधा जाता है। नारियल की रस्सी के ब्रिसल्स के साथ मृत अंडे और स्पॉन चिपक जाते हैं। इन रस्सियों को इनक्यूबेशन ऑपरेशन के दौरान समय-समय पर मैनुअल रूप से साफ किया जाता है।
स्पॉन संग्रह: तीन दिन के बाद जब अंडे फ्राई या अंगुलिका के आकार तक पहुंच जाते हैं, तो इन्हें नर्सरी तालाब में छोड़ सकते हैं या किसानों को बेच सकते हैं। स्पॉन इकट्ठा करते समय, अंडे सेने वाले हापा को हटा दिया जाता है। इसके बाद स्पॉन को हापा के एक कोने में रख दिया जाता है और फिर छोटे कंटेनर या चाय की छन्नी से निकाल लिया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत जटिल होती है, इसलिए इसे बहुत ही सावधानी से करने की आवश्यकता है।
फ्राई और अंगुलिका पालन: एक तालाब में फ्राई और अंगुलिकाओं का संवर्धन करना मछली पालन के शैक्षिक उद्देश्यों के लिए एक महत्वपूर्ण और अध्ययनरत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में, स्टॉकिंग घनत्व और आहार प्रबंधन दोनों ही महत्वपूर्ण घटक हैं, जो मछलियों के संपूर्ण और स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
संवर्धन में उचित स्टॉकिंग घनत्व फ्राई के लिए सामान्यतः 5-10 लाख प्रति हेक्टेयर और अंगुलिकाओं के लिए 2-3 लाख प्रति हेक्टेयर रखा जाता है। इससे मछलियों को पर्याप्त जगह और पोषण प्रदान किया जा सकता है, जिससे उनका उचित विकास हो सके। आहार प्रबंधन के माध्यम से, फ्राई को प्रारंभिक चरण में प्लवक (प्लैंकटन) या आर्टेमिया नौप्ली दिया जाता है जो उन्हें आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं और उनके विकास में मदद करते हैं।
अंगुलिकाओं को विकसित होने पर उन्हें प्रोटीनयुक्त आहार जैसे केंचुए (वर्म) के टुकड़े और छोटे-छोटे कीट दिए जाते हैं। इसके अलावा, एक दिन में फ्राई को 4-5 बार और अंगुलिकाओं को 2-3 बार आहार दिया जाता है, जो उनके समग्र विकास और पोषण को सुनिश्चित करता है।
नर्सरी तालाब प्रबंधन: प्राकृतिक तौर पर कार्प के बीज बहुत नाजुक होते हैं। इनका विकास और अस्तित्व काफी हद तक उस वातावरण पर निर्भर करता है जिसमें वे रहते हैं। इन कार्प मछलियों का आहार और आहार अंतराल अवधि जैसी जैविक विशेषताएं उनके प्रारंभिक जीवनचक्र के दौरान लगभग समान होती हैं, इसलिए किसी विशेष चरण में भी लगभग समान प्रबंधन की आवश्यकता होती है। विभिन्न जीवन चरणों के लिए प्रबंधन उपाय भिन्न-भिन्न होते हैं। कई शारीरिक अंग, जैसे उनके पाचन अंगों की संरचना और कार्य और आहार सेवन प्रणाली, प्रारंभिक चरणों के दौरान परिपक्व होते हैं।
पालन प्रणाली में इन बीजों की अतिजीविता और विकास काफी हद तक जलीय खरपतवारों, जलीय कीटों और शिकारी मछलियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति, पानी और मृदा की गुणवत्ता, प्राकृतिक फीड की उपलब्धता, जनसंख्या घनत्व, पूरक फीड, पालन अवधि पर निर्भर करते हैं। अतः इन पहलुओं का उचित प्रबंधन कार्प बीज पालन की सफलता के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत माने जाते हैं। नर्सरी चरण में मेजर कार्प के 3 से 4 दिन वाले मछली बीज (5 से 6 मिमी) को नर्सरी तालाबों में 15 से 20 दिनों के लिए लिए रखा जाता है जब तक वे फ्राई के आकार के नहीं हो जाते। लार्वा हैचिंग की जर्दी थैली में पहले 3 दिनों के भीतर अवशोषित हो जाती है इसलिए पहले दिन से नर्सरी में आहार की आवश्यकता होती है।
संक्रमण काल में उपयुक्त प्राकृतिक फीड की उपलब्धता सबसे महत्वपूर्ण कारक है। साथ ही, हैचिंग का ऑक्सीजन और आहार के लिए जलीय कीटों, शिकारी मछलियों और खरपतवार से प्रतिस्पर्धा रहती है। नर्सरी में उपयुक्त पारिस्थितिक स्थिति की भी स्पॉन के अतिजीविता में एक बड़ी भूमिका है।
आमतौर पर, 1.0 से 1.5 मीटर के औसत गहरे तथा 0.02 से 0.1 हेक्टेयर वाले छोटे मौसमी तालाब कार्प नर्सरी के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। इसके साथ ही, 50 से 100 वर्ग मीटर वाले कंक्रीट के टैंक, जिनमें 15 से 20 सेमी मृदा भरी होती है, उनमें न्यूनतम प्रबंधन उपायों के साथ मछली उत्पादन किया जा सकता है। कभी-कभी पिंजरे और पेन जैसे छोटे बाड़ों का उपयोग बड़े जल निकायों में नर्सरी तालाबों के विकल्प के रूप में भी किया जाता है।
गर्मियों में तालाबों को सुखाने से शिकारी मछलियों और खरपतवार के उन्मूलन और जैविक खनिजीकरण में मदद मिलती है। बारहमासी जल-निकायों में अक्सर जलीय खरपतवार और शिकारी मछलियां होती हैं। इनके उन्मूलन से इन तालाबों का उपयोग नर्सरी के रूप में किया जा सकता है पर आवश्यकता है, बीज के लिए उपयुक्त वातावरण और भंडारण पूर्व प्रबंधन के उपाय। इसके लिए चूना और खाद डालने के अलावा, नियमित अंतराल पर खाद डालना, पूरक आहार देना, स्वास्थ्य की देखभाल और जल का नियमन जैसी गतिविधियां करनी पड़ती हैं।
तालाब में जल गुणवत्ता प्रबंधन में प्रजनन और अंगुलिमीन मानक: जलीय जीवन के स्वास्थ्य और विकास के लिए तालाब में जल की उच्चतम गुणवत्ता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। इसके मुख्य मापदंडों में घुलित ऑक्सीजन (डीओ), पीएच, तापमान, अमोनिया, नाइट्राइट और नाइट्रेट आदि आते हैं। मछलियां श्वसन के लिए घुलित ऑक्सीजन पर निर्भर रहती हैं इसलिए मछली स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए इसका स्तर 5 मिग्रा/लीटर से ऊपर होना चाहिए। पीएच मान 6.5 और 9.0 के बीच रखा जाना चाहिए। पीएच मान का अधिक स्तर मछली के लिए हानिकारक हो सकता है और उनकी चयापचय प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।
तापमान मत्स्य पालन का एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है। विभिन्न मछली प्रजातियों के पालन के लिए अलग-अलग तापमान सुनिश्चित किया गया है। आमतौर पर, 20 डिग्री सेल्सियस और 30 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान कई तालाब मछलियों के लिए उपयुक्त माना गया है। मछली के अपशिष्ट और विघटित कार्बनिक पदार्थों से उत्पन्न अमोनिया का न्यूनतम स्तर 0.05 मिग्रा/लीटर से कम रखा जाना चाहिए। यह मछली के लिए अत्यधिक विषैला होता है।
नाइट्राइट, जो लाभकारी बैक्टीरिया द्वारा अमोनिया से परिवर्तित होते हैं, को भी विषैला माना गया है और इनका स्तर 0.1 मिग्रा/लीटर से नीचे रखा जाना चाहिए। नाइट्रेट (नाइट्रोजन चक्र का अंतिम उत्पाद) जो कम हानिकारक हैं, पर मछली में तनाव और स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिए इसे 50 मिग्रा/लीटर से कम रखना चाहिए। नियमित निगरानी और रखरखाव जैसे आंशिक जल परिवर्तन, उचित निस्पंदन और एयरेटर का उपयोग इन मापदंडों को प्रबंधित करने में प्रभावी होता है।
आहार के अवशेष, मृत पौधों और कचरे को हटाकर तालाब के जैविक भार को नियंत्रित करने से पानी की गुणवत्ता अच्छी रहती है। लाभकारी बैक्टीरिया से हानिकारक तत्वों के अपघटन में सहायता मिलती है। जल गुणवत्ता मापदंडों का उचित प्रबंधन न केवल मछली पालन के लिए प्रभावी है बल्कि इससे एक समृद्ध जलीय पर्यावरण को भी बढ़ावा मिलता है। पानी में हानिकारक और प्रदूषित तत्वों को रोकने और एक स्थिर तथा स्वस्थ तालाब पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए नियमित परीक्षण और समायोजन की आवश्यकता है, जिससे मछलियों का स्वस्थ विकास, प्रजनन और बेहतर उत्पादकता सुनिश्चित हो सके।
तालाब प्रबंधन: इसके अंतर्गत जलीय खरपतवारों की सफाई, मृदा की गुणवत्ता में सुधार और शिकारी मछलियों पर नियंत्रण जैसे कुछ बुनियादी उपाय किए जाते हैं। तालाब में जलीय कीट पालन में चारे के लिए प्रतिस्पर्धा को छोड़कर, बीजों के लिए कोई बड़ा संकट नहीं देखा गया है। नर्सरी में एकल प्रजाति की तुलना में तालाबों में कार्प प्रजातियों का बहुपालन किया जाता है, जिसके लिए अलग-अलग प्रबंधन उपायों की आवश्यकता होती है। ऐसे पालन तालाबों में मृदा के कार्बन भार के आधार पर 5 से 10 टन/हेक्टेयर की दर से मवेशियों का गोबर डाला जाता है। निर्धारित मात्रा का एक-तिहाई भाग फ्राई स्टॉक करने से 8 से 10 दिन पहले डाला जाता है। शेष बीज स्टॉक करने के बाद 14 दिनों के अंतराल पर बराबर भागों में डाला जाता है। पोल्ट्री ड्रॉपिंग युक्त खुराक में मवेशियों के गोबर की मात्रा को एक तिहाई से आधे तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा, जैविक खाद में क्रमशः 10 और 15 किग्रा/हेक्टेयर की दर से यूरिया और सिंगल सुपर फॉस्फेट जैसे अकार्बनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से उत्साहजनक परिणाम देखने को मिलते हैं।
इनक्यूबेशन पूल का संचालन:
- अंडे इनक्यूबेशन पूल के पानी की ऊपरी सतह से प्राप्त किए जाते हैं।
- पानी के इनलेट पाइप (बतखनुमा) की दिशा और पानी की गति को इस तरह से बनाए रखा जाता है कि विकासशील अंडे स्क्रीन और पानी दोनों से दूर रहें और उन्हें यांत्रिक चोट से बचाया जा सके।
- पूल की पानी की गति पहले 12 घंटों के लिए 4-5 मीटर/सेकंड, अगले 6 घंटों के लिए 1-2 मीटर/सेकंड और बाकी ऑपरेशन के लिए 3-4 मीटर/सेकंड पर बनाए रखी जाती है। इससे अंडों को विकसित होने से पहले नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
- हैचिंग का समय तापमान पर निर्भर करता है, जो 16-20 घंटे तक होता है।
- अंडों को 750,000-1,000,000 अंडे प्रति घन मीटर पानी की दर से भरे जाते हैं।
- अंडे विभिन्न सूक्ष्मजीवों के हानिकारक प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। आमतौर पर ऐसी स्थिति मानसून पूर्व प्रजनन के दौरान देखी जाती है। इस समस्या के नियंत्रण के लिए, इनक्यूबेशन पूल में 2 घंटे के अंतराल पर KMno₄ घोल का छिड़काव करना बेहतर होता है।
- स्पॉन को सही तरीके से निकालने और उनकी बेहतर अतिजीविता के लिए चैंबर को यथास्थान साफ करना आवश्यक है।
रैंचिंग स्थलों पर मछली अंगुलिकाओं का परिवहन: मछली की अंगुलिकाओं (फिंगरलिंग) को रैंचिंग स्थलों पर सुरक्षित रूप से पहुँचाने के लिए, सबसे पहले उपयुक्त कंटेनरों का चयन करें। यात्रा से 24-48 घंटे पहले मछलियों का आहार कम कर दें। कंटेनरों में वही पानी रखें, जिसमें वे पहले से रह रही हैं, ताकि उन्हें अनुकूलन हो सके। तापमान और ऑक्सीजन का उचित स्तर सुनिश्चित करें। यात्रा का समय कम से कम रखने की कोशिश करें। रैंचिंग स्थल पर पहुँचने पर, मछलियों को धीरे-धीरे नए पानी के तापमान और परिस्थितियों के अनुसार समायोजित करें और उन्हें सावधानीपूर्वक पानी में छोड़ें। इसके बाद, मछलियों के व्यवहार और पानी की गुणवत्ता की निगरानी करें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे नए वातावरण में अच्छी तरह से समायोजित हो रही हैं। परिवहन के दौरान मछली के बीज की बेहतर सुरक्षा के लिए, एनेस्थेटिक या सिडेटिव (संवेदनशून्यता) का उपयोग भी किया जा सकता है। इसका उद्देश्य मछली के बीज की अतिजीविता अवधि को बढ़ाना और पानी में अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी विषाक्त गैसों की सांद्रता को कम करना है। परिवहन के दौरान मछलियों की चयापचय (मेटाबॉलिक) दर कम होने से वे लंबे समय तक जीवित रहती हैं।
तालाबों में बीज भंडारण: हैचरी से स्थानांतरित कार्प के स्पॉन मछलियों को नर्सरी तालाब में ही अनुकूलन के लिए छोड़ा जाता है, जब सुबह या शाम को तापमान कम होता है। अनुकूलन स्पॉन की अतिजीविता के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है। इससे पानी की गुणवत्ता, विशेषकर तापमान और पीएच मान में किसी भी अचानक परिवर्तन से होने वाले गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है। खुले कंटेनरों में स्थानांतरित स्पॉन को धीरे-धीरे तालाब के पानी में मिलाकर अनुकूलित किया जाता है। मत्स्य अंगुलिकाओं वाले ऑक्सीजन युक्त बंद पॉलीथीन बैग को कुछ मिनटों के लिए पानी की सतह पर तैरने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि अंदर के पानी का तापमान नर्सरी तालाब के तापमान के समान हो जाए। तेजी से अनुकूलन की सुविधा के लिए इन बैगों पर पानी का छिड़काव भी किया जा सकता है। इसके बाद धीरे-धीरे तालाब के पानी में छोड़ने के लिए पैक को खोलकर पैक के मुँह को पानी में डुबोया जाता है, ताकि स्पॉन तालाब में तैर सकें। आमतौर पर कार्प नर्सरी में स्पॉन की एकल प्रजाति का पालन किया जाता है, जबकि तालाबों की उपलब्धता के आधार पर बहु-प्रजाति पालन भी संभव है। यह भी देखा गया है कि एक से अधिक प्रजातियों को विशेष अनुपात में रखने से उसी अनुपात में फ्राय उत्पादन नहीं होता है। इससे बीज आपूर्ति के लिए वांछित प्रजातियों के अनुपात को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। स्पॉन का स्टॉकिंग घनत्व तालाब की उत्पादकता और प्रबंधन उपायों के आधार पर निर्धारित किया जाता है। मृदा के नर्सरी तालाबों में स्टॉकिंग घनत्व सामान्य रूप से 3-5 मिलियन/हेक्टेयर रखा जाता है, हालांकि, बेहतर प्रबंधन उपायों से घनत्व 10 मिलियन/हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है। जब कंक्रीट के टैंकों को नर्सरी के रूप में उपयोग किया जाता है, तो स्टॉकिंग घनत्व 20 मिलियन/हेक्टेयर तक रखा जाता है। उचित तालाब प्रबंधन उपायों के साथ, मृदा की नर्सरी में सामान्यतः 15-20 दिनों में फ्राय की अतिजीविता दर 30-40 प्रतिशत तक होती है जबकि कंक्रीट टैंक में यह 50-60 प्रतिशत तक देखी गई है।
अंडा निषेचन एवं निषेचित अंडों का ऊष्मायन: अंडा निषेचन के लिए ड्राई स्ट्रिपिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। इसमें पहले परिपक्व मादा मछली से अंडा दोहन तथा तुरंत ही नर मछली से वीर्य दोहन करके उन्हें चिड़ियों के पंख की मदद से मिलाया जाता है। इसके बाद थोड़ा पानी डालकर निम्न रूप से निषेचन की प्रक्रिया की जाती है:
- चयनित प्रजनक का वजन लेना।
- प्रजनक को मुलायम और सूखे कपड़े से पोंछना।
- दाहिने हाथ के अंगूठे और तर्जनी के साथ मादा से अंडा दोहन करना।
- मादा मछली को तुरंत ऑक्सीजन युक्त पानी में छोड़ना।
- अंडजनन क्षमता की जाँच करना।
- दाहिने हाथ के अंगूठे और तर्जनी के साथ नर से वीर्य का दोहन करना।
- चिड़ियों के पंख की मदद से अंडे और वीर्य को मिलाकर निषेचित करना।
- निषेचित अंडों को इनक्यूबेशन टैंकों में स्थानांतरित करना।
निषेचित अंडों को इनक्यूबेशन टैंकों में उचित वातन और जल गुणवत्ता के साथ रखा जाता है। यह प्रेरित प्रजनन विधि न केवल उच्च निषेचन दर और लार्वा उत्पादन सुनिश्चित करती है, बल्कि प्रजनन की अवधि को भी नियंत्रित करती है। इससे इंडियन मेजर कार्प का उत्पादन अधिक कुशल और स्थिर हो जाता है। इस प्रकार, पिट्यूटरी इंजेक्शन द्वारा प्रेरित स्पॉनिंग इंडियन मेजर कार्प के सफल प्रजनन और मत्स्य पालन उद्योग की स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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