भारत, अपने विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों के साथ, नींबू वर्गीय फलों (Citrus fruits) के उत्पादन में विश्व के प्रमुख देशों में से एक है। संतरा, मौसंबी, नींबू और चकोतरा जैसे ये फल न केवल अपने ताज़ा स्वाद और सुगंध के लिए लोकप्रिय हैं, बल्कि विटामिन-सी और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी माने जाते हैं। ये किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन, नए कीटों और रोगों का प्रकोप, तथा बदलती उपभोक्ता मांगों ने नींबू वर्गीय फलों की खेती को नई चुनौतियों का सामना करने पर मजबूर किया है। इन्हीं चुनौतियों से निपटने और उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए, कृषि वैज्ञानिकों और प्रजनकों द्वारा लगातार नई और उन्नत किस्मों का विकास किया जा रहा है। ये नवीनतम किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में बेहतर पैदावार, उत्कृष्ट फल गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन क्षमता प्रदान करती हैं, जिससे भारतीय कृषि में एक नई क्रांति आने की संभावना है।
नई किस्मों की आवश्यकता क्यों? नींबू वर्गीय फलों की नई किस्मों की आवश्यकता कई महत्वपूर्ण कारकों से उत्पन्न होती है:
- रोग और कीट प्रतिरोधकता: साइट्रस ग्रीनिंग (Huanglongbing - HLB) और सिट्रस कैंकर (Citrus Canker) जैसे विनाशकारी रोग नींबू वर्गीय बागवानी को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। नई किस्में इन रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी या सहिष्णु होती हैं, जिससे रासायनिक छिड़काव की आवश्यकता कम होती है और किसानों का नुकसान कम होता है।
- उत्पादकता में वृद्धि: पुरानी किस्मों की तुलना में, नई किस्में अक्सर प्रति पेड़ अधिक उपज देती हैं, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
- फल की गुणवत्ता में सुधार: उपभोक्ता अब केवल मात्रा नहीं, बल्कि गुणवत्ता पर भी ध्यान देते हैं। नई किस्में बेहतर स्वाद, अधिक रस, कम बीज, आकर्षक रंग और लंबी शेल्फ लाइफ (भंडारण क्षमता) प्रदान करती हैं, जो उन्हें बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन: बढ़ती गर्मी, अनियमित वर्षा और सूखे जैसी स्थितियां मौजूदा किस्मों के लिए चुनौती बन रही हैं। नई किस्में ऐसी परिस्थितियों के प्रति अधिक सहिष्णु होती हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में खेती संभव हो पाती है।
- विशिष्ट बाजार मांग: कुछ बाजार बीज रहित फल, विशेष आकार या रंग वाले फल, या विशेष प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त किस्मों की मांग करते हैं। नई किस्में इन विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
- परिपक्वता अवधि में विविधता: नई किस्में ऐसी हो सकती हैं जो जल्दी या देर से परिपक्व होती हैं, जिससे फसल की उपलब्धता का विस्तार होता है और किसानों को साल भर आय प्राप्त करने में मदद मिलती है।
- उच्च घनत्व वाली बागवानी (High-Density Planting) के लिए उपयुक्तता: बौनी या अर्ध-बौनी (Dwarfing or semi-dwarfing) प्रकृति वाली किस्में उच्च घनत्व वाली बागवानी के लिए आदर्श होती हैं, जिससे प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं और उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
नींबू वर्गीय फलों की प्रमुख श्रेणियाँ और उनमें नवीनतम विकास
1. संतरा (Oranges): संतरा भारत में नींबू वर्गीय फलों में सबसे व्यापक रूप से उगाया जाता है। नवीनतम किस्मों का उद्देश्य उपज बढ़ाना, फलों की गुणवत्ता में सुधार करना और रोगों के प्रति प्रतिरोधकता विकसित करना है।
हालिया विकास और किस्में:
- ICAR-CCRI द्वारा अमेरिकी किस्मों का परिचय: ICAR-केंद्रीय खट्टे अनुसंधान संस्थान (ICAR-CCRI), नागपुर ने हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के नेशनल क्लोनल जर्मप्लाज्म रिपॉजिटरी से 17 अभिजात (elite) नींबू वर्गीय किस्में भारत में लाई हैं। इनमें छह मीठे संतरे की किस्में शामिल हैं। ये किस्में उच्च उपज, बेहतर फल गुणवत्ता और कीटों व रोगों के प्रति बेहतर प्रतिरोध के लिए जानी जाती हैं। हालांकि इन किस्मों के विशिष्ट नाम अभी भारतीय किसानों के बीच व्यापक रूप से प्रचलित नहीं हुए हैं, लेकिन इनके भविष्य में महत्वपूर्ण होने की उम्मीद है।
- Olympic Gold Sweet Orange (ओलंपिक गोल्ड स्वीट ऑरेंज): यह एक नेवल किस्म है, जो अपनी असाधारण फल गुणवत्ता और उच्च उपज के लिए जानी जाती है। यह भारतीय परिस्थितियों में अनुकूलन के लिए अध्ययन की जा रही है।
- किन्नू (Kinnow): हालांकि यह एक अपेक्षाकृत पुरानी हाइब्रिड किस्म है (संतरे और मैंडारिन का क्रॉस), इसकी लोकप्रियता और निरंतर उच्च उपज क्षमता इसे आज भी प्रासंगिक बनाती है। इसके गहरे नारंगी रंग के, रसीले फल और उच्च पैदावार इसे किसानों के बीच पसंदीदा बनाती है। इसमें बीज अपेक्षाकृत अधिक होते हैं, लेकिन इसकी व्यापक अनुकूलन क्षमता इसे खास बनाती है।
- नागपुरी संतरा (Nagpuri Santra): यह एक क्षेत्रीय किस्म है, लेकिन इसकी गुणवत्ता के कारण इसे लगातार बेहतर बनाने और अन्य क्षेत्रों में अनुकूलन पर काम चल रहा है।
- कूर्ग संतरा (Coorg Santra): यह भी एक प्रमुख भारतीय किस्म है, जिसकी पत्तियां सघन और चमकदार होती हैं। फल आसानी से छीलने योग्य होते हैं और रस से भरपूर होते हैं।
2. माल्टा/मौसंबी (Sweet Limes/Mosambi): मौसंबी अपने हल्के मीठे और ताज़ा स्वाद के लिए जानी जाती है, विशेषकर जूस के लिए। नई किस्मों में पतले छिलके, अधिक रस और बेहतर भंडारण क्षमता पर जोर दिया जा रहा है।
हालिया विकास और किस्में:
- न्यू सेलर (New Cellar): यह मौसंबी की सबसे ज्यादा लगाई जाने वाली किस्मों में से एक है। इसकी खासियत इसका गोल फल, पतला छिलका, अच्छी चमक और अच्छी भंडारण क्षमता है। इसमें बीज सामान्य होते हैं।
- काटोल गोल्ड (Katol Gold): यह भी एक अच्छी किस्म है जो अपनी बेहतर भंडारण क्षमता के लिए जानी जाती है, हालांकि इसका छिलका न्यू सेलर से थोड़ा मोटा होता है।
- कटरवेलेंसिया (Kattur Valencia), नटाल (Natal), हेमलिन (Hamlin): ये भी मौसंबी की कुछ अन्य लोकप्रिय किस्में हैं जिन पर उत्पादन और गुणवत्ता सुधार के लिए शोध जारी है।
- पूसा अभिनव (Pusa Abhinav): भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित यह एक आशाजनक क्लोनल चयन है। इसमें मध्यम रूप से मजबूत पेड़, घने पत्ते और आकर्षक पीले गोल आकार के फल होते हैं। इसमें पूरे साल फल लगते हैं, जिसमें मार्च-अप्रैल और अगस्त-सितंबर में अधिकतम तुड़ाई होती है। यह साइट्रस कैंकर के प्रति मध्यम रूप से संवेदनशील है।
3. नींबू (Lemons/Limes): नींबू अपनी अम्लीय प्रकृति और औषधीय गुणों के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। नई किस्मों का लक्ष्य उच्च रस सामग्री, कम बीज और रोग प्रतिरोधक क्षमता है।
हालिया विकास और किस्में:
- प्रमालिनी (Promalini): यह पारंपरिक कागज़ी नींबू की तुलना में 30% अधिक उपज देती है। इसके फल गुच्छों में लगते हैं और प्रति नींबू 57% तक रस प्राप्त होता है। यह व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण किस्म है।
- विक्रम (Vikram): इस किस्म के फल भी गुच्छों में लगते हैं, और एक गुच्छे से 7 से 10 नींबू मिल सकते हैं।
- पीकेएम-1 (PKM-1): यह किस्म कैंकर, ट्रिस्टेज़ा और पत्ती छेदक रोग के प्रति प्रतिरोधी है। इसके फल गोल, मध्यम से बड़े आकार के और पीले रंग के होते हैं, जिसमें लगभग 52% रस होता है।
- साईं शर्बती (Sai Sharbati): यह किस्म विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे असम में, बड़ी मात्रा में उगाई जाती है। यह अपने उच्च फल उत्पादन और बीज रहित नींबू के लिए जानी जाती है।
- आई.ए.आर.आई. की नई किस्में (IARI's New Varieties): भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कागज़ी कलां (Kagzi Kalan) नींबू की तुलना में 2.3 गुना अधिक उपज और 1.3 गुना अधिक एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन सी) सामग्री वाली एक बेहतर किस्म विकसित की है। इसमें कागज़ी कलां से 26.64% अधिक रस और 5.70% अधिक साइट्रिक एसिड होता है। यह कागज़ी कलां से 15-20 दिन पहले परिपक्व होती है और एक समान आकार के फल देती है।
- ताहो गोल्ड मैंडारिन (Tahoe Gold Mandarin): यह एक उच्च गुणवत्ता वाली मैंडारिन है जिसे ICAR-CCRI द्वारा भारत में पेश किया गया है। यह अपने गहरे नारंगी रंग के छिलके, समृद्ध स्वाद और कम बीज संख्या के लिए प्रसिद्ध है।
4. चकोतरा/अंगूर (Grapefruit): चकोतरा अपने बड़े आकार और थोड़े कड़वे-मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है। नई किस्मों में लाल-मांसल प्रकारों और बीज रहित गुणों पर ध्यान दिया जा रहा है।
हालिया विकास और किस्में:
- मुख्य रूप से लाल-मांसल किस्में जैसे कि रूबी रेड (Ruby Red) और स्टार रूबी (Star Ruby) अपनी बेहतर रंगत और मिठास के कारण लोकप्रिय हो रही हैं।
- भारत में पहला बीज रहित चकोतरा उत्परिवर्ती: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने देश का पहला बीज रहित चकोतरा उत्परिवर्ती (seedless pummelo mutant) विकसित किया है, जिसमें उच्च रस की मात्रा (41.43%) होती है। इसका औसत फल वजन 496.95 ग्राम है, जो मौजूदा किस्मों से काफी कम है, और यह मीठे संतरे और चकोतरा की अन्य मीठी किस्मों की तुलना में 15 दिन पहले (अक्टूबर के पहले सप्ताह में) तैयार हो जाता है। इसकी उपज भी अधिक (45.55 किग्रा/पेड़) और अम्लता बहुत कम (0.39% साइट्रिक एसिड) होती है।
5. अन्य महत्वपूर्ण नींबू वर्गीय फल:
- ऑस्ट्रेलियाई फिंगर लाइम (Australian Finger Lime): ICAR-CCRI द्वारा भारत में लाई गई यह अनोखी किस्म सिट्रस ग्रीनिंग रोग और सूखे के प्रति सहिष्णुता के लिए जानी जाती है, जो भविष्य के प्रजनन कार्यक्रमों के लिए विशेष रूप से आशाजनक है।
संस्थानों और प्रजनन तकनीकों की भूमिका: भारत में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत विभिन्न अनुसंधान संस्थान, जैसे ICAR-केंद्रीय खट्टे अनुसंधान संस्थान (ICAR-CCRI) नागपुर, और विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालय (SAUs), नींबू वर्गीय फलों की नई किस्मों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये संस्थान पारंपरिक संकरण (cross-breeding), उत्परिवर्तन प्रजनन (mutation breeding) और आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी तकनीकों का उपयोग करते हैं।
- पारंपरिक प्रजनन: इसमें वांछित गुणों वाले दो अलग-अलग पौधों को क्रॉस करके नई किस्मों का विकास किया जाता है। यह एक धीमी प्रक्रिया है लेकिन इसने कई सफल किस्में दी हैं।
- उत्परिवर्तन प्रजनन: इसमें पौधों में यादृच्छिक आनुवंशिक परिवर्तन (mutations) प्रेरित करके नए गुण विकसित किए जाते हैं। बीज रहित चकोतरा इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- जैव-प्रौद्योगिकी: ऊतक संवर्धन (tissue culture), आणविक मार्कर सहायता प्राप्त चयन (molecular marker assisted selection) और आनुवंशिक इंजीनियरिंग जैसी तकनीकें प्रजनन प्रक्रिया को तेज और अधिक सटीक बनाती हैं। विशेष रूप से, साइट्रस ग्रीनिंग जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी किस्में विकसित करने के लिए आनुवंशिक इंजीनियरिंग पर अनुसंधान चल रहा है, जैसा कि टेक्सास एग्रीलाइफ रिसर्च और फ्लोरिडा में स्पिनच जीन का उपयोग करके साइट्रस में रोग प्रतिरोधकता विकसित करने के प्रयासों से पता चलता है।
नई किस्मों को अपनाने में चुनौतियाँ: नई और बेहतर किस्मों के विकास के बावजूद, किसानों द्वारा उनके व्यापक रूप से अपनाने में कुछ चुनौतियाँ आती हैं:
- जागरूकता का अभाव: कई किसानों को नवीनतम किस्मों और उनके लाभों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती है।
- रोपण सामग्री की उपलब्धता: प्रमाणित और गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री (पौधों) की कमी एक बड़ी बाधा है। अक्सर नई किस्में केवल कुछ ही नर्सरियों में उपलब्ध होती हैं।
- किसान प्रशिक्षण: नई किस्मों की खेती के लिए अक्सर विशिष्ट कृषि पद्धतियों की आवश्यकता होती है, जिसके लिए किसानों को प्रशिक्षण और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
- बाजार स्वीकृति: नई किस्मों को बाजार में स्थापित होने और उपभोक्ताओं द्वारा स्वीकार किए जाने में समय लगता है।
भविष्य की दिशा और संभावनाएँ: नींबू वर्गीय फलों की नवीनतम किस्मों का विकास भारतीय कृषि के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का संकेत देता है। भविष्य के प्रजनन कार्यक्रमों में निम्नलिखित बातों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:
- बहु-रोग प्रतिरोधकता: ऐसी किस्में विकसित करना जो एक साथ कई प्रमुख रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी हों।
- जलवायु लचीलापन: सूखे, अत्यधिक गर्मी, ठंड और मिट्टी की लवणता के प्रति अधिक सहिष्णु किस्में।
- पोषक तत्व संवर्धन: विटामिन-सी, एंटीऑक्सीडेंट और अन्य स्वास्थ्यवर्धक यौगिकों से भरपूर किस्में।
- उच्च घनत्व वाली बागवानी के लिए किस्में: बौने मूलवृंतों और संगत किस्मों का विकास जो कम जगह में अधिक उत्पादन दें।
- यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्तता: ऐसी किस्में विकसित करना जिनकी कटाई मशीनों द्वारा आसानी से की जा सके, जिससे श्रम लागत कम हो।
- उपभोक्ता-केंद्रित प्रजनन: विशेष रूप से आसान-छीलने वाले मैंडारिन, बीज रहित फल और विशेष स्वाद प्रोफ़ाइल वाली किस्में।
नींबू वर्गीय फलों की नवीनतम किस्में भारतीय किसानों के लिए आशा की किरण लेकर आई हैं। ये किस्में न केवल उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करती हैं, बल्कि रोगों के प्रकोप से बचाव और बदलते पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन में भी मदद करती हैं। अनुसंधान संस्थानों, सरकारी एजेंसियों और किसानों के बीच सहयोग से इन नई किस्मों को सफलतापूर्वक अपनाने और बढ़ावा देने से भारत में नींबू वर्गीय फल उत्पादन को एक नई ऊँचाई मिलेगी, जिससे किसानों की समृद्धि और देश की खाद्य सुरक्षा दोनों सुनिश्चित होगी। निरंतर नवाचार और वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से, नींबू वर्गीय फलों का भविष्य निश्चित रूप से अधिक उत्पादक, टिकाऊ और लाभदायक होगा।
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