ज्वार के विभिन्न प्रकार क्या हैं? - स्वास्थ्य, उपयोग और कृषि में महत्व | The Complete Guide to Jowar (Sorghum) Varieties

ज्वार (Sorghum bicolor), जिसे अंग्रेजी में सोरघम (Sorghum) भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण अनाजों में से एक है। यह भारत सहित एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक प्रमुख मोटा अनाज (मिलेट) है। इसे न केवल मानव भोजन के रूप में, बल्कि पशुओं के चारे, इथेनॉल उत्पादन और यहां तक ​​कि औद्योगिक उपयोगों के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

ज्वार की सबसे बड़ी विशेषता इसका सूखा प्रतिरोधी (Drought-resistant) होना है, जो इसे कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए एक आदर्श फसल बनाता है। भारत में, इसे ज्वारी, जोन्हा, चोलम आदि नामों से जाना जाता है और यह खरीफ (बरसात) और रबी (सर्दियों) दोनों मौसमों में उगाया जाता है।

ज्वार के उपयोग और कृषि की आवश्यकताओं के आधार पर इसे मुख्य रूप से चार व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। इन विभिन्न प्रकारों को समझना आवश्यक है ताकि उनके विशिष्ट लाभों का पूरी तरह से उपयोग किया जा सके।


ज्वार के विभिन्न प्रकार क्या हैं - स्वास्थ्य, उपयोग और कृषि में महत्व  The Complete Guide to Jowar (Sorghum) Varieties


1. दाना ज्वार (Grain Sorghum)

दाना ज्वार सबसे सामान्य प्रकार है और इसे मुख्य रूप से मानव उपभोग के लिए अनाज प्राप्त करने के उद्देश्य से उगाया जाता है। भारत में पैदा होने वाला अधिकांश ज्वार इसी श्रेणी में आता है।

प्रमुख विशेषताएँ:
  • कद (Height): आमतौर पर छोटे से मध्यम कद के पौधे होते हैं, जिससे दाने की कटाई आसान हो जाती है।
  • दाने का रंग: दाने विभिन्न रंगों में आते हैं - सफेद, क्रीम, हल्का भूरा, लाल, या गहरा काला। सफेद और क्रीम रंग के दानों का उपयोग आमतौर पर खाद्य उत्पादों के लिए किया जाता है।

उपयोग:
  • मानव भोजन: ज्वार का आटा (ज्वार की रोटी/भाकरी), दलिया, उपमा, इडली, डोसा और पॉप सोरघम (फुले हुए ज्वार) बनाने में उपयोग होता है। यह ग्लूटेन-मुक्त (Gluten-free) होने के कारण गेहूं के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है।
  • पोषक तत्व: दाना ज्वार प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, आयरन और मैग्नीशियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है।
  • पशु आहार: दाने का एक हिस्सा मुर्गियों, मवेशियों और अन्य पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

भारत में लोकप्रिय किस्में (Varieties in India): भारत में, संकर (Hybrids) और संकुल (Composites/Varieties) दोनों प्रकार की किस्में उगाई जाती हैं।

संकर किस्में (Hybrids):
  • CSH 16, CSH 9, CSH 14: ये उच्च उपज वाली किस्में हैं जो मुख्य रूप से दाने के लिए उगाई जाती हैं।
  • CSH 23: यह एक द्विउद्देशीय (Dual-purpose) किस्म है जो दाने और चारे दोनों के लिए उपयोगी है।

संकुल किस्में (Varieties):
  • CSV 15, CSV 20, CSV 23: ये किस्में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं और अपनी अच्छी अनाज गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं।


2. चारा ज्वार (Forage Sorghum)

चारा ज्वार की खेती विशेष रूप से पशुओं के चारे (Fodder) के लिए की जाती है। यह उन क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण फसल है जहां डेयरी और पशुपालन एक प्रमुख आजीविका है।

प्रमुख विशेषताएँ:
  • कद: ये दाना ज्वार की तुलना में काफी ऊंचे होते हैं, अक्सर 8 से 15 फीट तक बढ़ सकते हैं, जिससे हरे और सूखे चारे की अधिकतम मात्रा प्राप्त होती है।
  • पत्तियां और तना: पत्तियां चौड़ी और तना रसदार होता है, जो पशुओं के लिए स्वादिष्ट और सुपाच्य चारा प्रदान करता है।

उपयोग:
  • हरा चारा (Green Fodder): फसल को हरे रूप में काटकर तुरंत खिलाया जाता है।
  • सूखा चारा (Stover/Kadbi): दाना निकालने के बाद बचा हुआ सूखा तना और पत्तियाँ 'कड़बी' कहलाता है, जो सर्दियों में पशुओं के लिए एक आवश्यक सूखा चारा होता है।
  • साइलेज (Silage): इसे काटकर, किण्वित (Fermented) करके साइलेज बनाया जाता है, जिसे लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है।
  • बहु-कटाई (Multi-Cut): कुछ किस्में ऐसी होती हैं जिनकी एक मौसम में कई बार कटाई की जा सकती है, जिससे चारे की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होती है।

भारत में लोकप्रिय किस्में:
  • मीठी सूडान घास (SSG 59-3): यह एक बहु-कटाई वाली किस्म है, जो हरे चारे के लिए बहुत उच्च उपज देती है। इसे 'मीठी चरी' भी कहते हैं।
  • MP चरी, पूसा चरी - 23: ये भी हरे चारे के लिए लोकप्रिय और उच्च उपज वाली किस्में हैं।
  • राजस्थान चरी 1 और 2: राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों के लिए विकसित किस्में।


3. मीठा ज्वार (Sweet Sorghum)

मीठा ज्वार एक विशिष्ट प्रकार का ज्वार है जिसे इसके दानों के बजाय इसके तने में मौजूद उच्च शर्करा (Sugar) सामग्री के लिए उगाया जाता है। इसे सोरगो (Sorgo) के नाम से भी जाना जाता है।

प्रमुख विशेषताएँ: 
  • शर्करा की मात्रा: इसके तने का रस गन्ने के रस के समान मीठा होता है, जिसमें ब्रिक्स (Brix) की उच्च मात्रा होती है।

उपयोग:
  • सिरप और मिठास: तने के रस को निकालकर, उबालकर गाढ़ा सिरप (Sorghum Syrup) बनाया जाता है, जिसका उपयोग प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में होता है।
  • बायोएथेनॉल (Bioethanol) उत्पादन: इसमें मौजूद उच्च शर्करा सामग्री के कारण यह जैव ईंधन (Biofuel) उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण फसल बन गया है। यह पेट्रोल में मिश्रण के लिए इथेनॉल बनाने में उपयोग होता है।
  • पशु चारा: मीठा होने के कारण इसका बचा हुआ पौधा (बागस) भी पशुओं के चारे के रूप में बहुत उपयोगी होता है।

महत्व: मीठा ज्वार गन्ना और मक्का पर निर्भरता को कम करते हुए, नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, खासकर सूखे वाले क्षेत्रों में।


4. बायोमास ज्वार (Biomass Sorghum)

बायोमास ज्वार एक ऐसा प्रकार है जिसे अत्यधिक मात्रा में गैर-अनाज बायोमास (Non-grain Biomass) के उत्पादन के लिए विकसित किया गया है।

प्रमुख विशेषताएँ:
  • अत्यधिक ऊँचाई: यह सभी प्रकार के ज्वार में सबसे अधिक ऊँचाई वाला होता है, जो 20 फीट तक भी पहुंच सकता है।
  • मुख्य उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य ऊर्जा उत्पादन और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए बड़ी मात्रा में सेलूलोज़युक्त सामग्री (Cellulosic Material) प्रदान करना है।

उपयोग:
  • बायोफ्यूल और बिजली: इसका उपयोग बायोएथेनॉल के अलावा ठोस ईंधन (Solid Fuel) के रूप में या बिजली पैदा करने के लिए बायोमास गैसीकरण संयंत्रों (Biomass Gasification Plants) में किया जाता है।
  • रासायनिक उत्पादन: कुछ औद्योगिक रसायनों के उत्पादन के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।


ज्वार का कृषि में महत्व: रबी और खरीफ की किस्में

भारत में ज्वार की खेती मौसम के अनुसार दो मुख्य भागों में विभाजित है:

खरीफ ज्वार (Kharif Sorghum):
  • समय: मानसून (जून-जुलाई) के दौरान बोया जाता है और सितंबर-अक्टूबर में काटा जाता है।
  • उपयोग: मुख्य रूप से दाना और चारा दोनों के लिए।
  • किस्में: CSH 16, CSH 9, CSV 15.

रबी ज्वार (Rabi Sorghum):
  • समय: सितंबर-अक्टूबर में बोया जाता है और फरवरी-मार्च में काटा जाता है।
  • उपयोग: मुख्य रूप से दाना और सूखे चारे (कड़बी) के लिए।
  • क्षेत्र: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र इसके प्रमुख उत्पादक हैं।


ज्वार - भविष्य का बहुआयामी अनाज

ज्वार एक ऐसा अनाज है जो सदियों से भारतीय कृषि का अभिन्न अंग रहा है। इसके विभिन्न प्रकार—दाना, चारा, मीठा और बायोमास—इसकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाते हैं। एक ओर, यह लाखों लोगों के लिए एक पौष्टिक, ग्लूटेन-मुक्त भोजन प्रदान करता है, तो दूसरी ओर, यह पशुपालन और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।

जैसे-जैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और जल संकट का सामना कर रही है, ज्वार जैसा सूखा-सहिष्णु (Drought-tolerant) और बहुउपयोगी अनाज हमारी खाद्य सुरक्षा (Food Security) और ऊर्जा स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ साबित हो सकता है। इसीलिए, अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष (International Year of Millets) जैसे वैश्विक प्रयासों में ज्वार को विशेष महत्व दिया गया है।

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