लीची की शाही किस्म अपने अनूठे स्वाद एवं विशिष्ट सुगंध के लिए प्रसिद्ध है। जल्दी पकने (अगेती किस्म) एवं अपने उच्च आर्थिक मूल्य के कारण शाही लीची बिहार के बागवानों की प्रमुख व्यावसायिक किस्म है जो दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होती जा रही है। बिहार की शाही लीची को भौगोलिक संकेत (GI) मिलने से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इसकी मांग बढ़ने लगी है। हालांकि, इसके उत्पादन एवं सतत विकास में फलों के फटने की समस्या एक गंभीर चुनौती है। सामान्य वर्षों में लगभग 10-30% फल फटने लगते हैं जिससे न केवल उपज एवं फलों की गुणवत्ता में कमी आती है, बल्कि किसानों को आर्थिक नुकसान भी होता है। अतः लीची में फलों के फटने की समस्या से बचने के लिए सही नीतियों का अपनाना आवश्यक है। लीची के गुच्छों में बैगिंग (फल लगने के 25-30 दिन बाद), पादप वृद्धि नियामकों (सैलिसिलिक एसिड /50 पीपीएम), एवं जैव-उत्तेजक (सागरिका तरल / 0.5%) का पर्णीय छिड़काव एवं माइक्रो स्प्रिंकलर के माध्यम से संतुलित जल आपूर्ति करके इस समस्या को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है।
लीची (चाइनेन्सिस सोन.), सैपिन्डेसी कुल के अंतर्गत, एक उपोष्णकटिबंधीय सदाबहार लोकप्रिय फल है। यह अपने आकर्षक लाल रंग, अर्ध-पारदर्शी रसदार सफेद एरिल (गूदा), उच्च पोषक तत्वों, विशेष सुगंध एवं स्वादिष्ट गुणों के लिए जानी जाती है। भारत में लीची की खेती लगभग 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है जिससे प्रतिवर्ष लगभग 7.3 लाख टन उत्पादन होता है। बिहार भारत के सबसे बड़े लीची उत्पादक राज्यों में से एक है, जो देश में लीची उत्पादन में 40% से अधिक का योगदान देता है। हालांकि, लीची उत्पादकों के सामने आने वाली चुनौतियों में फलों का फटना एक प्रमुख समस्या है जिससे शाही जैसी कुछ अतिसंवेदनशील अगेती किस्मों में 30% तक नुकसान हो जाता है और फल की गुणवत्ता और विपणन क्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
बिहार में लीची के फलों की वृद्धि और विकास अप्रैल-मई के माह में होता है, जिस समय उच्च तापमान और कम आर्द्रता होती है। इसके परिणामस्वरूप फलों की त्वचा पर हल्के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं एवं फल फट जाते हैं। प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के दौरान जब शुष्क गर्म हवाओं के साथ लगातार शुष्क गर्मी (40 ± 2° तापमान और < 50% सापेक्ष आर्द्रता) रहती है, तो फलों के फटने की गंभीर समस्या उत्पन्न होती है। इससे उपज के साथ-साथ लीची के फलों की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जलवायुवीय कारकों के अलावा, फलों की शुरुआती वृद्धि के दौरान त्वचा (पेरिकार्प) का असामान्य विकास इस विकार को बढ़ावा देता है।
"बॉल-स्किन बनाम ब्लैडर इफेक्ट" सिद्धांत के अनुसार जब एरिल (गूदा) का विस्तार दबाव पेरिकार्प (त्वचा) की ताकत से अधिक हो जाता है तो फल फटने लगते हैं, विशेष रूप से उच्च तापमान या उच्च वायु आर्द्रता, या अचानक भारी बारिश के बाद से ऐसी पर्यावरणीय स्थितियां बनती हैं। इसके लिए, बगीचों में फलों की गुणवत्ता में गिरावट को कम करने के लिए, किसान अपने फलों को नुकसान पहुंचाने वाले विभिन्न कारकों से बचाने के साधन के रूप में कृषि पद्धतियों का एक सेट नियोजित कर सकते हैं। लीची में फलों के फटने की समस्या से बचने के लिए सही नीतियों को अपनाना आवश्यक है।
फलों को फटने से बचने के लिए प्रबंधन
- वृक्षों के नीचे माइक्रो स्प्रिंकलर से सिंचाई: लीची के फलों के पकने के समय लगातार नमी एवं उचित आर्द्रता की आवश्यकता होती है। मिट्टी की नमी में 30-40% की कमी होने पर सिंचाई करना फलों के फटने को कम करने में काफी सहायक होता है। छत्रक के नीचे माइक्रो स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से बागों में नमी एवं आर्द्रता बनी रहती है जिससे फलों के फटने एवं झुलसने में काफी कमी आती है। मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए ड्रिप सिंचाई का भी प्रयोग कर सकते हैं।
- पादप वृद्धि नियामकों का छिड़काव: पादप हार्मोन/वृद्धि नियामक, फलों की सामान्य वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उनके असंतुलन से फलों की वृद्धि और विकास की प्रक्रिया के दौरान फलों के फटने की समस्या हो सकती है। फल लगने के 35-40 दिनों बाद सैलिसिलिक एसिड (50 मिलीग्राम प्रति लीटर) का पर्णीय छिड़काव फलों के फटने को कम करने में फायदेमंद पाया गया है।
- जैव-उत्तेजकों का प्रयोग: समुद्री शैवाल के अर्क से बने जैव-उत्तेजक का उपयोग पौधों की वृद्धि, पोषक तत्व समावेशन और तनाव प्रबंधन में सुधार को बढ़ावा देता है। फल लगने के 35-40 दिनों बाद 0.5% (5 मिली. प्रति लीटर) की दर से सागरिका तरल (इफको) का पत्ते पर छिड़काव करने से फलों के फटने एवं झुलसने की समस्या कम हो जाती है।
- सिंचाई: लीची के बागों में फूल आने से लेकर फलों तक नमी बनाए रखने की आवश्यकता होती है। बागों में लंबे समय बाद अचानक एवं उच्च तापमान पर सिंचाई करने से फल फटने लगते हैं। बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई विधि द्वारा प्रतिदिन सिंचाई करने से फलों के फटने की समस्या भी कम होती है।
- मल्चिंग: सिंचाई के साथ-साथ मल्चिंग द्वारा जल संरक्षण करना लाभदायक पाया गया है। मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए लीची के पत्तों से मल्चिंग कर देने से मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है। पौधे के मुख्य तने के चारों तरफ लीची के पत्तों की अवरोध परत बिछाकर मृदा जल को संरक्षित किया जा सकता है। 100 माइक्रोन मोटाई की काले रंग की पॉलिथीन से भी मल्चिंग कर नमी को संरक्षित रखा जा सकता है।
- गति अवरोधक वृक्षों की कतार: अत्यधिक हवा वाले क्षेत्रों में फलों को फटने से बचाने के लिए उत्तर-पश्चिम दिशा में गति अवरोधक वृक्षों की कतार लगानी चाहिए।
लीची में फुटाव का समाधान: पोषक तत्व प्रबंधन की भूमिका: लीची के फलों का फटना, जिसे फ्रूट क्रैकिंग (Fruit Cracking) भी कहते हैं, एक आम समस्या है जो किसानों को काफी नुकसान पहुँचाती है, खासकर शाही लीची जैसी संवेदनशील किस्मों में। यह समस्या सिर्फ जलवायु कारकों से ही नहीं, बल्कि पोषक तत्वों के असंतुलन से भी बढ़ सकती है। उचित पोषक तत्व प्रबंधन अपनाकर इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है और फलों की गुणवत्ता व उपज बढ़ाई जा सकती है।
कैल्शियम और बोरॉन का महत्व: लीची में फलों के फटने को रोकने में कैल्शियम (Calcium) और बोरॉन (Boron) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- कैल्शियम: यह फल की कोशिका भित्ति (cell wall) की मजबूती के लिए आवश्यक है। जब कोशिका भित्ति कमजोर होती है, तो आंतरिक दबाव बढ़ने पर फल आसानी से फट जाते हैं। कैल्शियम की पर्याप्त आपूर्ति से कोशिका भित्ति मजबूत बनती है, जिससे फल फटने की संभावना कम हो जाती है।
- बोरॉन: यह कैल्शियम के अवशोषण और उसके पौधे के भीतर परिवहन में मदद करता है। बोरॉन की कमी से कैल्शियम का उचित वितरण नहीं हो पाता, भले ही मिट्टी में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में हो। यह फल की त्वचा की लोच (elasticity) को भी बनाए रखने में सहायक है।
पोषक तत्व प्रबंधन के तरीके: फलों के फटने की समस्या को कम करने के लिए इन पोषक तत्वों का सही समय पर और सही विधि से उपयोग करना महत्वपूर्ण है:
- पर्णीय छिड़काव (Foliar Spray): यह पोषक तत्वों को सीधे पत्तियों के माध्यम से पौधे तक पहुँचाने का एक प्रभावी तरीका है, जिससे उनका तेजी से अवशोषण होता है।
- कैल्शियम क्लोराइड (Calcium Chloride): फल लगने के 25-30 दिन बाद, 4-5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कैल्शियम क्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए।
- बोरेक्स (Borax): इसी समय 4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से बोरेक्स का छिड़काव करें।
- दोहराव: 15 दिनों के अंतराल के बाद बोरेक्स के छिड़काव को दोहराना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि पौधे को फलों के विकास के महत्वपूर्ण चरणों में इन पोषक तत्वों की लगातार आपूर्ति मिलती रहे।
मिट्टी में पोषक तत्वों का पूरक (Soil Amendment): लंबी अवधि के लिए मिट्टी में कैल्शियम और बोरॉन की कमी को दूर करना भी आवश्यक है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर, कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर जिप्सम (कैल्शियम स्रोत) या बोरॉन युक्त उर्वरकों का उपयोग किया जा सकता है।
अन्य प्रबंधन पद्धतियों के साथ तालमेल: पोषक तत्व प्रबंधन को केवल अकेले नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे अन्य प्रभावी उपायों जैसे माइक्रो स्प्रिंकलर से सिंचाई, मल्चिंग, और गुच्छों की थैलाबंदी (बैगिंग) के साथ मिलकर अपनाना चाहिए। यह एक एकीकृत दृष्टिकोण है जो लीची में फलों के फटने की समस्या का व्यापक समाधान प्रदान करता है, जिससे न केवल उपज बढ़ती है बल्कि फलों की गुणवत्ता और बाजार मूल्य में भी सुधार होता है।
सही पोषक तत्व संतुलन बनाए रखने से लीची के फल तनाव को बेहतर ढंग से सहन कर पाते हैं, जिससे वे प्रतिकूल मौसम की स्थिति में भी कम फटते हैं। यह किसानों के लिए लीची की खेती को अधिक टिकाऊ और लाभदायक बनाता है।
गुच्छों में थैलाबंदी (बैगिंग): लीची के गुच्छों में सफेद रंग के गैर-बुने हुए पॉलीप्रोपाइलिन बैग से थैलाबंदी (बैगिंग) करने से फलों के फटने में सुरक्षा मिलती है और फलों की गुणवत्ता में सुधार होता है। किसान तेज धूप वाले दिनों, जब फलों की सतह पर नमी जमा न हो, में बैगिंग कर सकते हैं। स्वस्थ दिखने वाले गुच्छों को धीरे से थैलियों में डाला जाता है और उनके खुले हिस्से को धागे से ठीक से बांध दिया जाता है। सामान्यतः फल लगने के 25-30 दिनों बाद तथा कीटनाशक दवाओं, प्लानोफिक्स एवं बोरेक्स के पर्णीय छिड़काव होने के बाद लीची के गुच्छों में थैलाबंदी की जाती है। बिहार में लीची की शाही किस्म में थैलाबंदी करने का उचित समय 25-30 अप्रैल तथा फलों की तुड़ाई का समय 25-30 मई होता है।
उचित प्रबंधन जरूरी: लीची में फलों का फटना एक जटिल विकार है जो विशेष रूप से शाही लीची की गुणवत्ता और विपणन क्षमता को प्रभावित करता है। इस समस्या को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए किसान विभिन्न उपायों को अपनाकर फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, उचित बाग प्रबंधन और पोषक तत्वों के विवेकपूर्ण उपयोग से बागों में फलों के फटने को कम किया जा सकता है।
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