सागौन को इमारती लकड़ी की प्रजातियों का राजा एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। अच्छा रंग, उत्कृष्ट काष्ठमयता एवं गुणवत्ता, स्थिरता, गैर-संक्षारक गुण और दीमक प्रतिरोधी आदि विशेषताएँ सागौन की लकड़ी में पाई जाती हैं। इसलिए, इसे दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लकड़ी में से एक माना जाता है। सागौन का पहला मानव निर्मित वृक्षारोपण वर्ष 1842 में कोनोली और छोटू मेनन द्वारा नीलांबुर, केरल में किया गया था। नीलांबुर में पाए जाने वाले सागौन को उत्कृष्ट लकड़ी की उच्च गुणवत्ता के लिए भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्रदान किया गया है। सीमांत, आर्थिक रूप से दुर्बल किसान सागौन की खेती से लाभ लेते हैं, बल्कि बड़े भूमि मालिकों के लिए भी यह एक आशाजनक अवसर प्रदान करता है।
सागौन (टेक्टोना ग्रैंडिस) एक लंबा, पर्णपाती, उष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जिसकी लंबाई 30-40 मीटर तथा तने की गोलाई 1-2 मीटर होती है। सागौन की लकड़ी का प्रमुख उपयोग फर्नीचर, जहाज निर्माण, संगीत साज-सामान और घर निर्माण के कार्यों के लिए होता है। सागौन बीज का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन उद्योग बनाने में किया जाता है।
सागौन के मुख्यतः पाँच उद्गम स्थान हैं जो अपनी अलग विशेषताओं से प्रसिद्ध हैं:
- नीलांबुर सागौन: आकार, स्थिरता एवं जहाज निर्माण
- अल्लापल्ली सागौन: रंग एवं संरचना
- सिवनी एवं बस्तर सागौन: स्वर्णपित्त एवं सारकाष्ठ और रसकाष्ठ का एकीकृत मिश्रण
- गोदावरी घाटी का सागौन: सजावटी नक्काशी और बहुत महंगा फर्नीचर
- आदिलाबाद सागौन: गुलाबी रंग का सारकाष्ठ
जलवायु और मिट्टी
सागौन का नमी और गर्म उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्तम विकास होता है। सागौन आमतौर पर 800 से 2500 मिमी वर्षा वाले क्षेत्र में और समुद्र तल से लगभग 1,200 मीटर ऊंचाई तक अच्छी तरह से बढ़ता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसकी सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। कम वर्षा और अधिक तापमान में धीमी वृद्धि होती है, लेकिन उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी का उत्पादन होता है। सागौन की सबसे अच्छी पैदावार जलोढ़ एवं जल निकासी मिट्टी में पाई जाती है। जहाँ मृदा का पीएच 6.5 से 7.5 होता है तथा चूना-पत्थर, शैल, भूसी और बेसाल्ट से बनी हुई कैल्शियमयुक्त मिट्टी में सागौन सबसे अच्छा पनपता है। सूखी रेतीली, उथली, कठोर, अम्लीय, काली और जल भराव वाली मिट्टी में सागौन का पौधा ठीक से विकसित नहीं होता।
नर्सरी में सागौन पौध की तैयारी
बीज के माध्यम से: सागौन के फल कठोर होते हैं तथा इसकी बीज अंकुरण क्षमता कम (30%) होती है। बीज पूर्व उपचार विधि में, सागौन के फलों को पानी में 24 घंटे तक भिगोया जाता है, फिर सख्त सीमेंट वाली सतह पर फैलाकर सुखाया जाता है, इस प्रक्रिया को 7-10 बार दोहराने से लगभग 50-70% तक सर्वोत्तम अंकुरण होता है। फलों का चयन व्यास में 14 मिमी से अधिक बड़े बीजों का उपयोग बेहतर अंकुरण देता है। बीजों को 10 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और 0.5 मीटर ऊंचाई पर उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है, लगभग 40 दिनों के बाद अंकुरण शुरू होता है। रूट ट्रेनर में बीजों को बोया जाता है, जिससे रूट क्वाइलिंग (जड़ों का गुच्छा) से बचने में मदद मिलती है। इस तरीके से 6 से 7 माह के अंदर उच्च गुणवत्ता वाले पौधे तैयार हो जाते हैं।
रूट-शूट या स्टंप के माध्यम से: मुख्य रूप से सागौन के बागानों में रोपण सामग्री के रूप में रूट-शूट या स्टंप का उपयोग किया जाता है। एक वर्ष पुराना पौधा (अंगूठे जैसी मोटाई वाले) नर्सरी क्यारी से उखाड़कर तने (शूट) के 2.5 सें.मी. पर तिर्यक कट और 20-30 सें.मी. जड़ का भाग लेकर स्टंप बनाया जाता है। स्टंप के कारण सागौन की तेजी से और लंबवत (सीधी) वृद्धि होती है। इस तकनीक को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
रखरखाव: सागौन के बागानों में, लगभग दो-तीन महीने के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करने से पौधे के तने के पास जड़ों को हवा मिलती रहती है और मिट्टी को खरपतवार मुक्त रखने में मदद मिलती है। सागौन में छंटाई (प्रूनिंग) एवं विरलीकरण (थिनिंग) के बिना उचित गुणवत्ता की लकड़ी प्राप्त नहीं होती है।
छंटाई: सागौन की छंटाई दूसरे या तीसरे वर्ष में जब पौधा 3-4 मीटर ऊंचा होता है तब मार्च से मई में की जाती है। जमीन से एक-तिहाई ऊंचाई पर पेड़ की छंटाई करनी चाहिए। इसके बाद सूखी, रोगग्रस्त और निचली शाखाओं को मुख्य तने से 2-3 सें.मी. ऊपर तेज हथियार से काटना चाहिए। उचित छंटाई से गांठ रहित और उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी का उत्पादन मिलता है।
विरलन: विरलन का मुख्य उद्देश्य वृक्षों की गुणवत्तापूर्ण वृद्धि के लिए पर्याप्त सूर्यप्रकाश, जगह, पानी और पोषक तत्व प्रदान करना है। इसमें रोगग्रस्त, मृत और तनावग्रस्त वृक्षों के साथ-साथ स्वस्थ वृक्षों की संख्या कुछ हद तक कम करते हैं। सागौन का वृक्षारोपण सघन तकनीक जैसे कि 2 × 2 मी. या 3 × 3 मी. दूरी पर करते हैं तो विरलन की आवश्यकता होती है। इस क्रिया में 5-7 वर्ष अवधि में एक के बाद एक पौधे को काट दिया जाता है, जिससे 50 प्रतिशत तक पौधे कम हो जाते हैं। यदि दो पंक्तियों के बीच की दूरी 4 मीटर से अधिक है, तो कृषि वानिकी में आमतौर पर विरलन की आवश्यकता नहीं होती है।
उपयुक्त कृषि वानिकी पद्धति: भारत में विभिन्न कृषि वानिकी पद्धतियों का अनुसंधान किया गया है, जैसे कि कृषि-वन पद्धति (सागौन के साथ मक्का, कपास, हल्दी और मिर्च जैसी फसल उगाई जा सकती हैं), कृषि-वन-फलवृक्ष (जिसमें सागौन के साथ नींबू/अमरूद के साथ कृषि फसल उगाई जा सकती हैं) और वृक्ष सह फल वृक्ष पद्धतियां (जैसे कि सागौन-अमरूद या सीताफल) भी अपनाई जा सकती हैं। इसके अलावा, किसान खेत की मेड़ (2 से 3 मीटर की दूरी) पर सागौन लगा सकते हैं, जिससे फसल को धूप और हवा से भी सुरक्षा मिलेगी।
पौध संरक्षण
सफेद सुंडी (होलोट्रिचिया प्रजाति) पौधशाला में जड़ों पर आक्रमण करती है और इसके प्रबंधन के लिए क्लोरोपाइरीफॉस (20 ईसी) 2 मिली/लीटर पानी और प्रकाश जाल का उपयोग करते हैं। सागौन डिफ़ोलिएटर तथा पर्णनाशी कीट (हाइब्लिया प्यूरा) और स्केलेटोनाइजर तथा कंकाल कीट (यूटेक्टोना मैचेरालिस) से सागौन का उत्पाद 44 प्रतिशत तक कम होता है। जुलाई से अगस्त के महीने में आर्द्र मौसम में नई पत्तियों पर पर्णनाशी कीट का संक्रमण होता है और बाद में अगस्त में पत्ती-छानने वाले कंकाल कीट पुरानी पत्तियों को खा जाते हैं। पर्णनाशी कीट के लिए प्रकाश जाल तथा नीम तेल 5% छिड़काव करना चाहिए। पर्ण कंकाल कीट के लिए सागौन को मिश्र पद्धति में तथा क्विनालफॉस 2 मिली/लीटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए।
उत्पादन
सागौन रोपण के 25-30 वर्षों बाद, मध्य प्रदेश के रायसेन में उचित प्रबंधित वृक्षारोपण से प्रति पेड़ लगभग 0.26-0.36 घन मीटर इमारती लकड़ी का उत्पादन प्राप्त हुआ है। बारामती (पुणे) में 25 वर्षों के बाद एक किसान के खेत में काटे गए एक वृक्षारोपण से प्रति पेड़ 0.15-0.30 घन मीटर की इमारती लकड़ी प्राप्त हुई। इसी प्रकार शुक्ला और विश्वनाथ ने वर्ष 2021 में प्रबंधित सागौन कृषि वानिकी प्रणाली से (जिसे 2×2 मीटर पर लगाया गया और 4 साल में विरलन किया गया), 25 वर्षों के बाद प्रति पेड़ 0.85 घन मीटर की व्यावसायिक लकड़ी और बिना विरलन से 0.22 घन मीटर की लकड़ी का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
पौध रोपण तकनीकी
गर्मी के मौसम में भूमि की ध्यानपूर्वक जुताई करके 60 × 60 × 60 सें.मी. आकार के गड्ढों को तैयार करना चाहिए। रोपण के दौरान, पौधों के बीच का अंतर 2 × 3 मीटर या 4 × 3 मीटर होना चाहिए। कृषि वानिकी पद्धति में, पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 4 × 6 मीटर तथा 8 × 4 मीटर होनी चाहिए। वृक्षारोपण के लिए, पहले 10 किलोग्राम गोबर और 250 ग्राम नीम की खली को गड्ढों में डालनी चाहिए। इसके बाद, प्रति पौधा 50 ग्राम एनपीके का मिश्रण देना चाहिए। दूसरे वर्ष में 100 ग्राम एनपीके और तीसरे वर्ष में 150 ग्राम एनपीके उर्वरक का उपयोग करके बढ़ाया जा सकता है। मानसून में सागौन के ठूंठ (स्टंप) को जमीन में गाड़ने के बाद किनारे की मिट्टी को अच्छी तरह से दबाना जरूरी है ताकि मिट्टी में कोई हवा न रहे।
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